इस बिल से देश में दो करोड़ गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को 2020 तक मिलेगी नागरिकता
पश्चिम बंगाल असम जैसे राज्यों में पिछले दस वर्षो में कई क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या 25 फीसद से ज्यादा बढ़ी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन विधेयक पर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने विरोध यूं तो सैद्धांतिक तौर पर किया, लेकिन इसके पीछे की राजनीति नजरअंदाज नहीं की जा सकती है। दरअसल इस विधेयक के अनुसार 2014 तक भारत में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता और उससे संबंधित सभी सुविधाएं मिल जाएगी।
नागरिकता के लिए जरूरी 11 साल की अनिवार्यता खत्म कर इसे छह साल कर दी गई
नागरिकता के लिए जरूरी 11 साल की अनिवार्यता खत्म कर इसे छह साल कर दी गई है। यानी 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल, असम, केरल चुनाव तक कई राज्यों में ऐसे गैर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बढ़ेगी जो नागरिकता की चाह लिए वर्षो से भारत मे रह रहे थे। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार माना जा रहा है कि देश में फिलहाल लगभग दो करोड़ ऐसे लोग हैं जो विभिन्न राज्यों में बसे हैं।
नागरिकता संशोधन विधेयक में उत्तर पूर्व के राज्यों को छूट
ध्यान रहे कि नागरिकता संशोधन विधेयक में उत्तर पूर्व के राज्यों को छूट दे दी गई है। वहां ये नियम लागू नहीं होंगे और ऐसे में भाजपा के खिलाफ वहीं किसी आंदोलन की आशंका खत्म हो गई है। असम में कुछ हिस्सों को छोड़कर बाकी के स्थानों पर यह लागू होगा। ऐसे में बंग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों के लिए असम और पश्चिम बंगाल, ओडिशा सबसे मुफीद होगा। जबकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के लिए पंजाब, राजस्थान, हरियाणा समेत पूरा मध्य भारत है।
पश्चिम बंगाल, असम जैसे राज्यों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 25 फीसद बढ़ी
भाजपा की ओर से आरोप लगता रहा है कि पश्चिम बंगाल, असम जैसे राज्यों में पिछले दस वर्षो में कई क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या 25 फीसद से ज्यादा बढ़ी है और यह आशंका जताई जा रही है कि राज्य सरकारों की ओर से खासकर मुस्लिम मतदाता बनाए गए हैं। अब जबकि नागरिकता संशोधन कानून लागू होगा तो ऐसे मतदाताओं की जगह गैर-मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बढ़ेगी जिनका रुझान भाजपा या सहयोगी दलों की ओर हो सकता है। पूरे उत्तर पूर्व में पहले से राजग की सरकार है। लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में भाजपा बड़ी सेंध लगा चुकी है।
गैर-मुस्लिम शरणार्थियों में बड़ी संख्या दलितों की है
यही कारण है कि सोमवार को लोकसभा में चर्चा के दौरान सबसे ज्यादा टोकाटाकी और आरोप प्रत्यारोप तभी दिखा जब पश्चिम बंगाल के भाजपा या तृणमूल सांसद खड़े हुए। सूत्रों की मानी जाए तो ऐसे गैर-मुस्लिम शरणार्थियों में बड़ी संख्या दलितों की है। दरअसल विभाजन के वक्त वैसे ही लोग अपने मूल स्थान पर बसे रहे जो गरीब थे और अब उत्पीड़न के कारण भागकर भारत आ रहे हैं। जाहिर है कि ऐसे लोगों को जब नागरिकता मिलेगी तो दलितों को मिलने वाले आरक्षण के भी लाभार्थी होंगे।