17 वर्षों के बाद राजस्थान की सरकार में पहली बार मचा है सियासी भूचाल, क्या होगा कहना मुश्किल
17 वर्षों के बाद राजस्थान में मचे सियासी भूचाल ने सत्ताधारी पार्टी की जमीन हिला दी है। इस भूचाल के केंद्र में सचिन पायलट हैं।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। राजस्थान में मचा सियासी बवाल ने न सिर्फ राज्य की सत्ता में खलबली मचा रखी है बल्कि केंद्र तक इसकी धमक सुनाई दे रही है। यहां पर कांग्रेस के सचिन पायलट ने बागी तेवर दिखाए हुए हैं। हालांकि उनके इन बागी तेवरों की ही बात करें तो ये उस वक्त भी दिखाई दिए थे जब उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने यहां पर विधानसभा चुनाव जीता था। सचिन पायलट के तेवरों से उस वक्त ही ये साफ हो गया था कि इस बार राज्य में सबकुछ ठीक नहीं रहने वाला है। इसके बाद रही सही कसर सचिन की ज्योर्तिरादित्य सिंधिया से मुलाकात ने पूरी कर दी। इसके बाद तो तस्वीर लगातार साफ और स्पष्ट होती जा रही है।
आपको बता दें कि सचिन और ज्योर्तिरादित्य दोनों ही कभी राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड का हिस्सा हुआ करते थे और उनके काफी करीबी नेताओं में से थे। लेकिन बाद में ये करीबी दूरियों में तब्दील होती चली गई और अंत में बगावत बन गई। देखा जाए तो सचिन और ज्योर्तिरादित्य की बगावती कहानी एक ही जैसी है। जैसा बवाल पार्टी के विधानसभा चुनाव जीतने पर राजस्थान में हुआ था वैसा ही हाल मध्य प्रदेश में भी हुआ था। इस बगावत का पहला सफल चेहरा ज्योर्तिरादित्य ही बने थे। अब माना जा रहा है कि सचिन उनके ही पद चिंहों पर चल रहे हैं।
बहरहाल, आपको यहां पर ये भी बता दें कि 1993 के बाद राजस्थान में ये पहला मौका है जब इस तरह का सियासी संकट सरकार के लिए दिखाई दे रहा है। 1993 के बाद से ही यहां पर भाजपा और कांग्रेस को बराबर सत्ता में भागीदारी दिखाने का मौका मिला है। हर पांच वर्षों के बाद राजस्थान की जनता ने सत्ताधारी पार्टी को विदा कर दूसरी पार्टी का दामन थामा है। 1993 में प्रदेश में भाजपा के भैरों सिंह शेखावत ने सत्ता संभाली थी। 1998 में यहां पर कांग्रेस जीती और अशोक गेहलोत सीएम बने थे। 2003 में यहां पर भाजपा फिर जीती और वसुंधरा राजे के नेतृत्व में सरकार बनी। 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी करी और अशोक गेहलोत सीएम बने। 2013 में फिर यहां पर भाजपा की जीत के साथ वसुंधरा राजे सत्ता में आईं और सीएम बनी। 2018 में फिर यहां की जनता ने सत्ताधारी पार्टी को बेदखल कर कमान कांग्रेस को सौप दी थी।
राजस्थान के सियासी बवाल की ही बात करें तो 1949 से 1977 तक प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो रही लेकिन इस दौरान प्रदेश ने 9 सीएम भी देखे। इस दौरान 1967 में लगभग एक माह के लिए और 1977 में लगभग दो माह के लिए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लगा था। इस दौरान हिचकोले खाती कांग्रेस की नैया की बात करें तो यहां पर 7 अप्रैल 1949 को कांग्रेस के हीरा लाल शास्त्री ने सीएम पद संभाला था। लेकिन वो इस पद पर 5 जनवरी 1951 तक ही रह सके।
इसके बाद 6 जनवरी 1951 को इस पद सीएस वैंकटाचारी पहुंच गए। वो महज कुछ ही माह इस पर बने रह सके। 26 अप्रैल 1951 को जय नारायण व्यास राज्य के सीएम बने। इसके बाद 3 मार्च 1952 को कांग्रेस के ही टीकाराम पालिवाल ने सीएम पद की शपथ ली। 1 नवंबर 1952 को एक बार फिर जय नारायण व्यास को सत्ता सौंप दी गई जो 12 नवंबर 1954 को फिर उनके हाथ से निकल गई। 13 नवंबर 1954 को मोहनलाल सुखेदिया सीएम बने। वे भी 13 मार्च 1967 को इससे हटा दिए गए है। इसके बाद एक माह के लिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था।
26 अप्रैल 1967 को उन्हें दोबारा सीएम पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई गइ्र। 9 जुलाई को सीएम की कुर्सी पर बरकतुल्लाह खान को बिठा दिया गया। 11 अगस्त 1973 को हरी देव जोशी ने प्रदेश की कमान कांग्रेस नेता के रूप में संभाली थी। वे सत्ता में 22 जून 1977 तक बने रहे थे। इसके बाद भैरों सिंह शेखावत पहले गैर कांग्रेसी सीएम बने थे। 16 फरवरी 1980 तक वे इस पद पर रहे। इसके बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा। 6 जून 1980 को दोबार कांग्रेस सत्ता में आई और जगननाथ पांडा सीएम बने। 14 जुलाई 1980 को शिवचरण माथुर को इस पद पर बिठा दिया गया।
23 फरवरी 1985 को हीरालाल देवपुरा ने प्रदेश की कमान संभाली और महज 16 दिन सीएम रहे। 10 मार्च 1985 को हरी देव जोशी आए, 20 जनवरी 1988 को दोबारा शिव चरण माथुर सीएम बन गए। 4 दिसंबर 1989 को फिर हरीदेव जोशी सीएम बने। 4 मार्च 1990 को राज्य की कमान फिर भैरों सिंह शेखावत के हाथों में आई लेकिन इस बार वे भाजपा के सीएम थे। वे इस बार 15 दिसंबर 1992 तक इस पद पर रहे। इसके बाद फिर प्रदेश में लगभग एक वर्ष के लिए राष्ट्रपति शासन लगा और फिर 4 दिसंबर 1993 को दोबारा शेखावत ने ही सत्ता संभाली थी। इस बार उनकी सरकार पूरे पांच साल चली थी।