दिल्ली धरने के लिए गेहूं व लकड़ियां एकत्रित कर रहे युवा किसान

केंद्र सरकार द्वारा लागू किए तीन कृषि कानूनों को रद करवाने की मांग को लेकर स्थानीय बरनाला रेलवे स्टेशन पर लगाया किसानों का पक्का मोर्चा सोमवार को 222वें दिन में शामिल हो गया।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 03:17 PM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 03:17 PM (IST)
दिल्ली धरने के लिए गेहूं व लकड़ियां एकत्रित कर रहे युवा किसान
दिल्ली धरने के लिए गेहूं व लकड़ियां एकत्रित कर रहे युवा किसान

संवाद सहयोगी, बरनाला

केंद्र सरकार द्वारा लागू किए तीन कृषि कानूनों को रद करवाने की मांग को लेकर स्थानीय बरनाला रेलवे स्टेशन पर लगाया किसानों का पक्का मोर्चा सोमवार को 222वें दिन में शामिल हो गया। जिले भर के युवा किसानों में दिल्ली धरने में जाने का जुनून बढ़ता दिखाई दे रहा है। इसी के चलते गांव संघेड़ा के युवा किसानों ने ग्रुप बनाकर गांव से दिल्ली धरने की सेवा के लिए बड़ी मात्रा में गेहूं व लकड़ियां एकत्रित की।

किसान कुलदीप सिंह, गुरजंट सिंह, जगसीर सीरा ने बताया कि वह संघर्ष के पहले दिन से ही दिल्ली धरने में गए हुए थे। गेहूं का सीजन आने पर उन्हें अपने गांव लौटना पड़ा। अब गेहूं का सीजन खत्म हो चुका है और दोबारा धरने में जाने के लिए तैयारी जोरों पर है। दिल्ली धरने पर बैठे किसानों की सेवा के लिए और खाना बनाने के लिए गेहूं व लकड़ियां एकत्रित की जा रही हैं ताकि दिल्ली धरने पर बैठे किसानों को किसी तरह की मुश्किल का सामना न करना पडे़। किसानों ने कहा कि बड़ी मात्रा में गेंहू व लकड़ियां एकत्रित करके ट्रालियों में भर ली गई हैं। आने वाले एक-दो दिनों में जिले भर से हजारों युवा किसान दिल्ली की तरफ कूच करेंगे। किसानों ने कहा कि जब तक तीनों किसान विरोधी काले कानून रद नही होते तब तक संघर्ष इसी तरह जारी रहेगा। दिल्ली धरने पर बैठे किसानों को किसी भी चीज की कमी नहीं आने दी जाएगी। किसानों ने कहा कि सरकार कोरोना की समस्या से निपटने में बुरी तरह विफल रही है। सरकार आक्सीजन, वैक्सीन, वेंटीलेटर, दवाएं, मेडिकल स्टाफ व अन्य सुविधाओं की पूर्ति नहीं कर पा रही। सरकार का पूरा जोर सिर्फ लाकडाउन लगाकर लोगों को घरों में बंद करने पर लगा हुआ है। सरकार को लोगों की रोजी रोटी की कोई चिता नहीं है। युवा किसानों ने जिले भर के किसानों को अपील की है कि सभी को संघर्ष का साथ देना चाहिए ताकि केंद्र के तीनों खेती कानूनों को रद करवाया जा सके व अपनी जमीनों को प्राइवेट हाथों में जाने से बचाया जा सके।

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