Rajasthan Political Crisis: राजस्थान में करिश्मा नहीं दिखा सकी क्षेत्रीय पार्टियां, सचिन पायलट के अगले कदम का सभी को इंतजार
Rajasthan Political Crisis राजनेताओं के एक वर्ग का मानना है कि पायलट नई राजनीतिक पार्टी बनाएंगेवहीं दूसरे वर्ग का कहना है कि वे भाजपा में शामिल होंगे।
नरेन्द्र शर्मा, जयपुर। Rajasthan Political Crisis: राजस्थान में पिछले 24 दिन से कायम सियासी संकट के बीच कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के नेताओं के साथ ही प्रशासनिक अधिकारी तक सचिन पायलट के अगले कदम को लेकर कयास लगा रहे हैं। सभी की निगाहें सचिन पायलट के अगले कदम पर हैं। राजनेताओं के एक वर्ग का मानना है कि पायलट नई राजनीतिक पार्टी बनाएंगे, वहीं दूसरे वर्ग का कहना है कि वे भाजपा में शामिल होंगे। कांग्रेस के कुछ लोग यह भी मान रहे हैं आखिरकार वे पार्टी में बने रहेंगे। 14 अगस्त से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र से पहले कांग्रेस आलाकमान हस्तक्षेप कर सीएम अशोक गहलोत व सचिन पायलट के बीच चल रहे सियासी संग्राम का अंत कराएगा।
वैसे तो पायलट खुद और उनके समर्थक विधायक कह चुके हैं कि वे भाजपा में शामिल नहीं होंगे, लेकिन उनके अधिकारिक कदम का सभी को इंतजार है। यह माना जा रहा है कि पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मिलकर नई राजनीतिक पार्टी बनाने की कवायद कर सकते हैं। हालांकि, राजस्थान की सियासत में पहले भी कई नेता अपनी राजनीतिक ताकत को आजमाने के लिए ऐसी कोशिश कर चुके हैं, लेकिन वो अपना असर नहीं दिखा सके हैं। राजस्थान की सियासी जमीन ऐसी है, जहां सिर्फ दो ही दलों के बीच मुकाबला रहा है, यहां न तो कोई क्षेत्रीय दल पनप पाया है और न ही कोई छत्रप अपनी छाप छोड़ पाया है। ऐसे में सचिन पायलट अगर नई पार्टी बनाकर मैदान में उतरते हैं को क्या असर दिखा पाएंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
इन नेताओं ने तीसरी शक्ति बनाने का किया प्रयास
राजपूत समाज के बड़े नेता देवी सिंह भाटी ने लोकेंद्र सिंह कालवी के साथ मिलकर सामाजिक न्याय मंच नाम से क्षेत्रीय पार्टी बनाई। साल 2003 में राजपूत आरक्षण को लेकर सामाजिक न्याय मंच ने 65 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एकमात्र भाटी ही चुनाव जीत सके। 60 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। उसके बाद सामाजिक न्याय मंच लगभग पूरी तरह खत्म हो गया। भाटी से अलग होकर कालवी ने करणी सेना बनाई, लेकिन यह भी कोई खास करिश्मा नहीं दिखा सकी। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ नाराजगी के चलते भाजपा के वरिष्ठ नेता किरोड़ी लाल मीणा ने साल 2013 में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी बनाई। पार्टी ने तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता केवल दो सीटों पर ही मिली।
इसके बाद मीणा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी बनाई। पार्टी ने 2008 का विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उसमें भी उन्हे सफलता नहीं मिली। आखिकार करीब डेढ़ साल पहले वे भाजपा में फिर से शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। वसुंधरा राजे से मतभेद के चलते भाजपा के दिग्गज नेता घनश्याम तिवाड़ी ने भारत वाहिनी पार्टी साल, 2018 में बनाई। विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन पार्टी का एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली। उनकी खुद की जमानत जब्त हो गई। आखिरकार तिवाड़ी 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भालपा में शामिल हो गए। हनुमान बेनीवाल ने भी वसुंधरा राजे से नाराजगी के चलते राष्ट्रीय लोक तांत्रिक पार्टी का गठन किया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में 58 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिनमें से महज तीन विधायक ही जीतकर आए थे और 2.4 फीसद वोट मिला था। हालांकि, एक महीने के बाद ही उन्होंने भाजपा के साथ हाथ मिला लिया था और लोकसभा चुनाव में नागौर सीट से मैदान में उतरे और जीत दर्ज कर संसद पहुंच गए।