RSS पर हो रही सवालों की बौछारों के बीच जरूरी हो जाता है भागवत का जवाब देना
अनेक भ्रांतियों को दूर करते हुए संघ ने अपना एक प्रामाणिक विचार और विजन देश के समक्ष प्रस्तळ्त किया, जिसके माध्यम से एक आम नागरिक भी संघ को समग्रता से समझ सकता है।
आदर्श तिवारी। जब किसी सामाजिक संगठन को लेकर तमाम प्रकार की बातें फैलाई जा रही हो, तो यह जरूरी हो जाता है कि वह संगठन अपना पक्ष, अपना विचार देश के समक्ष रखे। आरएसएस जैसे सांस्कृतिक संगठन के लिए तो यह और जरूरी हो जाता है, क्योंकि आजादी के पश्चात ही संघ को लेकर तमाम प्रकार की भ्रांतियों और मिथकों को बड़े स्तर पर फैलाया गया है। किंतु संघ अटल होकर अपने पथ से डगमगाए बगैर राष्ट्र निर्माण के संकल्प के साथ निरंतर आगे बढ़ता गया और अपने अनूठे कार्यो से चर्चा भी हासिल करता जा रहा है। दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें संघ प्रमुख ने ‘भविष्य का भारत और संघ का दृष्टिकोण’ पर अपनी बात रखी तथा जो सवाल आए उसका जवाब भी दिया।
संघ की कोशिश
इस आयोजन में हर विचारधारा से जुड़े लोगों को बुलाने की कोशिश संघ द्वारा की गई, ताकि संघ के विचार और दृष्टिकोण से सभी अवगत हो सकें। राजनीतिक दलों के अलावा देश के बौद्धिक वर्ग, कला, विज्ञान, संस्कृति एवं शिक्षा के क्षेत्रों से जुड़े प्रभावी लोगों को आमंत्रित किया गया। कुछेक दलों ने संघ के आमंत्रण का बहिष्कार भी किया, लेकिन पूर्वाग्रह त्याग उन्हें भी यहां आना चाहिए था, ताकि अपने संशय के संबंध में वह संघ प्रमुख से पूछते। कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे लोगों को संघ के विचारों को समझने से ज्यादा विरोध करने की हड़बड़ी है।
आरएसएस का अपना विजन
बहरहाल आरएसएस का एक अपना विजन है, जो भारतीयता तथा राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत है। यह संगठन परिस्थिति के अनुसार खुद को अनुकूल बनाने से पीछे नहीं हटने वाला है। समय-समय पर बदलाव के साथ खुद को जोड़ते जाना भी संघ की बढ़ती शक्ति के प्रमुख कारकों में से एक है। संघ प्रमुख के भाषणों, सवाल-जवाब को देखें तो पता चलता है कि देश के हर मुद्दों और समस्याओं को लेकर संघ सजग है और उसके निवारण के लिए प्रयासरत भी है। जाति, पंथ, धर्म के भेद को संघ नहीं मानता, बल्कि उसका मूल सबको जोड़ने का है और व्यक्ति निर्माण का है। इसमें कोई दोराय नहीं कि देश का एक बड़ा कथित बौद्धिक वर्ग तथा कुछेक राजनीतिक दल आरएसएस को संकुचित दायरे में ढाल कर उसके हर सेवा कार्यो की आलोचना करते हैं, खासकर संघ के हिंदुत्व विचारधारा को लेकर दुष्प्रचार की सारी सीमाओं को लांघ जाते हैं।
तो नहीं बचेगा हिंदुत्व
क्या इन लोगों ने संघ के हिंदुत्व को समझने की कोशिश की? संघ प्रमुख ने हिंदुत्व को विस्तार से परिभाषित करते हुए स्पष्ट कहा कि सबको साथ लेकर चलने के स्वभाव का नाम ही हिंदुत्व है। हिंदुत्व सर्व समावेशी है, इसमें देश में रहने वाले सभी मतावलंबियों के लिए जगह है। जिस दिन कहेंगे कि मुसलमान नहीं चाहिए, उस दिन हिंदुत्व भी नहीं रहेगा। यहां केवल वेद चलेंगे, दूसरे ग्रंथ नहीं चलेंगे उसी दिन हिंदुत्व का भाव खत्म हो जाएगा, क्योंकि हिंदुत्व में वसुधैव कुटुंबकम शामिल है। संघ प्रमुख ने अपने सवाल-जवाब में लगभग सभी ज्वलंत मुद्दों पर पूछे गए सवालों का जवाब दिया- जैसे राम मंदिर, आरक्षण, धारा 370, महिला सुरक्षा, भाषा, शिक्षा तथा संघ और राजनीति से संबंध आदि।
