राफेल मामले में हाशिए पर धकेले गए भाजपा नेताओं के तेवर को लेकर अटकलें तेज

सुप्रीम कोर्ट को दिए गए जवाब में सरकार ने बताया है कि आफसेट को लेकर अभी भी दोनों कंपनियों ने औपचारिक रूप से प्रस्ताव नहीं दिया है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 18 Nov 2018 06:22 PM (IST) Updated:Mon, 19 Nov 2018 07:28 AM (IST)
राफेल मामले में हाशिए पर धकेले गए भाजपा नेताओं के तेवर को लेकर अटकलें तेज
राफेल मामले में हाशिए पर धकेले गए भाजपा नेताओं के तेवर को लेकर अटकलें तेज

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राफेल को लेकर विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच घमासान जारी है। सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई पर भी नजरें जमी हैं। वहीं दूसरा बड़ा सवाल यह है कि आखिर भाजपा में हाशिए पर गए कुछ नेता क्यों विपक्ष के साथ खड़े नजर आ रहे है? इसको लेकर भी अटकलें तेज हो गई हैं। माना जा रहा है कि उक्त नेता भी परिवार मोह में हैं और उनके सगे संबंधियों का तार रक्षा खरीद से भी जुड़ता है।

पिछले दिनों में भाजपा के कुछ नेता भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। सूत्रों की मानी जाए तो इनमें से एक भाजपा नेता के संबंधी देश की एक बड़ी रक्षा कंपनी से भी जुड़े हैं। संदेह जताया जा रहा है कि राफेल का विरोध इसलिए किया जा रहा है ताकि उक्त कंपनी को इसका फायदा मिल सके। उक्त कंपनी ने लाकहीड मार्टिन से समझौता किया है और यह कंपनी राफेल बनाने वाली कंपनी दासौ की प्रतिद्व्ंद्वी मानी जाती है।

बात यहीं नहीं रुकती है। भाजपा के उक्त नेता का प्रत्यक्ष और परोक्ष संबंध उन नेताओं और व्यक्तियों तक भी पहुंचता है जो सीधे सीधे कांग्रेस नेतृत्व के आसपास माना जाता है। इनमें से एक नेता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सलाहकार रह चुके हैं।

भाजपा के अंदर ही पनपे विरोध का पूरा कारण जो भी हो। यह माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में जवाब देने के बाद सरकार राफेल खरीदी के निर्णय और प्रक्रिया को लेकर जनता के सामने भी आ सकती है। सुप्रीम कोर्ट को दिए गए दस्तावेज में सरकार ने कहा है कि 36 राफेल विमानों की खरीद 2013 में संप्रग सरकार के काल में तय रक्षा खरीद प्रक्रिया के अनुसार ही किया गया है।

यह भी जानकारी दी गई है कि एचएएल और राफेल बनाने वाली कंपनी के बीच कुछ मुद्दों पर तीन साल तक सहमति नहीं बन पाई थी। इस असमंजस के कारण ही 2010-2015 के बीच जहां भारत अनिर्णय से जूझता रहा,वहीं भारत के मुख्य प्रतिद्वंदियों ने 400 फाइटर जेट अपने बेडे़ में शामिल कर लिए थे। इसमें चौथे और पाचवें जेनरेशन के लड़ाकू विमान भी शामिल थे।

इसी को ध्यान में रखते हुए भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुए समझौते के बाद एक महीने के अंदर ही भारतीय वार्ता टीम और फ्रेंच टीम के बीच बैठकें शुरू हुई और लगभग एक साल तक चली। भारतीय टीम का नेतृत्व डिप्टी चीफ आफ एअर स्टाफ कर रहे थे और इसमें संयुक्त सचिव स्तर के लगभग आधा दर्जन अधिकारी शामिल थे। इनकी कुल 74 बैठकें हुई जिसमें से 26 बैठकें फ्रेंच टीम के साथ हुई थी। जाहिर है कि इसी टीम ने कीमत भी तय की होंगी।

सरकार की ओर से आफसेट को लेकर भी जवाब दिए गए हैं जिसमें कहा गया है कि दोनों सरकारों के बीच वार्ता में किसी भी निजी भारतीय कंपनी के बारे में कोई बातचीत नहीं हुई। ध्यान रहे कि कांग्रेस का सबसे ज्यादा हमला आफसेट को लेकर ही है।

राफेल खरीदी प्रक्रिया को लेकर सरकार हो सकती है सार्वजनिक
सुप्रीम कोर्ट को दिए गए जवाब में सरकार ने बताया है कि आफसेट को लेकर अभी भी दोनों कंपनियों ने औपचारिक रूप से प्रस्ताव नहीं दिया है। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में दिए गए जवाब के बाद अब सरकार सार्वजनिक रूप से भी प्रक्रिया बताकर विवाद के जाल से निकलने की कोशिश करेगी। 

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