Maratha Reservation: सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण मामले की सुनवाई 5 फरवरी तक टली

Maratha Reservation मराठा आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 5 फरवरी तक के लिए टाल दी। 9 सितंबर 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना एक अंतरिम आदेश जारी कर कहा था कि वर्ष 2020-2021 में नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के दौरान मराठा आरक्षण का लाभ नहीं होगा।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Wed, 20 Jan 2021 12:48 PM (IST) Updated:Wed, 20 Jan 2021 12:48 PM (IST)
Maratha Reservation: सुप्रीम कोर्ट में  मराठा आरक्षण मामले की सुनवाई 5 फरवरी तक टली
मराठा आरक्षण मामले में अगली सुनवाई 5 फरवरी को की जाएगी

मुंबई, पीटीआइ। महाराष्ट्र में शिक्षा व सरकारी नौकरियों को लेकर मराठा आरक्षण (Maratha Reservation) मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court,) में अगली सुनवाई 5 फरवरी को की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने  मराठा आरक्षण की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई बुधवार को टाल दी। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने राज्य सरकार का पक्ष रख रहे वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता मुकुल रोहतगी की इस दलील को स्वीकार किया कि कोरोना संक्रमण  के कारण  इस मामले की तैयारी ठीक तरह से नहीं हो सकी। 

 सुप्रीम कोर्ट ने इससे पूर्व मराठा आरक्षण पर रोक लगाते हुए मामले को सुनवाई के लिए बड़ी पीठ के सामने भेजा था। 9 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपना एक अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा था कि वर्ष 2020-2021 में नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के दौरान मराठा आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। इस मामले को विचार के लिए तीन जजों की बेंच ने लिए एक बड़ी बेंच के पास भेजा है, कोर्ट का कहना है कि बेंच मराठा आरक्षण की वैधता पर सोच-विचार करेगी। मराठा आरक्षण का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि महाराष्ट्र का यह कानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षण संस्थाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिये निर्धारित की गई  50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है। 

जानें पूरा मामला

महाराष्ट्र में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए 30 नवंबर 2018 को में शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लागू किया गया था। जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस कानून को बरकरार रखते हुए 16 प्रतिशत आरक्षण को अनुचित बताया था। कोर्ट का कहना था कि नौकरी में 12 प्रतिशत आरक्षण और शिक्षण संस्‍थाओं में 13 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं होना चाहिये। कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 

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