नन्हीं जान हाइड्रोसिफलिस का शिकार, पीजीआइ में होगा उपचार

पांच माह की अवनीत कौर जलशीर्ष रोग की चपेट में है। बची के सिर का आकार बच्चों से तीन गुणा अधिक बड़ा है। जलशीर्ष यानी हाइड्रोसिफलिस रोग की वजह से बची के मस्तिष्क में फ्लूड भर चुका है। बची की जिदगी खतरे में है लेकिन आर्थिक ²ष्टि से कमजोर माता-पिता बेबस हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 28 Jan 2021 06:05 PM (IST) Updated:Thu, 28 Jan 2021 06:05 PM (IST)
नन्हीं जान हाइड्रोसिफलिस का शिकार, पीजीआइ में होगा उपचार
नन्हीं जान हाइड्रोसिफलिस का शिकार, पीजीआइ में होगा उपचार

नितिन धीमान, अमृतसर : पांच माह की अवनीत कौर जलशीर्ष रोग की चपेट में है। बच्ची के सिर का आकार बच्चों से तीन गुणा अधिक बड़ा है। जलशीर्ष यानी हाइड्रोसिफलिस रोग की वजह से बच्ची के मस्तिष्क में फ्लूड भर चुका है। बच्ची की जिदगी खतरे में है लेकिन आर्थिक ²ष्टि से कमजोर माता-पिता बेबस हैं। यह परिवार डेरा बाबा नानक का रहने वाला है और बच्ची अमृतसर के गुरुनानक देव अस्पताल में उपचाराधीन है। अमृतसर में हाइड्रोसिफलिस रोग से पीड़ित यह दूसरा बच्चा है। इससे पूर्व अमृतसर के कोट खालसा क्षेत्र में ऐसा ही एक बच्चा जन्मा था।

अवनीत का उपचार गुरुनानक देव अस्पताल में संभव नहीं, क्योंकि यहां न्यूरोसर्जन की उपलब्धता नहीं है। उसे पीजीआइ चंडीगढ़ भेजा जाएगा। हालांकि फिलहाल उसे पीडिएट्रिक वार्ड में रखकर इंफेक्शन खत्म करने के लिए दवाएं व इंजेक्शन दिए जा रहे हैं। बच्ची के पिता के अनुसार वह पीजीआइ तक जाने का किराया खर्च करने में असमर्थ है। हमारी मदद की जाए। मस्तिष्क की बीमारी है हाइड्रोसिफलिस

हाइड्रोसिफलिस रोग मस्तिष्क से जुड़ा है। ज्यादातर मामलों में इस बीमारी की वजह कुपोषण ही माना जाता है। गर्भावस्था के दौरान फोलिक एसिड व आयरन की कमी की वजह से ऐसा होता है। जन्म से ही बच्चे के शरीर की तुलना में उसका सिर तेजी से बड़ा होता चला जाता है। मस्तिष्क में पानी की मात्रा काफी बढ़ जाती है। माथे की हड्डयिां तेजी से फैलने लगती हैं। नसें फूल जाती हैं। सिर का आकार तीन सालों तक यह नब्बे फीसद तक बढ़ जाता है। यह है उपचार

विशेषज्ञों की मानें तो जलशीर्ष से ग्रसित बच्चों के आपरेशन के दौरान एक नली को मस्तिष्क में डालकर बड़ी रक्तवाहिनी में छोड़ दिया जाता है। इस नली से मस्तिष्क में जमा फ्लूड शरीर से बाहर निकल जाता है। भविष्य में फ्लूड न बने, इसके लिए दवाएं दी जाती हैं। जन्म के पहले दो तीन महीनों में ऐसे बच्चों की सर्जरी हो जाए तो ठीक है, वरना यह जोखिम भरा है।

chat bot
आपका साथी