सैनिकों के लिए गगन देव साह बंकर में रहकर करते रहे बैंक का काम

कारगिल युद्ध के दौरान सैनिकों ने तो युद्ध लड़ा ही साथ में कुछ ऐसे भी योद्धा थे जिन्होंने सैनिकों के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए अपनी सेवाएं दीं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 10:14 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 10:14 PM (IST)
सैनिकों के लिए गगन देव साह बंकर में रहकर करते रहे बैंक का काम
सैनिकों के लिए गगन देव साह बंकर में रहकर करते रहे बैंक का काम

गुरप्रेम लहरी, बठिंडा : कारगिल युद्ध के दौरान सैनिकों ने तो युद्ध लड़ा ही, साथ में कुछ ऐसे भी योद्धा थे जिन्होंने सैनिकों के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए अपनी सेवाएं दीं। ऐसे ही शख्स हैं बठिंडा में भारतीय स्टेट बैंक में बतौर डिप्टी मैनेजर सेवाए निभाने वाले गगन देव साह। गगन देव साह कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय स्टेट बैंक की कारगिल शाखा में क्लेरिकल पद पर तैनात थे। वे वहा पर 18 साल तक रहे। इसके बाद उनका तबादला हो गया। इस समय वे बठिंडा में बतौर डिप्टी मैनेजर अपनी सेवाएं निभा रहे हैं। गगन देव साह ने बताया कि उनको अभी वहा पर पौने दो साल ही हुए थे कि युद्ध का एलान हो गया। हालाकि पहले से ही वहा पर गोलीबारी पाकिस्तान की ओर से शुरू कर दी गई थी। बंकर में रहे एक माह

गगन देव साह ने बताया कि युद्ध के एलान के बाद पूरा कारगिल खाली करवा लिया गया था। लेकिन हम वहीं पर डटे रहे। तीन घटे बैंक में बैठते और बाद में बंकर में चले जाते थे। ऐसा एक महीने तक चलता रहा। बाद में थोड़ी राहत दे दी गई थी और हम बंकर से बाहर भी आने लगे थे। उन्होंने बताया कि कारगिल युद्ध शुरू हो चुका था और हमें जम्मू आफिस से आदेश आ गए थे कि आप कारगिल की ब्राच बंद कर सुरक्षित जगह पर आ जाएं। लेकिन हमारे मैनेजर केवी गंजू बहुत बहादुर थे। उन्होंने स्टाफ को कहा कि हेड आफिस से आदेश आ गया है। अगर आप जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं लेकिन मैं तो यहीं पर ही रहूंगा। जिंदगी में पहली बार तो सैनिकों की सेवा करने का मौका मिला है। मैं इसको ऐसे नहीं जाने दूंगा। ऐसे में मैंने भी उनकी हा में हा मिला दी और वहीं पर डटे रहे। सैनिकों के लिए करते थे बैंक का काम

डिप्टी मैनेजर गगन देव ने बताया कि उस समय बैंक हमने इसलिए ही खोल कर रखा था ताकि सैनिकों को कोई परेशानी न हो। युद्ध के कारण सैनिकों को अपनी शहादत सामने दिखाई दे रही थी और उन्होंने अपनी जमा राशि घर भेजनी शुरू कर दी थी। हर रोज दो ढाई सौ बैंक ड्राफ्ट बनाते थे। इसके बाद सैनिक डाक के जरिए उनको अपने घर पर भेज दिया करते थे।

बहुत डरावना था मंजर

गगन देव साह बताते हुए भावुक हो गए कि वे बंकर में से सेना की गाड़ियों में सैनिकों के शव जाते देखते थे। उनको बहुत रोना आता था लेकिन गर्व भी महसूस होता था कि देश के बेटे देश पर कुर्बान होकर जा रहे थे।

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