अपराधियों को टिकट नहीं देने की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, चुनाव आयोग जाने की सलाह

अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चुनाव आयोग जाने की सलाह दी है।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Mon, 21 Jan 2019 11:31 AM (IST) Updated:Mon, 21 Jan 2019 11:31 AM (IST)
अपराधियों को टिकट नहीं देने की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, चुनाव आयोग जाने की सलाह
अपराधियों को टिकट नहीं देने की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, चुनाव आयोग जाने की सलाह

माला दीक्षित, नई दिल्ली। अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चुनाव आयोग जाने की सलाह दी है। याचिका में मांग की गई थी कि अपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों और अपराधियों के राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय राजनैतिक दलों के टिकट पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। ताकि राजनीति का अपराधीकरण रोका जा सके। 

इसके अलावा याचिका में ये भी मांग की गई कि राजनैतिक दलों की राज्य और राष्ट्रीय स्तर का दल होने की मान्यता बरकरार रखने के लिए भी दागियों को टिकट न देने की शर्त शामिल की जाए। यानी सबका मतलब है कि दागियों को टिकट देने वाले दलों का निश्चित चुनाव चिन्ह छीना जाए और उनकी मान्यता रद हो। यह जनहित याचिका वकील और भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की थी जिस पर सोमवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई की और गेंद फिलहाल चुनाव आयोग के पाले में डाल दी। 

आंकड़े देकर की थी मांग

याचिका में राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण का हवाला देते हुए लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में दागियों के आंकड़े दिये गये और मांग की गई कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह चुनाव चिन्ह आदेश 1968 और चुनाव आचार संहिता के नियमों में बदलाव करके राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय मान्यता के लिए राजनैतिक दलों पर गंभीर अपराध में आरोपी लोगों को टिकट न दिये जाने की शर्त शामिल करे। इसके लिए चुनाव चिन्ह आदेश 6ए, 6बी और 6सी में अपराधियों को टिकट न देने की शर्त शामिल की जाए।

कहा गया है कि चुनाव आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत इस बारे में निर्देश जारी करने का व्यापक अधिकार है। इसके अलावा चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह आदेश के पैराग्राफ 2 में आपराधिक चरित्र की परिभाषा में यह शामिल करे कि जिन लोगों के खिलाफ अदालत से पांच या उससे अधिक वर्ष की सजा वाले अपराध में एक वर्ष पहले आरोप तय हो चुके हैं उन्हें आपराधिक चरित्र वाला माना जाएगा।

याचिका में कहा गया है कि उपरोक्त आदेश देने से न तो किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन होगा और ना ही चुनाव आयोग को इसके लिए अलग से कोई जांच पड़ताल करने की जरूरत पड़ेगी क्योंकि नियम के मुताबिक उम्मीदवार नामांकन दाखिल करते वक्त लंबित मुकदमों का ब्योरा और उनकी स्थिति बताता है साथ ही उसमें धाराओं का भी जिक्र होता है जिनमें वह आरोपित होता है।

चुनाव चिन्ह आदेश में संशोधन कर उपरोक्त शर्त जोड़ने से राजनैतिक दलों पर राज्य और राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की मान्यता के लिए अपराधी को टिकट न देने की सिर्फ एक अतिरिक्त शर्त शामिल हो जाएगी। इसका किसी कानून से टकराव भी नहीं होगा क्योंकि फिलहाल इस बारे में कोई कानून नहीं है।

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