खुद सेना में भर्ती होने से चूके तो 300 युवकों को बनाया सैनिक और सिपाही

जैतों के गुरप्रीत सिंह उर्फ रॉकी कई प्रयासों के बावजूद खुद सेना में भर्ती नहीं हो सके।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 02 Mar 2021 09:35 PM (IST) Updated:Tue, 02 Mar 2021 09:35 PM (IST)
खुद सेना में भर्ती होने से चूके तो 300 युवकों को बनाया सैनिक और सिपाही
खुद सेना में भर्ती होने से चूके तो 300 युवकों को बनाया सैनिक और सिपाही

सुभाष चंद्र, बठिडा

जैतों के गुरप्रीत सिंह उर्फ रॉकी कई प्रयासों के बावजूद खुद सेना में भर्ती नहीं हो सके। हालांकि वह इससे टूटे नहीं, बल्कि अपनी हिम्मत और हौसले की बदौलत ट्रेनिंग देकर अब तक 300 से ज्यादा युवकों को सैना औ पुलिस में भर्ती करवा चुके हैं। वह सेना और पुलिस में भर्ती हो चुके युवकों में से जब किसी को देखते हैं तो उन्हें उनमें अपना चेहरा ही नजर आता है। उन्हें वर्दी में देख उनका खुद का सीना भी चौड़ा हो जाता है। जैतो निवासी 30 वर्षीय गुरप्रीत अपने इलाके में रॉकी के नाम से विख्यात हैं। जब कभी भी पुलिस या सेना की भर्ती निकलती है तो इलाके के युवक-युवतियों को सबसे पहले रॉकी का ही ख्याल आता है। भर्ती होने के इच्छुक युवकों को देतें हैं ट्रेनिग

रॉकी पुलिस और सेना में भर्ती होने के इच्छुक युवक-युवतियों को ऐसी ट्रेनिग देते हैं कि उनमें अधिकतर अपनी मंजिल पाने में सफल हो जाते हैं। यह अलग बात है कि वह तमाम प्रयासों के बावजूद खुद सेना या पुलिस में भर्ती नहीं हो सके। हालांकि उन्होंने जब भी पुलिस और सेना में भर्ती होने के प्रयास किया तो वह हर फिजिकल टेस्ट में पास होते रहे, लेकिन लिखित टेस्ट में रह जाते। बीए पास रॉकी अपनी पढ़ाई के दौरान 100 और 400 मीटर रेस में राज्य स्तर पर सिल्वर मेडल जीत चुके हैं। ट्रेनिग की नहीं लेते कोई फीस

वर्ष 2013 में रॉकी की अपेंडिक्स की नाड़ी फट गई। आपरेशन के बाद डाक्टर ने उन्हें छह महीने रेस लगाने से मना कर दिया। घर पर आराम के दौरान ही उनके पास उनके आसपास के युवक आने लगे और उनसे ट्रेनिग की मांग करने लगे। इस तरह उन्होंने युवकों को ट्रेनिग देने का सिलसिला शुरू कर दिया। आज सात साल हो गए उन्हें जैतो और आसपास के गांवों के युवक युवतियों को ट्रेनिग देते हुए। रोज सुबह और शाम को दो घंटे के लिए युवक युवतियों को ट्रेनिग देते हैं, लेकिन जब हर साल सितंबर में सेना की भर्ती आती है तो वह तीन महीने पहले स्पेशल ट्रेनिग शुरू कर देते हैं। इन तीन महीनों की ट्रेनिग के दौरान उनके पास आसपास के ही नहीं दूर दराज से भी युवक पहुंचते हैं, जिनसे वह कोई फीस नहीं लेते। रेलिंग और दरवाजे बनाने का काम करते हैं रॉकी

गुरप्रीत सिंह रॉकी एलमीनियम की रेलिग, दरवाजे आदि बनाने का काम करते हैं। बताते हैं कि पिछले सात वर्षों के दौरान दी गई ट्रेनिग से 300 से अधिक युवक सेना और पुलिस में भर्ती हो चुके हैं। 80 फीसद युवक सेना में ही भर्ती हुए हैं। वर्ष 2019 की भर्ती के दौरान उनसे ट्रेनिग पाने वाले 18 युवक सेना में भर्ती होने में सफल हुए थे। कई युवक उनसे ट्रेनिग लेकर खेलों की दुनिया में अपना नाम चमका चुके हैं। जैतो के ही बलजीत सिंह 800 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल हासिल कर चुके हैं। रॉकी की बदौलत ही मिली पुलिस की वर्दी: परमिदर

गांव दबड़ीखाना निवासी परमिदर सिंह पंजाब पुलिस में सिपाही हैं। वह 2016 में भर्ती हुए थे। उनके अनुसार वह रॉकी की ट्रेनिग की बदौलत ही आज पंजाब पुलिस के जवान हैं और उन्हें यह वर्दी मिली है। उन्होंने चार महीने लगातार रॉकी से ट्रेनिग ली थी।

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