दलों में बंटा सुखराम परिवार फिर किसी सुरक्षित आश्रय की तलाश में

प्रदेश की राजनीतिक फिजाओं में जल्द गरमाहट देखने को मिलेगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम के परिवार ने अब ही दल में रहने का निर्णय लिया है। हालांकि पत्ते नहीं खोले हैं। सुखराम के विधायक पुत्र अनिल शर्मा भाजपा में हैैं जबकि सुखराम व अनिल का बेटा कांग्रेस में है।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Sat, 02 Oct 2021 11:40 PM (IST) Updated:Sat, 02 Oct 2021 11:40 PM (IST)
दलों में बंटा सुखराम परिवार फिर किसी सुरक्षित आश्रय की तलाश में
संचार क्रांति के मसीहा पंडित सुखराम व उनका पोता आश्रय शर्मा। जागरण र्आकाइव

 मंडी, हंसराज सैनी। प्रदेश की राजनीतिक फिजाओं में जल्द गरमाहट देखने को मिलेगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम के परिवार ने अब एक ही दल में रहने का निर्णय लिया है। यह दल कौन होगा,हालांकि इसको लेकर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। वर्तमान में मंडी सदर से सुखराम के विधायक पुत्र अनिल शर्मा भाजपा में हैैं जबकि सुखराम व अनिल का बेटा आश्रय शर्मा कांग्रेस में है। आश्रय ने पिछली बार लोकसभा का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था, जिसे रामस्वरूप शर्मा ने शिकस्त दी थी। अब कांग्रेस से टिकट न मिलने की स्थिति में दादा-पोता (सुखराम व आश्रय) फिर सुरक्षित आश्रय की तलाश में हैैं। राजनीतिक गलियारों में जिस तरह की अटकलें चल रही हैं,उससे पूर्व मंत्री अनिल शर्मा का वनवास जल्द समाप्त होने की संभावना प्रबल हो गई है। करीब माह भर पहले सदर हलके के कोटली में आयोजित मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की जनसभा में इसकी झलक देखने को मिली थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे आश्रय शर्मा भाजपा का दामन थाम सकते हैं। उनकी वापसी से कांग्रेस के समीकरण बिगड़ सकते हैं तो भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलेगी।

वीरभद्र पर जलील करने का आरोप लगा कांग्रेस से किया था किनारा

करीब चार साल पहले पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र ङ्क्षसह पर जलील करने का आरोप लगाकर पंडित सुखराम परिवार विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद भाजपा में शामिल हो गया था। सदर हलके से अनिल शर्मा ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा था। विजयी होकर जयराम सरकार में ऊर्जा मंत्री बने थे।

2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट को लेकर ठनी थी

2019 के लोकसभा चुनाव में टिकट को लेकर सुखराम परिवार व भाजपा में ठन गई थी। भाजपा का टिकट मिलता न देख पंडित सुखराम व आश्रय शर्मा ने दिल्ली में कांग्रेस में वापसी कर ली थी। आश्रय कांग्रेस का टिकट लेने में सफल रहे थे। कांग्रेस में वापसी के पीछे तर्क दिया था कि उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण नहीं की थी। विवाद बढऩे पर अनिल शर्मा को मंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। इसके बाद भाजपा व अनिल शर्मा में लगातार दूरियां बढ़ती गई। सार्वजनिक मंचों पर दोनों ओर से एक-दूसरे पर तीखे हमले किए गए। इसके बाद अनिल शर्मा ने भाजपा से पूरी तरह से किनारा कर लिया था। जिला मुख्यालय में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सहित संगठन के कई बड़े कार्यक्रम हुए, लेकिन अनिल शर्मा ने किसी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया था।

क्यों एक दल में रहना जरूरी

अभी अनिल शर्मा भाजपा व बेटा आश्रय शर्मा कांग्रेस में हैं। अलग-अलग विचारधारा वाले दल में होने से उन्हें लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। न खुलकर सरकार के पक्ष में बोल पा रहे हैं और न ही विरोध में। इससे लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इसे देखते हुए अब बाप बेटे ने एक ही दल में रहने का निर्णय लिया है।

इतना तय है कि पंडित सुखराम परिवार अब एक ही दल में रहेगा। अलग-अलग दल में रहने से नुकसान हो रहा है। इस पर जल्द फैसला लिया जाएगा। सभी संभावनाएं खुली हैं।

-आश्रय शर्मा, पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी।

अलग-अलग दल में रहने से कई तरह की दिक्कतें आ रही हैं। पिता-पुत्र अब एक ही दल में रहकर राजनीति करेंगे। किस दल में रहना है फैसला जनता की राय से लेंगे। पार्टी अगर कोई जिम्मेदारी सौंपती है तो उसका सम्मान करूंगा।

-अनिल शर्मा, भाजपा विधायक सदर क्षेत्र।

मंडी संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव में संगठन की तरफ से अनिल शर्मा को दायित्व सौंपा जाएगा। वह भाजपा के विधायक हैं। पार्टी के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं।

-राकेश जम्वाल, प्रदेश भाजपा महामंत्री।

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