पराली को खेत में मिलाने के लिए किराये पर लें मशीनरी
प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है।
पंकज शर्मा, अमृतसर: प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है। हालांकि इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रशासन की ओर से विभिन्न समितियों और समूहों की सहायता से बेहतर प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रशासन की ओर से पराली को आग न लगाने के लिए किसानों को जागरूक करने के उद्देश्य से गाव स्तर पर कैंप लगाए जा रहे हैं। कृषि विभाग किसानों को पराली मैनेजमेंट करने के गुर सिखाता है। किसानों को खेती के लिए मशीनरी किराये पर देने की भी व्यवस्था है। इसके लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप, कोआपरेटिव सोसायटियों और पंचायतों का सहयोग लिया जाता है। इनके जरिए यह सुविधा किसानों को दी जाती है। ऐसे में किसान पराली की संभाल या उसे खेत में मिलाने के लिए इन मशीनों का लाभ ले सकते हैं।
जिले में 343 सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं जिनसे किसान पराली को मैनेज करने के लिए उपयोग होने वाली मशीनरी हासिल कर सकते हैं। इनके पास 920 अलग-अलग तरह की मशीनें हैं। इसी तरह जिले में 171 सहकारी सोसायटिया हैं जिनके पास अलग-अलग तरह की 650 मशीनें हैं। जबकि दो पंचायतें भी हैं जिनसे किसान मशीनरी किराये पर हासिल कर सकते हैं। इन पंचातयों के पास भी 12 अलग-अलग तरह की मशीनें है। इनमें रोटा वेटर, हैप्पी सीडर, जीरो ट्रिल, उलट वाल्ट हैलट, मोल्ड मशीनें आदि उपलब्ध हैं। जिले में इस बार 167 किसानों के खिलाफ पराली जलाने पर की कार्रवाई
प्रशासन की ओर से पराली को आग लगाने से रोकने के लिए जिला स्तर पर राजस्व विभाग, पुलिस विभाग, प्रदूषण कंट्रोल विभाग, रेवेन्यू विभाग, पटारी, बिजली विभाग, जिला सिविल प्रशासन के अधिकारी लेकर कमेटिया बनाई जाती हैं। इनकी रिपोर्ट के मुताबिक आरोपित किसानों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। जिले में इस बार करीब 167 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। कुछ को जुर्माना और उनके खिलाफ पुलिस के पास मामले भी दर्ज किए गए हैं। बहुत सारे किसानों के भूमि रिकार्ड में लाल सियाही से शिकायत भी दर्ज की गई है। इससे उन्हें सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगी और सब्सिडी आदि में भी कटौती करने का प्रावधान है। सेटेलाइट से होती है पराली को आग लगने की मानिटरिग
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व कृषि विभाग की ओर से स्थापित किए संयुक्त सेटेलाइट के माध्यम से खेतों में पराली को आग लगाने की सूचना विभागीय अधिकारियों के पास पहुंचती है। इसके बाद आग लगाने वाले किसानों की खेतों की पहचान करके उनकी रिपोर्ट अगली कार्रवाई के लिए जिला प्रशासन, कृषि विभाग, पुलिस विभाग, प्रदूषण कंट्रोल विभाग और रेवेन्यू रिकार्ड विभाग के पास पहुंचती है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही आगे कार्रवाई होती है। जिले में 1.80 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान व बासमती की खेती
जिले में 1.80 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान व बासमती की खेती की जाती है। इसमें 70 हजार हेक्टेयर भूमि पर बासमती और 1.10 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती होती है। बासमती का प्रति एकड़ औसत 17 से 18 क्विंटल उत्पादन होता है जबकि धान का उत्पादन प्रति एकड़ करीब 30 से 35 क्विंटल होता है। बासमती की पराली कम होती है जबकि धान अधिक पराली पैदा करता है। पराली को मैनेज करने के लिए दो विधिया अपनाई जा रहीं
जिला कृषि विकास अधिकारी मस्तेंद्र सिंह कहते हैं कि इस मामले में सिर्फ कृषि विभाग काम नही करता बल्कि सारे विभागों के अधिकारियों की बनाई कमेटी और नोडल अधिकारी ज्वाइंट वर्क करते हैं। जिले में पराली को मैनेज करने के लिए दो विधिया अपनाई जा रही है पहली विधि इनसेटू और दूसरी विधि एक्ससेटू है। पहली विधि के माध्यम से पराली को अलग अलग ढंग से खेतों में ही मिलाया जाता है। दूसरी विधि से पराली की मशीनों के साथ गांठे बनाकर उनको अलग-अलग कार्यो के लिए व्यापारिक स्तर पर उपयोग किया जाता है।