Puducherry Political Crisis: एक समय की बात थी...जब यह सब कांग्रेसी ही थे

महज 30 सीटों की पुडुचेरी विधानसभा में इतना राजनीतिक बवाल हो सकता है यह किसी ने नहीं सोचा था। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि यह सब हुआ कांग्रेस के कारण ही। यही नहीं आंध्र प्रदेश बंगाल छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी पूर्व कांग्रेसियों ने ही कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 25 Feb 2021 10:44 AM (IST) Updated:Thu, 25 Feb 2021 01:53 PM (IST)
Puducherry Political Crisis: एक समय की बात थी...जब यह सब कांग्रेसी ही थे
इस घटनाक्रम में कांग्रेस के हाथ से एक ओर राज्य चला गया।

जेएनएन, नई दिल्ली। पुडुचेरी में नारायण सामी सरकार गिरने से दशकों बाद ऐसा मौका आया है जब दक्षिण भारत के किसी राज्य (केंद्र शासित प्रदेश) में राष्ट्रपति शासन लगाने की मंजूरी दे दी गई है। कांग्रेस की यह हालत दरअसल कांग्रेस से बाहर निकले असंतुष्टों द्वारा बनाई गई पार्टी की वजह से हुई है। वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व पुडुचेरी के पूर्व मुख्यमंत्री एन रंगास्वामी द्वारा बनाई गई एक क्षेत्रीय पार्टी ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस द्वारा किया जाता रहा है।

रंगास्वामी वर्ष 2008 में सीएम के रूप में हटाए जाने के बाद से ही कांग्रेस से नाखुश थे। उनकी पार्टी ने वर्ष 2011 के चुनावों में प्रभावशाली शुरुआत की। उन्होंने 30 में से 15 सीटें जीतीं और अन्ना द्रमुक के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। दरअसल, आजादी के बाद से कांग्रेस को अनगिनत फूट का सामना करना पड़ा है। कई नेताओं ने गुटीय मतभेदों के कारण पार्टियां छोड़कर अपनी पार्टियां बना लीं। ममता बनर्जी, शरद पवार और वाय एस जगन मोहन रेड्डी सफल रहे, जबकि के करुणाकरन, अजीत जोगी और जीके मूपनार जैसे कई सत्ता से बाहर हो गए।

वाइएसआर कांग्रेस

आजादी के बाद तीन दशकों में, कांग्रेस आंध्र प्रदेश में अपराजित रही। तेलुगू फिल्म अभिनेता से नेता बने एनटी रामाराव ने इस परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया। वर्ष 1982 में उन्होंने तेलुगू देशम पार्टी का गठन कर सत्ता पर कब्जा कर लिया। वर्ष 1989 में कांग्रेस वापस लौट आई, लेकिन वर्ष 1994 में फिर से हार गई। पार्टी वर्ष 2004 में 10 साल बाद सत्ता में लौटी, जिसका नेतृत्व करिश्माई वाइएस राजशेखर रेड्डी ने किया। सितंबर 2009 में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में वाइएसआर की मौत ने उनके बेटे जगन को सुर्खियों में ला दिया। वाइएसआर के समर्थक चाहते थे कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने 79 वर्षीय वयोवृद्ध नेता रोसैया को मुख्यमंत्री बना दिया। एक साल बाद, नवंबर 2010 में, जगन ने सोनिया गांधी को एक खुले पत्र के माध्यम से कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और वाइएसआर कांग्रेस के नाम से अपनी पार्टी बना ली। लंबा समय लगा, लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में जगन ने सत्ता में वापसी की।

तृणमूल कांग्रेस

कांग्रेस से बाहर होकर खुद की सत्ता कायम करने वालों में सबसे बड़ा उदाहरण है बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। कांग्रेस के उग्र नेता ने वर्ष 1984 में मार्क्‍सवादी सोमनाथ चटर्जी को हरा दिया था। उन्होंने वर्ष 1997 में कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और एक जनवरी 1998 को अपनी तृणमूल कांग्रेस को एक अलग राजनीतिक दल में बदल दिया। 34 साल से चली आ रही मार्क्‍सवादी सरकार को हटाकर खुद सत्ता पर काबिज हुई। आज दो दशकों से उनकी पार्टी बंगाल में सरकार बना रही है।

एन आर कांग्रेस

कांग्रेस वर्ष 1967 से तमिलनाडु में सत्ता से बाहर है, लेकिन पड़ोसी राज्य पुडुचेरी में सालों से कांग्रेस की सरकार है। वर्ष 2008 में उनकी ही कैबिनेट उनके खिलाफ हो गई और रंगास्वामी को पद छोड़ना पड़ा। सभी ने विरोध के राग छेड़ दिए थे। वैथीलिंगम वर्ष 1991 से 1996 तक मुख्यमंत्री रहे। फरवरी 2011 में, रंगास्वामी ने अपनी पार्टी बनाई। मई 2011 के चुनावों में कांग्रेस सात सीटों पर सिमट गई थी। 2016 में यह स्थिति उलट गई, जब कांग्रेस ने 15 सीटें जीती और एन आर कांग्रेस को आठ सीटें मिलीं।

राष्ट्रवादी कांग्रेस

सोनिया गांधी के पार्टी अध्यक्ष के रूप में सत्ता संभालने के बाद पहले बड़े नेताओं में से एक शरद पवार थे। सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे पर विद्रोह के बैनर को उठाते हुए उन्होंने तारिक अनवर और पीए संगमा के साथ मिलकर वर्ष 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। हालांकि महाराष्ट्र में दोनों दलों ने साथ मिलकर सरकार चलाई। पवार यूपीए का हिस्सा थे और कांग्रेस और एनसीपी ने वर्ष 10 साल (2004 से 2014)तक राज्य में गठबंधन सरकार चलाई। संगमा बाद में एनसीपी से टूट गए और अनवर कांग्रेस में लौट आए। पवार देश के सबसे बड़े कांग्रेस विरोधियों में से एक उभरकर सामने आए।

इतना सफल नहीं है

केरल के सबसे बड़े नेताओं में से एक के करुणाकरन ने वर्ष 2004 में कांग्रेस छोड़ दी और एक नया संगठन बनाया लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। वर्ष 2016 में पार्टी का गठन करने वाले छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालने में असफल रहे। वर्ष 2001 में उनकी मृत्यु के बाद 1996 में तमिलनाडु कांग्रेस के दिग्गज जीके मूपनार द्वारा बनाई गई तमिल मैनिला कांग्रेस। उनके बेटे जीके वासन ने वर्ष 2002 में कांग्रेस के साथ पार्टी का विलय कर लिया, लेकिन वर्ष 2014 में तमिल मैनिला को फिर से जीवित कर दिया। यह सभी कांग्रेस से बाहर हुए लेकिन सफल नहीं रहे। सत्ता से बाहर हो गए थे जोगी।

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