हिदी साहित्य में होनी चाहिए युवा बातचीत

जमाना बदलता है। उसके साथ ही संघर्ष भी। आज जीवन कठिन है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 20 Oct 2019 07:42 PM (IST) Updated:Sun, 20 Oct 2019 07:42 PM (IST)
हिदी साहित्य में होनी चाहिए युवा बातचीत
हिदी साहित्य में होनी चाहिए युवा बातचीत

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : जमाना बदलता है। उसके साथ ही संघर्ष भी। आज जीवन कठिन है। युवाओं को हम नहीं कोस सकते। उनके जीवन में इतना संघर्ष भर चुका है कि हम उन्हें पुराने समय का ताना नहीं मार सकते। उनके साथ उनके समय को समझना होगा। जिसमें काफी कुछ है। जो हमें एक जगह टिकने नहीं देते। ऐसे में हिदी साहित्य में इस युवा बातचीत को आगे रखना होगा। तभी वो युवाओं की मनपसंद भाषा बन पाएगी। साहित्यकार नरेंद्र मोहन ने कुछ इन्हीं शब्दों में युवा और साहित्य पर चर्चा की। युटी गेस्ट हाउस सेक्टर-6 में वे रविवार को चंडीगढ़ साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित विचार चर्चा में शामिल हुए। मंटों ने सिखाई निर्भीकता

नरेंद्र ने कहा कि उनका जन्म लाहौर में हुआ। तब विभाजन नहीं हुआ था। शुरुआती दिनों में मंटों को पढ़ना शुरू किया। जिसकी वजह से मैं भी लिखना शुरू हो गया। ऐसा कह सकते हैं कि बचपन में उनसे ही प्रेरणा मिली। उनकी निर्भीकता को मैं बहुत पंसद करता था, उनके उठाए विषय और लिखने का सलीका मुझे बहुत पसंद रहा। आज भी है, इसलिए उन पर ही बात कर रहा हूं क्योंकि इन दिनों ऐसे लेखकों और अपने समय में उनकी दिलेरी को बताना जरूरी है। इसके अलावा मेरे जीवन में मेरे मित्र भीष्म सहानी की कहानियों ने भी बहुत प्रभाव डाला। हिदी साहित्य में थोड़ी बहुत अंग्रेजी जायज है

हिदी और अंग्रेजी भाषा की लड़ाई पर नरेंद्र ने कहा कि इन दिनों बोलचाल में दोनों ने घुसपैठ किया है। मगर लेखन की बात और है। कुछ शब्द अंग्रेजी के हिदी साहित्य में पढ़े जाते हैं। मगर इन्हें कुछ ही रखना चाहिए। जो बिल्कुल उस भाव को स्पष्ट करे। इन दिनों मैं ऐसी ही कहानी लिख रहा हूं जिसमें एक आदमी और औरत है और आज का परिवेश। जिसमें रिश्ते किस कदर बदल गए हैं। इसके अलावा छत्रपति शिवाजी पर भी एक किताब लिख रहा हूं। उम्मीद है, जल्द ही ये किताबें प्रकाशित होंगी।

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