अहंकार जीवन विकास का बाधक तत्व: डा. राजेंद्र मुनि

डा. राजेंद्र मुनि ने आदिनाथ के भक्ति स्वरूप की वंदना करते हुए कहा कि तीर्थंकर ऋषभ देव भगवान ने हमें धर्म का सही स्वरूप समझाया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 09:55 PM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 09:55 PM (IST)
अहंकार जीवन विकास का बाधक तत्व: डा. राजेंद्र मुनि
अहंकार जीवन विकास का बाधक तत्व: डा. राजेंद्र मुनि

संस, बठिडा: जैन सभा के प्रवचन हाल में जैन संत डा. राजेंद्र मुनि ने आदिनाथ के भक्ति स्वरूप की वंदना करते हुए कहा कि तीर्थंकर ऋषभ देव भगवान ने हमें धर्म का सही स्वरूप समझाया। श्रावक धर्म साधु धर्म दो प्रकार के मार्ग बतलाए, जिस मार्ग पर चल कर साधना संपन्न की जाती है।

उन्होंने बताया कि ज्ञान मार्ग क्रिया मार्ग में कठोरता का अनुभव होता है। कितु भक्ति मार्ग सीधा साधा सरल मार्ग है, जिसमें कोई शर्त कानून नहीं होते। कितु हृदय का समर्पण जरूरी है। बिना हृदय समर्पण हमारा भक्ति मार्ग फलिभूत नहीं होता भक्ति मार्ग के लिए अपना अहं का विसर्जन करना पड़ता है। मानव मन का यह अहंकार जीवन विकास में सबसे बड़ा अवरोधक होता है। एक बार शिष्य ने अपने गुरु से पूछा नरक में जाने का मुख्य कारण क्या है? गुरु ने सहज में पूछा यह प्रश्न करने वाला कौन है? शिष्य अकड़ कर बोला मैं मैं मैं पूछ रहा हूं आपसे। गुरु ने कहा यह मैं ही नरक जाने का मुख्य कारण है।

भक्ति में आचार्य मानतुंग कहते हैं आपका ज्ञान सागरवत है। मैं तो एक बूंद समान हूं। आप का दिव्य ज्ञान सूर्य की भांति है। मैं तो नाम मात्र का जुगनू हूं जो रात में टिमटिमाता रहता है। फिर भी बसंत ऋतु में आम मंजरी को देख जैसे कोयल मीठी वाणी से लोगों का मन मोह लेती है। मैं भी आपकी भक्ति में मोहित बन गया हूं अब बिना भक्ति किए रहना मेरे लिए असंभव है। प्रभो राम ने शबरी के बेर, कृष्ण ने सुदामा के चावल, महावीर ने चंदना के बाकुले ग्रहण किए इसी तरह मेरे भी भक्ति के दो बोल आप स्वीकार करो।

सभा में वर्तमान आचार्य ध्यान योगी डा. शिव मुनि महाराज का 81वां जन्मोत्सव मनाया गया। संघ के महामंत्री उमेश जैन ने समाज सेवियों का हार्दिक स्वागत किया। साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा भक्तामर जी का विशद विवेचन प्रदान किया गया।

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