प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद तो शरद पवार ने भी नहीं छोड़ी है

जरूरी नहीं कि गैर-भाजपा दलों में प्रधानमंत्री पद पर दावा ठोंकने वाले सभी दल एक-दूसरे को पसंद करें ऐसी स्थिति में शरद पवार के नाम पर सहमति बन सकती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 23 May 2019 06:34 AM (IST) Updated:Thu, 23 May 2019 06:34 AM (IST)
प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद तो शरद पवार ने भी नहीं छोड़ी है
प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद तो शरद पवार ने भी नहीं छोड़ी है

मुंबई [ ओमप्रकाश तिवारी ]। एक्जिट पोल में महागठबंधन की स्थिति अच्छी न दिखने से कांग्रेस जैसा राष्ट्रीय दल अंदर से भले निराश हो, लेकिन शरद पवार जैसे शातिर खिलाड़ी इस स्थिति को ही अपने लिए सुअवसर मान रहे हैं।

भारत की संसद पर हुए हमले से ठीक एक दिन पहले 12 दिसंबर, 2001 को मुंबई के रेसकोर्स में अपना 61 जन्मदिन मनाते हुए शरद पवार ने एक पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की उपस्थिति में स्वयं के प्रधानमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षा का खुलासा किया था। यह महत्त्वाकांक्षा आज 79 वर्ष की उम्र में भी अभी जिंदा है। पार्टी में शरद पवार करीबी एक वरिष्ठ नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि यदि दिखाए जा रहे एक्जिट पोल सही साबित न हुए, तो वर्तमान परिस्थितियों में उपलब्ध महागठबंधन के नामों पर असहमति की स्थिति में शरद पवार का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उभरकर सामने आ सकता है। अर्थात, जरूरी नहीं कि गैर-भाजपा दलों में प्रधानमंत्री पद पर दावा ठोंकने वाले सभी दल एक-दूसरे को पसंद करें, ऐसी स्थिति में शरद पवार के नाम पर सहमति बन सकती है।

बता दें कि एक्जिट पोल आने के बाद से ही शरद पवार खासतौर से दक्षिणी राज्यों के नेताओं से लगातार संपर्क कर रहे हैं। वह एक ओर टीआरएस के नेता के.चंद्रशेखर राव के संपर्क मंर हैं, तो दूसरी ओर आंध्रप्रदेश में एक-दूसरे के धुर विरोधी चंद्रबाबू नायडू एवं जगनमोहन रेड्डी के भी संपर्क में हैं। तमिलनाडु में डीएमके के नेताओं से उनके संबंध अच्छे हैं, तो उड़ीसा में नवीन पटनायक भी उड़ीसा के हित के बहाने उनका साथ देने पर राजी हो सकते हैं।

देश को यदि उत्तर और दक्षिण में विभाजित करके देखा जाय तो भाजपा दक्षिण में ही सबसे कमजोर है। जबकि इस क्षेत्र के लगभग सभी दलों के वरिष्ठ नेताओं के साथ शरद पवार के अच्छे संबंध हैं। जम्मू-कश्मीर में फारुख अब्दुल्ला से भी उनके पारिवारिक संबंध रहे हैं। जबकि महागठबंधन में मायावती जैसे दावेदारों को सीटें भले कुछ ज्यादा मिल जाएं, लेकिन उनके नाम पर दक्षिण भारत से सहमति बन पाना टेढ़ी खीर साबित होगा। ममता बनर्जी के नाम पर भी वामदलों सहित कई दल सहमत नहीं होंगे।

उक्त वरिष्ठ नेता का मानना है कि यदि भाजपा और उसके सहयोगी दल 273 के जादुई आंकड़े से पीछे रह जाते हैं, और 1996 जैसी स्थिति बनती है, तो महागठबंधन के नेताओं को प्रधानमंत्री पद के नाम पर सहमति बनाने के लिए जल्दी ही साथ बैठना पड़ेगा। ऐसी किसी बैठक में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में माने जा रहे राहुल गांधी, माया, ममता, नायडू जैसे नामों की तुलना में अनुभव, उम्र एवं ज्यादा दलों से संबंधों के आधार पर शरद पवार का नाम सबसे भारी पड़ेगा। इसीलिए शरद पवार ने चुनाव परिणाम आने से पहले ही अपनी सक्रियता बढ़ा दी है।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

chat bot
आपका साथी