बेमिसाल 73 वर्ष के लाल
अमृतसर 73 वर्ष के लाल सिंह उन तमाम किसानों के लिए एक मिसाल हैं जो खेती को घाटे का सौदा मानते हैं। लाल सिंह कहते हैं कि खेती कभी घाटे का सौदा नहीं होती। बशतर्ें उसे इमानदारी से किया जाए।
दुर्गेश मिश्र, अमृतसर
73 वर्ष के लाल सिंह उन तमाम किसानों के लिए एक मिसाल हैं जो खेती को घाटे का सौदा मानते हैं। लाल सिंह कहते हैं कि खेती कभी घाटे का सौदा नहीं होती। बशतर्ें उसे इमानदारी से किया जाए। चार एकड़ में पिछले 25 सालों से फूलों की खेती कर रहे अमृतसर के कटरा कर्म सिंह निवासी लाल सिंह 1965 के ग्रेजुएट हैं। वे कहते हैं कि पहले हम रवायती खेती करते थे। पैदावार ठीकठाक होती थी। इतना कम भी नहीं होती थी कि गुजर बसर न हो। करीब ढाई दशक पहले फूलों की खेती शुरू की। इसमें मुनाफा हुआ तो रवायती खेती की तरफ मुड़ कर नहीं देखा। वे कहते हैं कि हमने खेती के लिए कभी कोई लोन नहीं किया। अगर लिया भी तो उसे समय पर चुकाया।
अन्य किसानों ने भी शुरू की फूलों की खेती
लाल सिंह कहते हैं कि जब उन्होंने फूलों की खेती शुरू की तब वे यहा के इकलौता किसान हुआ करते थे जो गुलाब और गेंदा की खेती करते थे। कुछ साल बाद अन्य किसान भी उनके पास प्रशिक्षण लेने आने लगे और देखते-देखते आपसपास के कई गावों के किसान भी अब फूलों की खेती करने लगे हैं।
दो सौ लोगों को मिला है रोजगार
लाल सिंह कहते हैं कि उनके इस कारोबार से करीब दो सौ महिलाएं परोक्ष रूप से जुड़ी हैं। जिन्हें रोजगार मिला हुआ है। वे कहते हैं कि फूलों को तोड़ने और गोड़ने का काम सिर्फ महिलाएं हीं करती हैं। गुलाब के फूलों की तोड़ाई सुबह 8 बजे से पहले पहले हो जाती है। इस काम में पहिलाएं दक्ष होती हैं। ये महिलाएं रोजाना दो से तीन सौ रुपये तक अर्जित कर लेती हैं।
सौ से दो सौ रुपये किलो बिकता है फूल
वे कहते हैं कि वैवाहिक सीजन में 100 से 200 रुपये किलो के हिसाब से गुलाब के फूल बिक जाते हैं। जबकि गेंदा के फूल 20-25 रुपये किलो के हिसाब से बिकते हैं। लाल सिंह कहते हैं कि फूलों का मंडीकरण न होने की वजह से कुछ समस्या जरूर होती है। यदि इसका मंडीकरण हो तो फूल उत्पादकों को ज्यादा लाभ मिल सकता है। फिर भी यह घाटे का सौदा नहीं है।
25 से 30 किलो प्रतिदिन निकलता है गुलाब
मार्च-अप्रैल में प्रति एकड़ 25 से 30 किलो तक गुलाब के फूलों की तोड़ाई हो जाती है। कभी-कभी यह मात्रा एक क्विंटल तक भी पहुंच जाती है। उस समय फूल अधिक होने के कारण उनकी पंखुड़ियों को सुखाकर मसाला कारोबारियों व गुलकंद या इ़त्र बनाने वालों को भी बेच देते हैं। लाल सिंह कहते हैं कि उनका बेटा डी फार्मेसी है। और वह भी उनके इस काम में हाथ बंटाता है।
पालक व गुलदावदी साथ-साथ
73 साल के हो चुके लाल सिंह कहते हैं कि वे सुबह छह बजे खेतों में आ जाते हैं और शाम को पाच बजे तक यहीं रहते हैं। कहते हैं खेतों में गुलदावदी के पौधे लगा रखे हैं। इसके साथ ही साथ पालक भी बीज रखी है। गुलदावदी के फूल आने से पहले पालक तैयार हो जाएगी, जिसे सब्जी व्यापारी को बेच देगें। और फूल तो अपना है ही। वे कहते हैं कि इस तरह से वे प्रतिमाह 25-30 हजार रुपये प्रतिमाह कमाई कर लेते हैं।