बिहार विधानसभा चुनाव 2020: बिहार में ये सारे मुद्दे रहे खास पर क्यों नहीं है कृषि सुधार एक बड़ा चुनावी मुद्दा?

इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा अगर किसी मुद्दे को सत्ता व विपक्ष दोनों ओर से उछाला जाता तो वह है कृषि सुधार बिल। लोगों को बिल की जानकारी दोनों ही पक्ष अपने-अपने तरीके से देते अपने पाले में करने की कोशिश करते पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 30 Oct 2020 11:53 AM (IST) Updated:Fri, 30 Oct 2020 02:12 PM (IST)
बिहार विधानसभा चुनाव 2020: बिहार में ये सारे मुद्दे रहे खास पर क्यों नहीं है कृषि सुधार एक बड़ा चुनावी मुद्दा?
बिहार में कृषि सुधार जो एक सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा

बिहार चुनाव कई प्रमुख मुद्दों पर लड़ा जा रहा है लेकिन इनमें से एक प्रमुख मुद्दा कृषि का है जिसे किसी भी राजनीतिक दल ने जोरदार ढंग से फोकस नहीं किया है। यह स्थिति तब है जब बिहार की लगभग आधी आबादी खेती-बारी से जुड़ी है ऐसे में बिहार में कृषि सुधार जो एक सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होना चहिये वही नहीं हुआ ऐसा क्यों?  

कृषि सुधार बिल

इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा अगर किसी मुद्दे को सत्ता व विपक्ष दोनों ओर से उछाला जाता तो वह है कृषि सुधार बिल। लोगों को बिल की जानकारी दोनों ही पक्ष अपने-अपने तरीके से देते अपने पाले में करने की कोशिश करते पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। बता दें कि संसद में कुछ ही दिनों पहले कृषि सुधार बिल पास किया गया है। राष्ट्रीय जनता दल के नेता, पूर्व उपमुख्यमंत्री व लालू प्रसाद यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव ने जोरदार तरीके से इस बिल का विरोध किया। तेजस्वी व तेजप्रताप दोनों भाई इसके विरोध में ट्रैक्टर पर बैठ कर भारी समर्थकों के साथ प्रदर्शन किया था। इससे सत्ता पक्ष को भारी चुनौती मिलने के आसार थे। कांग्रेस भी इस मुद्दे को काफी उछाल रही थी। 

चुनाव में सभी दल पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरे हैं। ऐसे में हम आपको बता दें कि इस बार के चुनाव में बिहार में किन-किन मुद्दों की गूंज सुनायी दे रही है। आइये जानते हैं उन प्रमुख मुद्दों के बारे में.. 

पहली बार जाति से बड़ा मुद्दा बेरोजगारी

बिहार चुनाव में पहली बार ऐसा है जब जाति-धर्म-वर्ण से ज्यादा बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है। अक्सर इस देश के बुद्धिजीवियों की ख्वाहिश रही है कि कभी चुनाव जाति-धर्म से ऊपर उठ कर बेरोजगारी, महंगाई, अशिक्षा आदि पर लड़ी जाये। इनमें से एक ख्वाहिश इस बार उन बुद्धिजीवियों की जरूर पूरी होगी, क्योंकि इस बार विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक आम जनता का मुद्दा है बेरोजगारी। कोरोना वायरस के संक्रमण, लॉकडाउन और प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी के बाद बिहार में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बन कर उभर रही है। इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल आरजेडी ने अपना हथियार बना लिया है। 

आपको बता दें कि लॉकडाउन और इसके बाद बिहार में देश भर से करीब 26 लाख युवा अपना रोजी-रोटी छोड़ कर लौट आये हैं, जो फिलहाल अपने राज्य में बेरोजगार और तंगहाली में गुजर बसर कर रहे है। तेजस्वी ने उन युवाओं को लुभाने के एक वेबसाइट भी लांच की है, जिसमें पांच लाख से ज्यादा युवा बेरोजगारों ने रजिस्ट्रेशन कर लिया था। तेजस्वी ने दावा किया कि आरजेडी सत्ता में आयी तो उनको रोजगार देगी। 

