सिर्फ आमंत्रण से खुश नहीं शहीदों के परिवार, सरकारी दफ्तरों में भी चाहते हैं पहल के आधार पर हों काम

जलियांवाला नरसंहार को 101 बरस बीत चुके हैं। वतन पे मिटने वालों को सौ साल बाद नाम मिला है। सम्मान तो कई बार मिलता रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Jan 2021 03:00 AM (IST) Updated:Tue, 26 Jan 2021 03:00 AM (IST)
सिर्फ आमंत्रण से खुश नहीं शहीदों के परिवार, सरकारी दफ्तरों में भी चाहते हैं पहल के आधार पर हों काम
सिर्फ आमंत्रण से खुश नहीं शहीदों के परिवार, सरकारी दफ्तरों में भी चाहते हैं पहल के आधार पर हों काम

नितिन धीमान, अमृतसर

जलियांवाला नरसंहार को 101 बरस बीत चुके हैं। वतन पे मिटने वालों को सौ साल बाद नाम मिला है। सम्मान तो कई बार मिलता रहा है। जब सरकार जलियांवाला बाग नरसंहार की बरसी मनाती है तब शहीदों के परिवारों को बुला लिया जाता है। मगर बाद में पूछा तक नहीं जाता। सरकारी कार्यालयों व अस्पतालों में काम करवाने के लिए दिक्कते आती हैं। यह बातें सोमवार को अमृत आनंद पार्क में हुए समारोह में सम्मानित किए गए शहीदों के स्वजनों ने कहीं। उनकी आंखों में सरकारी उपेक्षा का प्रतिबिब साफ दिखाई दे रहा था। कई परिवारों ने सरकारी नौकरी नहीं मिलने का दर्द भी बयां किया। 1926 में मुआवजा घोषित किया, आज तक नहीं मिला

शहर के चौक पासियां में रहने वाले टेकचंद के दादा खुशीराम नरसंहार में शहीद हुए। उनके सीने पर गोली लगी थी। टेकचंद के अनुसार मान सम्मान अलग बात है, पर सरकार और सरकारी तंत्र पूछता तक नहीं कि परिवार कैसा है। सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया। सिर्फ सम्मानित करने को बुला लिया जाता है। जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद सन 1926 में ब्रिटिश सरकार ने प्रत्येक शहीद के परिवार को 8640 रुपये मुआवजा राशि देने की घोषणा की थी। ब्रिटिश सरकार ने तो यह राशि जारी नहीं की, पर देश की आजादी के बाद आज तक भारत सरकार भी यह छोटी सी राशि नहीं दे रही। 100 साल बाद आया सम्मान का न्यौता

गुरदासपुर के सतवंत सिंह तुंग के अनुसार उनके दादा शहीद हुए थे। 100 साल बाद सरकार को उनके परिवार की याद आई है। पहली बार सम्मान मिला है। आज फº महसूस हो रहा है, पर सरकार इतने साल तक कहां रही। हम गुमनामी में रहे। परेशानियां झेलीं। इसी प्रकार बुजुर्ग जसवंत सिंह के दादा टेक सिंह शहीद हुए थे। उन्हें भी सरकार की ओर से पहली बार सम्मान का न्यौता मिला। जसवंत मजदूरी करके परिवार का पेट पाल रहे हैं। उनके अनुसार इस आयु में काम नहीं होता। सरकार कम से कम एक बच्चे को सरकारी नौकरी दे। सरकारी दफ्तरों में पहल के आधार पर हो काम

शहर के निवासी महेश बहल के दादा लाला हरिराम बहल ने शहादत पाई थी। उनके अनुसार दशकों से अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी जेब में भारत सरकार का एक पहचान पत्र है। शहादत के बदले यही कार्ड मिला। इससे अमृतसर से जालंधर तक टोल नहीं लगता, पर लुधियाना जाने के लिए टोल देना पड़ता है। वह चाहते हैं कि सरकारी विभागों, अस्पतालों में काम से जाएं तो पूरा सम्मान मिले। पहल के आधार पर उनका काम हो। शहीद परिवारों को पेंशन व ताम्रपत्र दे सरकार

सुनील कपूर के परदादा वासुमल कपूर इस नरसंहार में शहीद हुए थे। सोमवार को सरकारी सम्मान पाने के बाद सुनील ने कहा कि शहीद परिवारों के साथ अन्याय होता रहा है। सरकार कम से कम इन्हें ताम्रपत्र ही प्रदान करे। स्वतंत्रता सैनिक पेंशन स्कीम में यह विसंगति है कि पेंशन का हकदार शहीद की पत्नी अथवा बेटा होगा। जलियांवाला बाग नरसंहार को 101 साल हो गए हैं। सरकार बताए क्या शहीद की पत्नी अथवा बेटा जीवित हो सकते हैं। पंजाब सरकार कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजे और इसमें बदलाव किया जाए। सुनील कपूर के अनुसार पिछले बीस साल से उन्होंने शहीदों के 16 परिवारों को ढूंढ़कर प्रशासन की सूची में सूचीबद्ध किया है। उनकी अपील यह भी है कि घटना में जख्मी हुए लोग जो बाद में शहीद हुए, उन्हें भी सूचीबद्ध किया जाए।

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