कृषि कानून पर सियासत: तीन महीने की चुप्पी के बाद जागा विपक्ष, सभी राज्यों ने दिया था समर्थन

कृषि विधेयकों को लेकर विपक्षी दल और कुछ राज्यों की ओर से भले ही तूफान खड़ा करने की कोशिश हो रही हो लेकिन सच्चाई यह है कि अध्यादेश का प्रारूप तैयार करने से पहले ही सभी राज्यों से विचार विमर्श कर लिया गया था।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 09:36 PM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 09:36 PM (IST)
कृषि कानून पर सियासत: तीन महीने की चुप्पी के बाद जागा विपक्ष, सभी राज्यों ने दिया था समर्थन
मानसून सत्र से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री ने विरोध किया था। महाराष्ट्र सरकार चुप्पी साधे है!

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कृषि विधेयकों को लेकर विपक्षी दल और कुछ राज्यों की ओर से भले ही तूफान खड़ा करने की कोशिश हो रही हो, लेकिन सच्चाई यह है कि अध्यादेश का प्रारूप तैयार करने से पहले ही सभी राज्यों से विचार विमर्श कर लिया गया था। तब पंजाब समेत दूसरे राज्यों के कृषि सचिवों ने माना था कि इससे किसानों का भला होने वाला है और इसे लागू किया जाना चाहिए। राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों के रुख का भी अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की ओर से पहली बार इसका औपचारिक विरोध मानसून सत्र शुरू होने के कुछ दिन पहले हुआ। यानी अध्यादेश लागू होने के लगभग तीन महीने बाद।

पंजाब को छोड़ किसी ने भी मानसून सत्र से पहले नहीं जताया था विरोध

5 जून को सरकार की ओर से कृषि से जुड़े तीन अध्यादेश लागू किए गए थे जो अब कानून का रूप ले चुके हैं। उस वक्त अकेले पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इसका विरोध किया था। जाहिर तौर पर इस विरोध का बड़ा कारण सरकार को आने वाला राजस्व था, लेकिन अमरिंदर की पार्टी कांग्रेस समेत बाकी किसी स्तर पर कोई बयान तक नहीं आया था।

राज्यसभा में विपक्ष की ओर से हिंसक विरोध, विधेयक की प्रतियां फाड़ी गईं

कुछ दिन पहले राज्यसभा में विपक्ष की ओर से बड़ा हिंसक विरोध हुआ था। विधेयक की प्रति तक फाड़ी गई, माइक तक तोड़े गए। लेकिन अचरज की बात है कि सभापति के आसन तक जाकर हिंसक प्रदर्शन करने वाले नेताओं की पार्टी तृणमूल की ओर से पहला औपचारिक विरोध तब हुआ जब यह लोकसभा से पारित हो चुका था।

अध्यादेश तक केंद्र सरकार को किसान विरोधी ठहराने की बात नहीं उठी

यानी तीन महीने तक जब अध्यादेश के रूप में यह लागू था और किसानों को छूट मिली थी कि वह मंडी से बाहर उत्पाद बेच सकते हैं, तब इसे लेकर कोई परहेज नहीं था। उस वक्त तक केंद्र सरकार को किसान विरोधी ठहराने की बात नहीं हुई थी। जबकि कांग्रेस का कहना है कि उसने पार्टी की एक समिति बनाई थी जिसने अध्ययन करने के बाद इन विधेयकों का किसानों के अहित में बताया था। रोचक तथ्य यह है कि इस अध्ययन में कांग्रेस को तीन महीने लग गए।

महाराष्ट्र सरकार ने 10 अगस्त को ही पूरे राज्य में कृषि से जुड़े तीनों अध्यादेश लागू कर दिए थे

14 सितंबर को मानसून सत्र शुरू हुआ उसके पहले दो दिन दिन तक लगातार कांग्रेस की ओर से बताया गया कि पंजाब विधानसभा में इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि कांग्रेस साझे की महाराष्ट्र सरकार ने इन विधेयकों से जुड़े अध्यादेशों को 10 अगस्त को ही पूरे राज्य में लागू कर दिया था। अब इसका विरोध किया जा रहा है।

महाराष्ट्र सरकार अब चुप्पी साधे है

बात यहीं नहीं रुकती है, महाराष्ट्र सरकार अब चुप्पी साधे है और अनजान भी बन रही है। कुछ स्तर पर हैरत भी जताई जा रही है जबकि यह स्पष्ट है कि अध्यादेश लागू करने के लिए नोटिफिकेशन राज्य के मार्केटिंग और कोपरेटिव मंत्री की सहमति के बाद हुआ। ऐसे में यह नहीं माना जा सकता है कि राज्य के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को इसका पता ही नहीं था।

आग तब उठी जब मानसून सत्र आया

यही कारण है कि सोमवार को लाख कोशिशों के बावजूद शिवसेना की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। जबकि पंजाब के एक अधिकारी के अनुसार केंद्र की ओर से अध्यादेश लागू होने के बाद राज्य को अलग से नोटिफिकेशन की जरूरत भी नहीं है। यानी यह अध्यादेश पूरे देश में लागू था, लेकिन आग तब उठी जब मानसून सत्र आया।

लागू किए जाने का सभी राज्यों ने किया था स्वागत

दरअसल, केंद्र सरकार की ओर से तो अध्यादेश लाने के पहले ही सहमति बनाने का दौर शुरू हो गया था। केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार 5 जून को अध्यादेश जारी करने से पहले केंद्रीय कृषि सचिव ने सभी राज्यों के कृषि सचिवों के साथ बैठक हुई थी। तब कुछ छोटे-छोटे सवाल जरूर हुए थे, लेकिन इसे लागू किए जाने का सभी ने स्वागत किया था।

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