कोरोना और बाढ़ राहत

कोरोना वायरस और इसके कारण लोगों ने जो परेशानी झेली उसे तो भुनाने का मौका विपक्ष ने नहीं छोड़ा, ऊपर से बाढ़ के दौरान असुविधाओं को अपने पक्ष में करने की रणनीति विपक्षी पार्टियों ने बना रखी है। वहीं, बिहार सरकार ने इस दौरान दिये गये सरकारी अनुदान, मुफ्त राशन व अनाज वितरण को गिना कर अपना पक्ष मजबूत की, जिसमें केंद्र सरकार के योगदान को भी भाजपा खूब भुनाई। वहीं लोगों के खाते में गये नकद रुपये को भी गिनाने की कोशिश हुई है।  

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा

मुद्दों की लिस्ट में पुराना राग अलापा गया वह है बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग। पिछले दो विधानसभा चुनावों में नितीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड की ओर से इस मांग को आधार बना कर चुनाव लड़ा गया था। चुनाव तो जीत गये लेकिन बिहार को विशेष दर्जा नहीं दिला पाये, जिसका गाना राजद ने खूब गाया।

आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव लगातार कह रहे हैं कि वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई को जारी रखेंगे। उनका कहना है कि विशेष राज्य के दर्जा दिलाने के मुद्दे को लेकर नितीश कुमार दिल्ली और पटना में रैलियां कीं, हस्ताक्षर अभियान चलाया था, लेकिन अब वह इसे भूल गये।

दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत

इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में युवाओं के बीच बिहार के बेटे सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने व न दिलाने के दावे खूब किये गये। राजपूत की सीबीआइ जांच व बिहार पुलिस को भेज कर जांच कराये जाने को लेकर एनडीए के नेता अपनी खूब प्रशंसा की। वहीं, विपक्ष राजपूत को न्याय न दिला पाने को बात कही। 

‘डबल ईंजन की सरकार’

एनडीए खेमा डबल ईंजन की सरकार को मुद्दा बनाती दिखी है। एनडीए के सारे बड़े नेता अपने भाषणों में डबल ईंजन की बात की। चुनाव की घोषणा से ठीक पहले पीएम मोदी ने बिहार को कई हजार करोड़ रुपये की योजनाएं दी हैं। एनडीए के नेता विकास और सुशासन के मुद्दे को जोरशोर से उठा रहे हैं। 

कृषि बिल के विरोध में कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल रोज सदन के अंदर हंगामा कर रहे हैं। हालांकि ज्यादातर प्रदर्शन पंजाब, हरियाण और यूपी के किसान कर रहे हैं। बिहार के किसानों पर नए कृषि बिल का कोई खास असर नहीं दिख रहा है। क्योंकि अध्यादेश में किसानों द्वारा मंडियों में अनाज बेचने की बाध्यता खत्म की गई है।बिहार में यह बाध्यता पहले ही खत्म कर दी गई थी। नीतीश कुमार ने साल 2005 में सरकार में आते ही बिहार की सभी बाजार समितियों को भंग करने का आदेश दिया था। सरकार के मुताबिक इन बाजार समितियों में किसानों का शोषण होता था। 

बिहार के किसानों को पिछले 15 साल से छूट मिली हुई है कि वो अपना अनाज कहीं भी बेच सकते हैं। बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि बिहार में जो लोग इस मामले को चुनावी मुद्दा बनाना चाहते हैं उन्हें करारा झटका मिलेगा। क्योंकि ये चुनावी मुद्दा है ही नही। बल्कि यह किसानों के हक की बात है। हालांकि सच्चाई यही है कि बिहार में MSP का लाभ केवल 10% किसानों को ही मिलता है।

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