शहर की सीमाएं सील पर निगम रोकेगा बेसहारा पशुओं की एंट्री
शहर में लावारिस पशुओं की एंट्री रोकने के लिए पहले भी शहर की सीमाओं को सील करने और वहां पर मजूदरों की तैनाती करने की योजना पर नगर निगम बठिडा पहले दो बार काम कर चुका है।
नितिन सिगला,बठिडा
शहर में लावारिस पशुओं की एंट्री रोकने के लिए पहले भी शहर की सीमाओं को सील करने और वहां पर मजूदरों की तैनाती करने की योजना पर नगर निगम बठिडा पहले दो बार काम कर चुका है। इस योजना को सफल बनाने के लिए निगम साल 2012-13 में करीब दो करोड़ रुपये और साल 2015 में लाखों रुपये खर्च कर चुका है। इसके बावजूद भी शहर में आवारा पशुओं की एंट्री नहीं रोक सका है। अब तीसरी बार नगर निगम ने शहर की सीमाओं को सील कर ग्रामीण एरिया के लोगों द्वारा रात के समय छोड़े जाने वाले आवारा पशुओं की एंट्री रोकने के लिए ट्रायल बेस पर 20 लोगों को रखने की योजना बनाई है। इस योजना को निगम के जनरल हाउस ने मंजूरी दे दी। वहीं 20 लोगों को दो महीने तक वेतन देने पर आने वाले खर्च करीब चार लाख रुपये भी मंजूर कर दिए हैं। निगम अधिकारियों का तर्क है कि यह योजना केवल ट्रायल बेस पर होगी, अगर यह योजना सफल होती है, तो इस आगे जारी रखा जाएगा। अगर नहीं होती है, तो इसे बंद कर आवारा पशुओं की एंट्री रोकने के लिए कोई ओर नई योजना पर काम किया जाएगा। ऐसे में शहर में लगातार बढ़ रहे आवारा पशुओं की समस्या को देखते हुए निगम ने पहले ही दो बार असफल हो चुकी इसी योजना को तीसरी बार हरी झंडी दी है। अब देखना होगा कि निगम की यह योजना कितनी सफल होगी।
दरअसल, ग्रामीण लावारिस पशुओं को शहर की सड़कों पर रात के समय छोड़ जाते हैं। शहर की सड़कों पर घूम रहे लावारिस पशुओं की गिनती दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। निगम हर रोज पांच से छह आवारा पशुओं को पकड़ता है ,जबकि दो गुना पशु शहर में एंट्री कर जाते हैं। नतीजा निगम शहर में पशुओं की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। निगम का मानना है कि शहर में ज्यादा संख्या लाचार व लावारिश पशुओं की है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग इन्हें रात को ट्रकों या ट्रालियों में लादकर सड़कों पर घूमने के लिए शहर में छोड़ जाते हैं। पानी या हरा चारे की तलाश में भटकते पशु यातायात के साथ-साथ सड़क हादसों का भी कारण बनते हैं। इन आवारा पशुओं की चपेट में आकर कई लोगों की मौत भी हो चुकी है, जबकि सैंकड़ों लोग घायल हो चुके हैं।
निगम ने विभिन्न गोशालाओं से साइन किया है एमओयू
निगम ने साल 2021 में तीसरी बार योजना बनाई है। निगम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि निगम ने बठिडा की विभिन्न गोशालाओं के साथ एमओयू किया हुआ है। इसके तहत निगम शहर में घूम रहे पशुओं को पकड़कर इन गोशालाओं में छोड़ता है। वहीं पशुओं की देखभाल व खुराक के लिए निगम डाइटमनी देता है। निगम के रिकार्ड अनुसार साल 2004 से लेकर 2021 तक साढ़े 12 हजार बेसहारा पशुओं को पकड़कर विभिन्न गोशालाओं में भेजा जा चुका है। इसके बावजूद भी यह समस्या जैसे की वैसे बनी हुई है। शहर के विभिन्न एंट्री प्वाइंट पर रात के समय आसपास के गांवों के लोग पशुओं को शहर की तरफ छोड़ देते हैं, जिसके कारण शहर में बेसहारा पशुओं की समस्या बड़ी गंभीर रूप धारण कर लेती है। निगम अधिकारियों ने तर्क दिया है कि मानसा रोड, डबवाली रोड, बादल रोड, मुल्तानियां रोड, मलोट रोड, गोनियाना रोड, कैट एरिया व शहर के एंट्री के हर छोटे-बड़े रास्तों से पशुओं को शहर में एंट्र होने से रोकने के लिए ट्रायल बेस पर लगभग दो महीने के लिए 20 लोगों की लेबर लगाई जाएगी ताकि पशुओं को रोका जा सके। यह लेबर आउसोर्स प्रणाली के जरिए ठेकेदार से ली जाएगी। 2013 में सीमाओं पर बनाई चेक पोस्ट बनीं कबाड़, सीसीटीवी कैमरे भी गायब इससे पहले निगम ने साल 2013 में पशुओं की एंट्री रोकने के लिए शहर की सीमाओं पर चेक पोस्ट बनाने की योजना बनाई थी। इसके तहत बठिडा डेवलपमेंट अथारिटी व जिला पुलिस विभाग ने एक साझा योजना के तहत शहर की सीमाओं पर चेक पोस्ट बनाए गए थे ताकि रात के समय शहर में छोड़े जाने वाले आवारा पशुओं को रोका जा सके। इसे सफल बनाने के लिए बीडीए ने करीब दो करोड़ रुपये खर्च कर शहर की सीमाओं पर करीब 22 चेक पोस्ट बनाए थे। इसमें शहर में एंट्री करने वाले वाहनों पर 24 घंटे नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे के अलावा पुलिस कर्मियों की तैनाती की गई थी, लेकिन विभागीय तालमेल न होने के कारण उक्त योजना ने दम तोड़ दिया है। नतीजा बीडीए द्वारा लगभग दो करोड़ रुपये खर्च कर शहर की सीमाओं पर बनाए चेक पोस्ट कबाड़ हो गए और गायब हो चुके हैं। वहीं लगाए गए सीसीटीवी कैमरे भी गायब हो चुके हैं। 2015 में तैनात किए गए घुड़सावर भी नहीं रोक पाए थे पशुओं की एंट्री
साल 2015 में ग्रामीणों को शहर में पशु छोड़ने से रोकने के लिए नगर निगम ने घुड़सवारों की मदद लेने की योजना बनाई थी। इसके लिए निगम ने ग्रामीण इलाकों में खेतों की रखवाली करने वाले घुड़सवारों से संपर्क कर उन्हें शहर में पैट्रोलिग करने का काम भी ठेके पर दिया था। तब निगम अधिकारियों का तर्क था कि घोड़े की आवाज सुनकर या देखकर आवारा पशु डर जाते हैं और वे उसके आसपास नहीं घूमते हैं। निगम की योजना के अनुसार शहर को दो हिस्से में बांटा गया है। शहर की सभी एंट्री प्वाइंट पर चेक पोस्ट बनाकर आसपास के तीन-चार किलोमीटर इलाके में गश्त की गई थी। इसके अलावा शहर के प्रमुख इलाकों में पोस्ट बनाए गए थे, ताकि अगर पशु शहर की बाहरी सीमाओं से अंदर आते है तो उन्हें शहर की एंट्री प्वाइंट पर ही रोका जा सके। वहीं एक टीम में दो से तीन लोग शामिल किए गए थे, लेकिन यह योजना भी सफल नहीं हो सकी और विवाद होने पर कुछ दिन बाद ही इसे बंद कर दिया था।