संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत : ज्योतिषाचार्य घनश्याम रतूड़ी
बुराइयां त्याग कर अच्छाइयों की शरण में जाने की प्रेरणा देने वाला कार्तिक मास व्रत व त्योहारों की खान है।
हेमंत राजू, बरनाला
बुराइयां त्याग कर अच्छाइयों की शरण में जाने की प्रेरणा देने वाला कार्तिक मास व्रत व त्योहारों की खान है। इस माह के प्रत्येक दिन का अपना ही विशेष महत्व है। इसी कड़ी में सप्तमी में अष्टमी तिथि को महिलाएं पुत्ररत्न प्राप्ति की मनोकामना से व्रत रखती हैं। माताएं दिनभर अन्न जल त्याग कर अपने बेटे की दीर्घायु के लिए अहोई माता की पूजा अर्चना करती हैं।
ज्योतिषाचार्य घनश्याम रतूड़ी ने अहोई अष्टमी की महत्ता के बारे में बताया कि त्रेता युग में अकाल पड़ गया। बंजर हुई जमीनों में अन्न की पैदावार नहीं होने से बच्चों के भूखे मरने की नौबत आ गई। चारों और मायूसी के माहौल में एक दिन महिलाओं को लिबड़े मुंह वाली एक औरत भूखे बच्चों की ओर जाते दिखी। अपने बच्चों की हालत से व्याकुल हुई माताओं ने उस महिला को अहोई मां का रूप मानते हुए उसकी पूजा-अर्चना की जिससे प्रसन्न होकर देवी स्वरूपा ने अपनी कृपा बरसाई तो चारों और खाद्यान के भंडार लग गए। अपने बच्चों के प्रति मां की ममता से प्रभावित हुई मां ने वरदान दिया कि जो भी स्त्री कार्तिक मास की सप्तमी अथवा अष्टमी को व्रत रखकर उसका ध्यान करेगी तो पुत्रहीन को पुत्र प्राप्ति जबकि मां के बच्चों की उम्र लंबी होगी। तभी से यह पर्व पूरी श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाया जाता है। ---------------- यह है व्रत की विधि
ज्योतिषाचार्य घनश्याम रतूड़ी ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार इस दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार के साथ अपने पारंपरिक एवं पौराणिक जेवर पहनकर बड़े बुजुर्गों की पूजा के साथ-साथ कुम्हारी का आशीर्वाद लेने का प्रावधान है। स्त्रियां वस्त्र, फल बेर, चिब्बड़ व फली सहित शगुन रूपी कुछ राशि आदि सामग्री से सजी थाली श्रद्धा भाव से इन्हें अर्पण करके उनकी पूजा करती हैं। माता अहोई को प्रसन्न करने की मंशा से स्त्रियां दिनभर अन्न जल का त्याग कर भक्तिभाव में रहती हैं। दोपहर बाद तीन बजे कथा श्रवण करने के उपरांत थोड़ा पानी पीकर गला तर किया जाता है। व्रत विधि अनुसार सायंकाल आसमान में तारे निकलने पर ध्रुव तारा जो लगभग 7.30 बजे निकलता है, उसे अर्घ्य देकर व पूजा-अर्चना करने उपरांत व्रत खोला जाता है।