प्रमुखरता से रखी अपनी बात
इन सब बातों में से तीन ऐसे मुद्दों पर संघ प्रमुख ने मुखरता के साथ अपनी बात रखी जिसको लेकर या तो संघ को घेरा जा रहा था या एक भ्रमजाल बना दिया गया था, जिसे अपने जवाबों के जरिये संघ प्रमुख ने भेदने की कोशिश की। सबसे प्रमुख मुद्दा आरक्षण का था, जिस बारे में मोहन भागवत ने कहा कि सामाजिक विषमता दूर करने के लिए संविधान सम्मत आरक्षण को संघ का पूरा समर्थन है। आरक्षण को लेकर समय-समय पर उठ रहे विवाद को संघ प्रमुख ने राजनीति को दोषी ठहराते हुए समाज के सभी अंगों को बराबरी पर लाने के लिए आरक्षण को जरूरी बताया। साथ ही आरक्षण के लाभार्थियों के मन की शंकाओं को भी दूर करने का प्रयास उन्होंने किया। दूसरा सबसे संवेदनशील और आस्था से जुड़ा हुआ मुद्दा है अयोध्या में राम मंदिर। मंदिर आंदोलन में भाजपा, संघ तथा उससे जुड़े संगठनों ने अहम भूमिका निभाई थी।
अयोध्या में राम मंदिर की वकालत
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है, जिस पर प्रतिक्रिया देने पर राजनीतिक दल या तो बचते हैं, अथवा अपने बयान के द्वारा संघ और भाजपा पर तंज कसते हैं, किंतु संघ प्रमुख ने बगैर हिचके इस सवाल का जवाब दिया, ‘मैं सर संघचालक होने के नाते चाहता हूं कि अयोध्या में राम जन्मभूमि का भव्य मंदिर बनना चाहिए। भगवान राम बहुसंख्यक समाज के लिए आस्था का केंद्र हैं। मंदिर का निर्माण शीघ्र होना चाहिए। मंदिर बन गया तो हंिदूू-मुस्लिम विवाद भी खत्म हो जाएगा।’ तीसरा मुद्दा राजनीति और संघ के संबंध का है। इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ‘प्राय: ऐसा कहा जाता है कि संघ राजनीति में भले न हो, किंतु भाजपा को पूरी तरह से आरएसएस ही संचालित करता है। ऐसी बातों के सामने आने से इस तरह की स्थिति बना दी गई थी, जिस कारण संघ के सामाजिक कार्यो को राजनीति से जोड़ा जाने लगा।’ एक सवाल यह भी आया कि भाजपा को संगठन मंत्री संघ ही क्यों देता है?
संघ का जवाब
मोहन भागवत ने इसका जवाब दिया, ‘अभी तक किसी ने मांगा नहीं, मांगेंगे तो विचार करेंगे।’ उन्होंने स्पष्ट किया कि 93 सालों में संघ ने किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं किया, बल्कि वह नीतियों का समर्थन करता है। और संघ की नीतियों का समर्थन करने वाले दल संघ की शक्ति का फायदा उठा लेते हैं। भाजपा और संघ के संबंध तथा वर्तमान में संघ व सरकार के बारे में यह आरोप कि सरकार नागपुर से चलती है, मोहन भागवत ने पूरी तरह गलत बताया। धारा 370, आर्टिकल 35ए पर भी संघ का मत प्रकट करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि यह नहीं रहना चाहिए। कुल मिलाकर संघ के कार्य्रकम का निचोड़ यही है कि समय के साथ वह खुद को ढाल रहा है तथा संघ को लेकर मिथ्याबोध कराने का जो एजेंडा चलाया जा रहा है, हरेक मुद्दे पर संघ के नाम से जो अलग-अलग विचार प्रचारित किए जा रहे थे, उन भ्रांतियों को दूर कर संघ ने अपना एक प्रामाणिक विचार और विजन देश के सामने प्रस्तुत किया है। लेकिन क्या भ्रम फैलाने वाले इसे समझ पाएंगे?
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)