विदेश की चकाचौंध नहीं भायी, गाेसेवा का जज्बा पंजाब खींच लाया, 82 साल की उम्र में गजब का जुनून

पंजाब के अमृतसर के एक व्‍यक्ति नौकरी से रिटायर होने के बाद जर्मनी में अपने बच्‍चों के पास रह रहे थे। लेकिन वहां की चकाचौंध नहीं भायी और गोसेवा का जज्‍बा उनको पंजाब की माटी तक खींच लाया। अब वह अमृतसर में गायों की सेवा में व्‍यस्‍त हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Tue, 22 Dec 2020 06:22 PM (IST) Updated:Wed, 23 Dec 2020 08:13 AM (IST)
विदेश की चकाचौंध नहीं भायी, गाेसेवा का जज्बा पंजाब खींच लाया, 82 साल की उम्र में गजब का जुनून
अमृतसर के श्री रामतीर्थ स्थित बाबा भौड़ेवाला गौशाला में गायों की सेवा करते मायाराम। (जागरण)

अमृतसर, [नितिन धीमान]। जीवन चलने का नाम है। उम्र मायने नहीं रखती, बस दिल- मतिष्‍क में कुछ करने की ऊर्जा व जज्‍बा बनी रहनी चाहिए। अमृतसर के मायाराम शर्मा सरकारी सेवा से सेवानिवृत होने के बाद जर्मनी अपने बच्‍चों के पास चले गए, लेकिन वहां की चकाचौंध भरी जिंदगी उनको नहीं भायी। दिल में गौसेवा का जज्‍बा था और यही जज्‍बा उनको पंजाब की माटी पर खींच लाया। अब वह उम्र के चौथे पड़ाव में नई ऊर्जा के साथ गौ सेवा में जुटे हैं। 82 साल की उम्र में भी उनका जुनून लोगों को हैरत में डालने के साथ ही प्रेरित भी कर रहा है।

जर्मनी का मोह छोड़ गौ सेवा के लिए भारत लौटे 82 साल के मायाराम

82 वर्षीय मायाराम शर्मा खाद्य एवं आपूर्ति भाग में नियंत्रक के रूप में सेवाएं देने के बाद जब सेवामुक्त हुए तब दूसरों की तरह उन्होंने बाकी जिंदगी आराम और सुकून से बिताने की बजाय गायों की सेवा का संकल्प लिया। सन् 1998 में सेवानिवृत्ति के बाद मायाराम शर्मा जर्मनी में अपने बच्चों के पास चले गए, लेकिन वहां की चकाचौंध में उनका मन नहीं लगा। वहां दस साल रहने के बाद वह गौ सेवा के लिए भारत लौट आए।

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वह 2012 में हरिद्वार में स्थित आश्रम में गौसेवा के पुण्य कार्य में जुट गए। चार साल तक वहां निष्काम भाव से सेवा करने के बाद वह अमृतसर में श्री रामतीर्थ स्थित बाबा भौड़ेवाला गौशाला में पहुंचे। यहां गायों की देखरेख का जिम्मा संभाला। सुबह आठ बजे से शाम छह बजे तक मायाराम शर्मा गायों की देखरेख में जुटे रहते हैं। गौशाला में 650 से अधिक गउएं हैं। गायों को नहलाने, चारा खिलाने तक का सारा काम वह खुद करते हैं। हालांकि, गौशाला में और भी लोग उनकी मदद के लिए मौजूद हैं।

गायों की सेवा में जुटे मायाराम शर्मा। (जागरण)

सेवानिवृत्त होने के बाद गौ सेवा को समर्पित कर दिया जिंदगी का चौथा पड़ाव

वह कहते हैं कि जब तक सांस है, गायों की सेवा करते रहेंगे। उन्हें गौशाला में आकर नई ऊर्जा मिलती है। उनका कहना है कि अफसोसनाक पहलू है कि पंजाब सरकार 'काऊ सेस' के रूप में करोड़ों रुपये जमा कर रही है, लेकिन इस राशि का इस्तेमाल गायों के संरक्षण व उत्थान में नहीं हो रहा। यह सारा पैसा न जाने कहां जा रहा है।

संभाल रहे 650 बेसहारा गायों की जिम्मेदारी, बजट का भी कर रहे इंतजाम

वह कहते हैं कि नगर निगम प्रशासन ने भी यहां सैकड़ों बेसहारा गायें भेजी हैं। इसकी एवज में निगम ने प्रतिमाह कुछ राशि देने की बात कही, लेकिन आज तक फूटी कौड़ी नहीं मिली। हम अपने साधनों व लोगों से चंदा एकत्रित कर गायों के लिए चारे व दाने की व्यवस्था कर रहे हैं। वर्ष 2010 में पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल बलराम दास टंडन ने पत्र जारी किया था कि गौशाला को प्रतिमाह पचास हजार रुपये की राशि जारी की जाए।

उन्‍होंने बताया कि शुरुआती वर्षों में यह राशि मिलती रही, फिर धीरे-धीरे इस पर विराम लग गया। पिछले दो सालों से तो एक पैसा नहीं मिला। अब नगर निगम प्रशासन के पास 34 लाख रुपये बकाया है। इस राशि को प्राप्त करने के लिए कई बार अधिकारियों के पास गए, लेकिन सकारात्मक जवाब नहीं मिला। सरकारी ग्रांट बंद होने के बाद भी गायों की सेवा व संरक्षण का क्रम नहीं टूटा। मायाराम खुद चंदा एकत्रित कर इस काम आगे बढ़ा रहे हैं।

उच्च पदों से सेवानिवृत्त लोगों को जोड़ा

बाबा भौड़ेवाला गौशाला सेवा समिति के उपाध्यक्ष मायाराम शर्मा के साथ सरकारी विभागों से सेवामुक्त हुए अधिकारियों की टीम भी है। इसमें पंडित ताराचंद शर्मा का नाम उल्लेखनीय है। सभी सदस्य स्वेच्छा से दान देते हैं और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं। गायों को सर्दी व गर्मी से बचाने के लिए आधुनिक कमरे व शेड बनवाए गए हैं। प्रतिमाह गौमाता का पूजन किया जाता है।

पंजाब में 450 गौशालाएं

पंजाब में 450 गौशालाएं हैं। इनमें करीब ढाई लाख गायें व अन्य पशु हैं। काऊ सेस की राशि का सही इस्तेमाल न हो पाने के कारण गौशालाओं का संचालन मुश्किल हो रहा है।

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