मध्य प्रदेश में सवर्ण नेताओं को आगे बढ़ाएगी भाजपा
चर्चा यह भी है कि राज्य में किसी ब्राह्मण नेता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाए। इसके लिए मुरैना के सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा को दावेदार बताया जा रहा है।
नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में लंबे समय से हाशिये पर पड़ी भाजपा की ब्राह्मण एवं सवर्ण लीडरशिप के दिन लगता है बदल रहे हैं। एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ एकजुट सवर्णो के दबाव ने भाजपा को भी अपनी रणनीति में बदलाव को मजबूर कर दिया है। इस आंदोलन को काउंटर करने के लिए पार्टी उपेक्षित पड़े अपने सवर्ण नेताओं को आगे कर रही है।
चर्चा यह भी है कि राज्य में किसी ब्राह्मण नेता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाए। इसके लिए मुरैना के सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा को दावेदार बताया जा रहा है।
सड़कों पर सवर्ण और पिछड़ा वर्ग का आक्रोश
भाजपा ने कल्पना भी नहीं की थी कि ऐन चुनाव के मौके पर प्रदेश का माहौल 360 डिग्री से घूम जाएगा और एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ सवर्ण और पिछड़ा वर्ग का आक्रोश इस तरह सड़कों पर आ जाएगा। जगह-जगह मंत्रियों को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी विरोध-प्रदर्शन का शिकार हो चुके हैं। भाजपा जानती है सवर्ण और पिछड़ा वर्ग उसकी रीढ़ की हड्डी है। 230 में से लगभग 150 सीटों पर ये दोनों वर्ग परिणाम बदलने का माद्दा रखते हैं।
35 सीट अनुसूचित जाति तथा 47 सीटें जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आरक्षित वर्ग की कुल 47 में से 15 सीटें ही कांग्रेस को मिली थीं। भाजपा ने 32 सीटें जीती थीं। वहीं अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित 35 सीटों में से मात्र चार सीट पर ही कांग्रेस जीत पाई थी, जबकि सामान्य वर्ग की 148 सीटों में से भाजपा ने 102 सीटों पर कब्जा जमाया था। यानी कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को अनुसूचित जाति, जनजाति और सामान्य सीटों पर ज्यादा समर्थन हासिल था।
भाजपा की चिंता बढ़ी
भाजपा की चिंता यह है कि एट्रोसिटी एक्ट का विरोध कहीं 102 सीटों का गणित न गड़बड़ा दे। इसी चिंता में मंगलवार देर रात तक मुख्यमंत्री निवास पर भाजपा के दिग्गज मंथन करते रहे। पार्टी के संगठन महामंत्री रामलाल ने भी मंगलवार को भोपाल में पार्टी के प्रमुख ब्राह्मण नेताओं से एकांत में बातचीत की।
लंबे समय बाद ली ब्राह्मण नेताओं की सुध
पार्टी ने अरसे बाद ब्राह्मण नेताओं की सुध ली है। मध्य प्रदेश भाजपा को खांटी ब्राह्मण नेतृत्व आखिरी बार कैलाश जोशी के रूप में 2003 में मिला था। इसके बाद से लगातार ठाकुर या पिछड़ा वर्ग से अध्यक्ष बनाए जाते रहे हैं। शिवराज सरकार में छह ब्राह्मण मंत्री हैं।
जातीय संतुलन बिठाने का प्रयास
छह माह पहले चर्चा चली थी कि सत्ता और संगठन में जातीय संतुलन बिठाने की गरज से एक उप मुख्यमंत्री ठाकुर वर्ग से और एक ब्राह्मण वर्ग से बनाया जाएगा, लेकिन तब आज जैसी मजबूरी नहीं थी और अब इसके लिए समय ही नहीं बचा है। इसलिए अब यह चर्चा चल रही है कि सत्ता न सही संगठन स्तर पर किसी ब्राह्मण नेता को आगे कर यह संदेश दिया जाए कि पार्टी सवर्णो की हमदर्द है।
प्रदेश में भाजपा की राजनीति में लंबे समय तक फ्रंटलाइन के नेता एवं राज्यसभा सदस्य रहे रघुनंदन शर्मा इस मुद्दे पर कुरेदने पर अपनी पीड़ा नहीं दबा पाए। सतर्कता के साथ और संयत शब्दों में उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार और संगठन से मैं कटा हुआ हूं। अभी तक तो पार्टी ने मुझे पूछा नहीं और न ही कोई काम बताया। पार्टी को जरूरत लगेगी और कोई जिम्मेदारी सौंपी जाएगी तो उसे पूरा करूंगा।