कश्मीरी पंडितों के निर्मम त्रासदी के 30 साल: अगले वर्ष निर्वासन की बरसी नहीं, घर वापसी का मनाना चाहते हैं जश्न

हर साल 19 जनवरी को अपना निर्वासन दिवस मनाते हैं कश्मीरी पंडित। अगले वर्ष निर्वासन की बरसी नहीं घर वापसी का मनाना चाहते हैं जश्न

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sun, 19 Jan 2020 08:38 AM (IST) Updated:Sun, 19 Jan 2020 08:38 AM (IST)
कश्मीरी पंडितों के निर्मम त्रासदी के 30 साल: अगले वर्ष निर्वासन की बरसी नहीं, घर वापसी का मनाना चाहते हैं जश्न
कश्मीरी पंडितों के निर्मम त्रासदी के 30 साल: अगले वर्ष निर्वासन की बरसी नहीं, घर वापसी का मनाना चाहते हैं जश्न

जम्मू, नवीन नवाज। इस्लामिक कट्टरवाद की जड़ अनुच्छेद 370 समाप्त हो चुका है। नये जम्मू कश्मीर के उदय के साथ विकास और खुशहाली की नई इबारत लिखी जा रही है। बदले हालात के बीच बीते 30 वर्षों में पहली बार विस्थापित कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपनी सम्मानजनक वापसी की उम्मीद जगी है। अपने ही घर में शरणार्थी बनकर रह चुके पंडितों का कहना है कि केंद्र सरकार ने जो संकल्पशक्ति जम्मू कश्मीर को लेकर दर्शायी है, वैसी ही उनके मुद्दों को हल करने के लिए भी कायम रहती है तो शायद ही कोई कश्मीरी विस्थापित अगले साल अपने निर्वासन-निष्कासन की बरसी मनाए। सभी कश्मीरी पंडित कश्मीर में अपनी वापसी का जश्न मनाना चाहते हैं। मोदी सरकार ने ढेरों उम्मीदें लगाए पंडितों ने कहा....'हां, हम वापस आएंगे।

कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) और हिजबुल मुजाहिदीन समेत विभिन्न संगठनों ने 1988 में धीरे-धीरे अपनी गतिविधियां बढ़ाना शुरू कीं और 1990 की शुरुआत में हालात इस कदर बिगड़ गए कि रातों-रात कश्मीरी पंडितों को अपने घर परिवार छोड़कर जम्मू समेत देश के विभिन्न हिस्सों में शरणार्थी बनकर शरण लेनी पड़ी। कश्मीरी पंडित हर साल 19 जनवरी को अपना निर्वासन दिवस मनाते हुए अपने साथ हुए अत्याचार और अपने हक की तरफ देश दुनिया का ध्यान दिलाते हैं।

कश्मीरी पंडित बीते 30 वर्षों से ही देश-विदेश में विभिन्न मंचों पर अपने लिए इंसाफ मांग रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए कई कालोनियां बनाने के साथ उनके लिए रोजगार पैकेज का भी एलान किया, लेकिन वर्ष 2015 तक सिर्फ एक ही परिवार कश्मीर वापसी के पैकेज के तहत श्रीनगर लौटा था। प्रधानमंत्री पैकेज के तहत रोजगार पाने वाले भी ट्रांजिट कॉलोनियों में ही सिमट कर रह गए हैं। अलबत्ता, पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद से विस्थापित कश्मीरी पंडितों में भी उम्मीद की एक नयी किरण जगी है।

अगर अब कुछ नहीं हुआ तो कभी नहीं होगा : चुरुंगु

पनुन कश्मीर के चेयरमैन डॉ. अजय चुरुंगु ने कहा कि अनुच्छेद 370 और 35ए जम्मू कश्मीर को धर्मनिरपेक्ष भारत में एक लघु इस्लामिक राज्य का दर्जा देते थे। अब यह समाप्त हो चुका है। अब जम्मू कश्मीर धर्मनिरपेक्ष भारत का एक पूर्ण हिस्सा है। जेकेएलएफ और जमात-ए-इस्लामी पर भी पाबंदी लग चुकी है। इसलिए अब हमें अपनी वापसी की उम्मीद है। केंद्र सरकार को चाहिए वह रिवर्सल ऑफ जिनोसाइड करे, पंडितों का पूरे देश में निष्पक्ष सेनसिस होना चाहिए। कश्मीर में एक अलग शहर होना चाहिए, उन्हें होमलैंड चाहिए। अगर अब कुछ नहीं हुआ तो कभी नहीं होगा।

कश्मीरियों के नाम पर सियासत भी होगी कम :

कश्मीरी हिंदू वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य चुन्नी लाल ने कहा कि हमारे समुदाय के अधिकांश लोग कश्मीर से चले गए, लेकिन मुझ जैसे करीब तीन हजार लोग यहां रहे। हम लोगों की हालत आप देख सकते हैं। मेरी तरह यहां जो लोग रहे वे कुपवाड़ा, बारामुला समेत वादी के दूरदराज इलाकों में आतंकी हमलों से डर कर श्रीनगर आ गए। हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। जितनी सियासत कश्मीरियों के नाम पर हुई है, उसके समाप्त होने की उम्मीद की जा सकती है। रविवार को पूरी दुनिया में हम निर्वासन दिवस मनाएंगे। कश्मीर में हम ऐसा नहीं कर सकते। अब मोदी सरकारी से उम्मीद जगी है कि हम लोगों के साथ इंसाफ होगा।

नजर आ रहा वापसी का रास्ता :

मोती लाल नामक एक कश्मीरी पंडित बुजुर्ग ने कहा कि यहां बहुत से लोग अक्सर कहते हैं कि आप क्यों निर्वासन दिवस मनाते हैं, आपको किसी ने नहीं निकाला, आप खुद निकले हैं। यह हमारे जख्मों पर नमक नहीं तो और क्या है। कौन अपने घर से निकलता है। हमें तो ङ्क्षहदू होने की सजा मिली है। 19 जनवरी 1990 को जो हुआ, वह कश्मीर में सभी जानते हैं। अब अनुच्छेद 370 समाप्त हो चुका है, अब हमारी वापसी का रास्ता भी नजर आने लगा है।

'हम वापस आएंगेÓ बना कंपेन :

'हम आएंगे अपने वतन और यही पर दिल लगाएंगे, यही मरेंगे और यही के पानी में हमारी राख बहाई जाएगीÓ। दरअसल, यह डायलॉग विधु विनोद चोपड़ा की आने वाले फिल्म शिकारा का है। इस फिल्म में बताया गया कि कश्मीरी पंडितों का कैसे पलायन हुआ और उन्हें कितनी पीड़ा सहनी पड़ी। 'हम वापस आएंगेÓ का डायलॉग अब सोशल मीडिया पर एक कंपेन बन गया है। देश में ही नहीं, विदेशों में भी बसे कश्मीरी पंडित सोशल मीडिया पर एक सुर में कश्मीर वापसी पर बोल रहे हैं। युवा कश्मीरी पंडित तो भावुक भरे पोस्ट भी कर रहे हैं।  

chat bot
आपका साथी