संघ ने 17 जगहों पर शस्त्र पूजन कर मनाया स्थापना दिवस

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से महानगर के 17 नगरों में शस्त्र पूजन का आयोजन कर अपना 96वां स्थापना दिवस मनाया।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 04:49 PM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 04:49 PM (IST)
संघ ने 17 जगहों पर शस्त्र पूजन कर मनाया स्थापना दिवस
संघ ने 17 जगहों पर शस्त्र पूजन कर मनाया स्थापना दिवस

जासं, अमृतसर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से महानगर के 17 नगरों में शस्त्र पूजन का आयोजन कर अपना 96वां स्थापना दिवस मनाया। शस्त्रपूजन में संघ अधिकारियों ने स्वयंसेवकों को शक्ति के आहवान शस्त्र पूजन की महत्ता के बारे में बताते हुए कहा कि संघ के हमेशा ही राष्ट्रहित में अग्रणी रहकर काम किया है और आगे भी यह क्रम जारी रहेगा। बता दी कि 27 सितंबर 1925 की संघ की स्थापना नागपुर में डा. केशव हेडगेवार ने की थी।

रणजीत नगर में संघ के सह प्रांत संघ चालक रजनीश अरोड़ा, शीतला नगर में विभाग कार्यवाह रजत सरीन, शिवाला नगर में विभाग प्रचारक अक्षय कुमार, मालवीय नगर में महानगर कार्यवाह कंवल कपूर, भद्रकाली नगर में सह महानगर कार्यवाह रणजीत मोहन, महानगर संघ चालक प्रवीण मेहरा, विभाग संपर्क प्रमुख प्रदीप मेहरा, महानगर सह बौद्धिक प्रमुख जतिन चोपड़ा, महानगर शारीरिक प्रमुख उदित कुमार ने शस्त्र पूजन के कार्यक्रमों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी में संघ के स्वयंसेवकों ने अहम भूमिका अदा करते हुए समाज की सेवा की। विजयदशमी की बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि हिदू धर्म की रक्षा के साथ ही अखंड भारत के अस्तित्व और देश धार्मिक, सामाजिक भाईचारे को बनाए रखने के लिए ही संघ की स्थापना की गई थी।

प्रांत संघ चालक ने कहा कि शस्त्र पूजन सनातन धर्म की पौराणिक परंपरा है। शस्त्र पूजन कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि सनातन धर्म की पौराणिक मान्यता है, जिसका निर्वहन करना प्रत्येक भारतीय का नैतिक दायित्व है।

उन्होंने कहा कि देश की अखंडता के साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक एकता को बनाए रखना हर नागरिक का सामाजिक दायित्व है। देश की भावी पीढ़ी को अपनी गौरवमय विरासत से अवगत करवाना समय की मांग है। उन्होंने कहां की सभी भाषाओं का ज्ञान अच्छी बात है, लेकिन मौजूदा समय में हम अपने बच्चों पर अंग्रेजी भाषा थोप रहे हैं, जिसके चलते बच्चे दुविधा में पड़ जाते हैं ना वह अंग्रेजी में वह पूर्ण होते हैं और ना ही मातृभाषा हिदी को सही ढंग से समझ पाते हैं।

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