Ayodhya Ram Temple News: बलिदान रंग लाने से हर्षित हैं उनके परिवार

Ayodhya Ram Temple News मंदिर निर्माण की शुरुआत को लेकर बलिदानी कारसेवकों के परिवारी जन बोले व्यर्थ नहीं गया बलिदान।

By Divyansh RastogiEdited By: Publish:Wed, 05 Aug 2020 11:42 AM (IST) Updated:Wed, 05 Aug 2020 11:42 AM (IST)
Ayodhya Ram Temple News: बलिदान रंग लाने से हर्षित हैं उनके परिवार
Ayodhya Ram Temple News: बलिदान रंग लाने से हर्षित हैं उनके परिवार

अयोध्या [रघुवरशरण]। Ayodhya Ram Temple News: 30 अक्टूबर एवं दो नवंबर 1990 की कारसेवा में प्राणोत्सर्ग करने वाले कारसेवकों के परिवारों की खुशी का ठिकाना नहीं है। रवींद्र उस समय आठ वर्ष के थे, जब उनके बड़े भाई राजेंद्र धरिकार 30 अक्टूबर की कारसेवा में विवादित ढांचे तक जा पहुंचे थे। इस किशोर के पांव सुरक्षा का वह प्रबंध भी नहीं रोक पाया, जिसके बारे में दावा किया गया था कि वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। 

रामनगरी के किशोरवय राजेंद्र उस चुनिंदा टुकड़ी में थे, जो पुलिस और अर्ध सैनिक बल के कड़े पहरे को धता बताती हुई विवादित ढांचे तक जा पहुंची थी। उन्हें प्राण देना स्वीकार था, पर रामलला को अपमानित करने वाला ढांचा स्वीकार नहीं था। पुत्र खो देने का गम बर्दाश्त करने की कोशिश में राजेंद्र के माता-पिता बीमार रहने लगे और घर संभालने की जिम्मेदारी छोटे भाई रवींद्र को उठानी पड़ी। बीती शाम राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का आमंत्रण पाने के साथ रवींद्र के जीवन में जैसे बहार आ गयी हो। वे कहते हैं, भाई का बलिदान रंग लाया और आज हमें राम मंदिर निर्माण की शुरुआत होते देखना बहुत अच्छा लग रहा है।

 मंदिर निर्माण शुरू होने के समारोह की आयसु बलिदानी वासुदेव गुप्त के नयाघाट स्थित घर को भी खुशियों में समेट रही है। इसी के साथ ही पूरे परिवार को वासुदेव की याद गर्वित-आह्लादित करती है। हालांकि 30 अक्टूबर 1990 को विवादित ढांचे की ओर बढ़ते हुए पुलिस की गोली के शिकार हुए वासुदेव के परिवार में पत्नी, दो बेटे और दो बेटियां थीं। एक बेटी ससुराल में है और बाकी सदस्य चल बसे हैं। परिवार के नाम पर वासुदेव का एक बेटा संदीप और बेटी सीमा रह गयी हैं। उनके लिए सामान्य तौर पर हास्य-खिलखिलाहट के लिए जगह कम है, पर राम मंदिर के भूमिपूजन का आमंत्रण पाने के साथ जीवन की खुशी नये सिरे से परिभाषित हो रही है। संदीप कहते हैं, मंदिर निर्माण की तैयारी के साथ यह तय हो गया कि पिता जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनमें यह भी विश्वास जगा है कि मंदिर के साथ उनके भी अच्छे दिन आयेंगे। 

अयोध्या के तीनों बलिदानी कारसेवकों के परिवार को शुरू से ही सहायता की जरूरत रही है। जिम्मेदार साधु-संत और विहिप के लोग छिट-पुट मदद तो करते रहे हैं, पर उन्हें स्थायी मदद की जरूरत रही है। हालांकि राम मंदिर निर्माण की शुरुआत की खुशी में ऐसी जरूरत बौनी हो गयी है। पति रमेश पांडेय दो नवंबर 1990 को पुलिस की गोली के शिकार कारसवेकों की मदद के लिए निकले, तो लौटकर नहीं आये। इसके बाद तो रमेश की पत्नी गायत्री के पैरों के नीचे से जमीन सरक गयी। इसके बाद दो बेटे और दो बेटियों के परिवार को सहेजने में गायत्री का एक-एक दिन संघर्ष में गुजरा है, पर बीती शाम भूमि पूजन का आमंत्रण पाने के साथ उन्हें जैसे दशकों से नित्य-प्रति के संघर्ष का पुरस्कार मिल गया। गायत्री कहती हैं, आखिर इसी दिन के लिए ही तो कारसेवकों का बलिदान हुआ था और अब मंदिर निर्माण की शुरुआत के साथ इन कारसेवकों के बलिदान को सहेजा जा रहा है। गायत्री ही क्यों। करोड़ों रामभक्तों के लिए यह क्षण असीम खुशी देने के साथ बलिदानी कारसेवकों के प्रति कृतज्ञ होने का महापर्व भी है।

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