Opposition Politics: भाजपा को घेरने के लिए विपक्ष बैठक में मजबूत लेकिन जमीन पर गायब

विपक्षी दलों ने 20 से 30 सितंबर के बीच देशव्यापी विरोध प्रदर्शन धरना आदि करने की घोषणा की थी। मगर राष्ट्रीय स्तर पर तो दूर राज्य स्तर पर भी विपक्षी दलों द्वारा आंदोलन करने जैसी कोई सियासी पहल नजर नहीं आ रही है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 10:27 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 10:27 PM (IST)
Opposition Politics: भाजपा को घेरने के लिए विपक्ष बैठक में मजबूत लेकिन जमीन पर गायब
क्षेत्रीय दलों की उदासीनता के बाद अब अपने बूते अभियान को कारगर बनाने में जुटी कांग्रेस (फाइल फोटो)

 संजय मिश्र, नई दिल्ली। पेगासस जासूसी मामले से लेकर कृषि सुधार कानूनों व किसानों के मुद्दे पर सरकार को संयुक्त रूप से घेरने का विपक्षी दलों का एलान जमीन पर उतरता दिखाई नहीं दे रहा है। इन मुद्दों पर विपक्षी दलों ने 20 से 30 सितंबर के बीच देशव्यापी विरोध प्रदर्शन, धरना आदि करने की घोषणा की थी। मगर राष्ट्रीय स्तर पर तो दूर राज्य स्तर पर भी विपक्षी दलों द्वारा आंदोलन करने जैसी कोई सियासी पहल नजर नहीं आ रही है। विपक्षी एकता को मजबूती देने के लिए किए गए इस एलान पर क्षेत्रीय दलों के ठंडे रुख को देखते हुए कांग्रेस ने जरूर अपनी राज्य इकाइयों को आंदोलन करने का निर्देश भेजा है।

कांग्रेस ने राज्य इकाइयों को धरना-प्रदर्शन और विरोध आंदोलन करने के भेजे निर्देश में यह भी कहा है कि वे अपनी तरफ से पहल कर सूबे में समान विचार रखने वाली पार्टियों को भी इसमें शामिल करने का प्रयास करें। संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से भेजे गए पत्र में पिछले 20 अगस्त को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर हुई 19 विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक में ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्र सरकार के खिलाफ संयुक्त आंदोलन करने के निर्णय का जिक्र भी किया गया। इस आंदोलन को सूबों में प्रभावी बनाने के लिए वहां के बड़े नेताओं, सांसदों व विधायकों को भी शामिल करना सुनिश्चित करने का निर्देश भी इसमें शामिल है। लेकिन मंगलवार को इस संयुक्त आंदोलन के दूसरे दिन कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों की कहीं कोई सियासी गतिविधि नजर नहीं आई।

विपक्षी दलों की सियासी एकजुटता को जमीन पर उतारने के लिए कांग्रेस ने इस संयुक्त आंदोलन की रूपरेखा बनाई और सोनिया गांधी की बुलाई बैठक में शरद पवार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, एमके स्टालिन, सीताराम येचुरी जैसे विपक्षी दिग्गजों ने इस पर हामी भरी। मगर बंगाल में चाहे तृणमूल कांग्रेस हो, महाराष्ट्र में शिवसेना-राकांपा, तमिलनाडु में द्रमुक और बिहार में राजद। इन दलों की ओर से इस घोषणा पर अमल की कोई पहल अभी तक सामने नहीं आई है।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव विपक्षी नेताओं की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। मगर संयुक्त बयान पर बाकायदा अपनी सहमति दी थी। हालांकि, उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी भी कांग्रेस के साथ मिलकर साझा विरोध प्रदर्शन की कोई पहल कर रही है, यह अब तक सामने नहीं आया है। ऐसे में विपक्षी दलों का यह संयुक्त आंदोलन करीब-करीब हवाई एलान जैसा होने की ओर ही बढ़ता दिख रहा है और अकेले कांग्रेस ही इस विरोध प्रदर्शन की पतवार थामे नजर आ रही है।

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