अजित सिंह के पुत्र जयंत के लिए आसान नहीं विरासत बचाने की चुनौती, सौंपी जाएगी रालोद की कमान

राष्ट्रीय लोकदल में फिर से जान डालना जयंत चौधरी की पहली बड़ी परीक्षा होगी। यूपी में हालिया पंचायत चुनावों के नतीजे रालोद के लिए शुभ संकेत भले ही माने जाएं परंतु इसी माहौल को वर्ष 2022 तक बनाकर रखना होगा।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 07:26 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 11:24 PM (IST)
अजित सिंह के पुत्र जयंत के लिए आसान नहीं विरासत बचाने की चुनौती, सौंपी जाएगी रालोद की कमान
अजित सिंह की तेहरवीं के बाद उनके पुत्र जयंत चौधरी को राष्ट्रीय लोकदल की कमान विधिवत सौंप दी जाएगी।

लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख व पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह के निधन के बाद किसानों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व.चौघरी चरण की विरासत उनके पौत्र जयंत चौधरी संभालेंगे। पराभव के दौर से गुजर रहे रालोद को बदली परिस्थितियों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में धुरी बनाकर रखने की चुनौती जयंत चौधरी के लिए आसान नहीं होगी।

आगामी 18 मई को अजित सिंह की तेहरवीं के बाद उनके पुत्र जयंत चौधरी को राष्ट्रीय लोकदल की कमान विधिवत सौंप दी जाएगी। जयंत के समाने सबसे बड़ी चुनौती कमजोर होते रालोद को फिर से खड़ा करना है। वर्ष 2014 के बाद रालोद का प्रतिनिधित्व न लोकसभा में है और न विधानसभा में है। वर्ष 2019 के विधान सभा चुनाव में रालोद का एकमात्र विधायक छपरौली क्षेत्र से चुना गया, जो बाद में दलबदल कर भाजपा में शामिल हो चुका है।

मोदी लहर के चलते अजित सिंह व जयंत चौधरी गत दो चुनावों से सांसद निर्वाचित नहीं हो पाए थे। ऐसे में रालोद में फिर से जान डालना जयंत की पहली बड़ी परीक्षा होगी। हालिया पंचायत चुनावों के नतीजे रालोद के लिए शुभ संकेत भले ही माने जाएं परंतु इसी माहौल को वर्ष 2022 तक बढ़ाकर रखना होगा।

जाटों में एकाधिकार बनाने को भी मशक्कत : आजादी के बाद से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति का केंद्र छपरौली बागपत माना जाता रहा परंतु भारतीय जनता पार्टी के उभार के बाद हालात बदले हैं। इसके अलावा भारतीय किसान यूनियन प्रमुख महेंद्र सिंह टिकैत भी किसान राजनीति की धारा बदलने में सफल रहे। वहीं भाजपा भी सतपाल सिंह व संजीव बालियान जैसे जाट नेताओं को स्थापित करने में सफल रही। मुजफ्फरनगर क्षेत्र में संजीव बालियान ने जिस तरह संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी बने अजित सिंह को पराजित किया। उससे भी रालोद की साख का बट्टा लगा। उधर कृषि कानून विरोधी आंदोलन से राकेश टिकैत की बढ़ती लोकप्रियता के आगे भी जयंत को जाटों में अपनी पकड़ सिद्ध करनी होगी।

हरित प्रदेश जैसे मुद्दे भी बढ़ाएंगे मुश्किलें : राष्ट्रीय लोकदल के प्राथमिकता वाले मुद्दे भी जयंत चौधरी की मुश्किलें बढ़ाएंगे। खासकर राज्य पुनर्गठन, हरित प्रदेश निर्माण व हाईकोर्ट बेंच सवालों पर जयंत को रुख स्पष्ट करना होगा। सपा से गठबंधन की स्थिति में ऐसे सवाल अधिक मुश्किल होंगे।

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