लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी भी लगा देते हैं अधिकारी-कर्मचारी

मतदान कर्मियों को सुदूर क्षेत्रों से लेने गए हेलीकॉप्टर पर फायरिंग की वारदात भी हो चुकी है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Tue, 25 Sep 2018 09:57 PM (IST) Updated:Wed, 26 Sep 2018 12:06 AM (IST)
लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी भी लगा देते हैं अधिकारी-कर्मचारी
लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी भी लगा देते हैं अधिकारी-कर्मचारी

रायपुर, नईदुनिया, अनिल मिश्रा। बस्तर के नक्सल प्रभावित सात जिलों में लोकतंत्र की रक्षा के लिए सरकारी अधिकारी-कर्मचारी जान की बाजी लगाते हैं। यहां चुनाव कराना आसान नहीं है। मीलों तक घने जंगलों में बसे गांवों में मतदान कराने के लिए पोलिंग पार्टियों को दो-तीन दिन पैदल चलकर जाना पड़ता है। नदी-नाले, पहाड़ लांघकर थके हारे मतदान कर्मियों पर नक्सली हमलों की वारदात यहां आम बात है। हर चुनाव में ईवीएम लूटने, मतदान केंद्रों पर हमला करने, रास्तों पर बम प्लांट , पोलिंग पार्टियों की गाड़ियों को बम से उड़ाने जैसी घटनाएं होती रही हैं।

मतदान कर्मियों को सुदूर क्षेत्रों से लेने गए हेलीकॉप्टर पर फायरिंग की वारदात भी हो चुकी है। स्थिति यह है कि इन इलाकों में जिनकी ड्यूटी लगती है वे जब तक चुनाव कराकर लौट नहीं आते उनके परिजन घर में हवन पूजन में लगे रहते हैं। प्रशासन की भी नींद तब तक उड़ी रहती है जब तक सभी पार्टियां वापस आकर रिपोर्ट नहीं कर देती हैं। यह बस्तर है। लोकतांत्रिक भारत में चुनाव के लिहाज से इसे सबसे खतरनाक इलाका माना जाता है। इतनी दिक्क्तों के बाद भी अगर यहां लोकतंत्र जिंदा है तो इसकी वजह सरकारी कर्मचारियों की बहादुरी और जिजीविषा ही है।

नक्सलियों ने फिर चस्पा किए पोस्टर
बस्तर संभाग में 2013 के चुनाव के दौरान 167 मतदान केंद्रों को जंगल के अंदरूनी हिस्सों से शिफ्ट करना पड़ा था। इस बार भी कुछ मतदान केंद्र बदले जा सकते हैं। हालांकि इन बदलावों से भी स्थिति में ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। अभी चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं हुई है और नक्सलियों ने जगह-जगह चुनाव के बहिष्कार के पोस्टर लगा दिए हैं। गावों में नक्सली सभाएं हो रही हैं। आदिवासियों को बताया जा रहा है कि लोकतंत्र फर्जी है, यह व्यवस्था ढकोसला है, नेता पूंजीपतियों के गुलाम हैं, सर्वहारा को अगर न्याय चाहिए तो नेताओं को मार भगाओ।

वसीयत कर चुनाव ड्यूटी में जाते हैं अधिकारी-कर्मचारी
बस्तर के अंदरूनी इलाकों में चुनाव ड्यूटी करा चुके अधिकारियों ने बताया कि वे चुनाव ड्यूटी में जाने से पहले अपनी वसीयत लिख जाते हैं। पता नहीं वापस लौट पाएं या नहीं। मतदान दल रवाना किए जाते हैं तो दंतेवाड़ा के मां दंतेश्वरी मंदिर में ईवीएम थामे पोलिंग अफसरों की भीड़ उमड़ पड़ती है। अब तो उन्हीं का सहारा है। 2013 के चुनाव में सुरक्षा की तगड़ी व्यवस्था रही। ईवीएम लूट की छुटपुट घटनाओं के अलावा कुछ खास नहीं हुआ तो सरकार ने राहत की सांस ली। तभी पता चला कि बीजापुर जिले के फरसेगढ़ में जंगल से निकल चुके मतदान दलों को लेने गई बस को नक्सलियों ने विस्फोट से उड़ा दिया है। सात लोगों की जान गई।

हिंसा का इतिहास पुराना
2003 के चुनाव में बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा इलाके के जंगलों में गया एक मतदान दल 36 घंटे लापता रहा। प्रशासन रातभर जागता रहा। 2008 में बीजापुर जिले के पीडिया गांव से मतदान दल को लेने गए हेलीकॉप्टर पर नक्सलियों ने गोलीबारी की। फ्लाइट इंजीनियर की मौत हो गई लेकिन पायलट ने बहादुरी दिखाई और मतदान दल को सुरक्षित निकाल लाया। ऐसी घटनाओं की यहां भरमार है।

जेल भी जाना पड़ा
2008 के चुनाव में दंतेवाड़ा (अब सुकमा) जिले के गोगुंडा में मतदान कराने गए दल की ईवीएम नक्सलियों ने छीन ली और उन्हें भगा दिया। दोबारा मतदान के लिए पार्टी रवाना की गई। 22 किमी माइन प्रोटेक्टेड वाहन और भारी सुरक्षा के बीच यह दल वाहनों में गया। आखिर के 15 किमी पैदल चलना था। मतदान दल की हिम्मत टूट गई। उन्होंने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से चर्चा की, प्रमुख दलों को बराबर वोट खुद दे दिया और लौट आए। एक छोटे दल को कम वोट मिले थे तो मामला खुल गया। मतदान दल में शामिल 15 कर्मचारी जेल चले गए।

रात भर डराते रहे नक्सली
2008 के चुनाव में दंतेवाड़ा जिले हांदावाड़ा से मतदान कराकर लौटे एक कर्मचारी ने बताया कि वे एक दिन पहले शाम को गांव में पहुंच गए थे। सन्नाटा पसरा था। वोटर का नामोनिशान नहीं था। हांदावाड़ा में एक बेहद ऊंचा जलप्रपात है। नीचे गांव है, वे गांव में कैंप करते रहे ऊपर झरने के पास नक्सली ढोल बजाकर रात भर लोकतंत्र के विरोध में नाच गाना करते रहे, यहां चुनाव वाले दिन महज दो-चार वोट ही पड़े। 


एक वोट के लिए जोखिम
2008 में सुकमा जिले के इंजरम से पोलिंग पार्टी को भेज्जी रोड पर स्थित गोरखा के लिए भेजा गया। सलवा जुड़ूम के चलते वह गांव खाली था। वहां के लोग इंजरम कैंप में रहते हैं, तो इंजरम से वोटर भी ले जाए गए। जाने के बाद मतदाता सूची से मिलान किया तो सिर्फ एक व्यक्ति का नाम मिला। एक वोट डलवाकर पार्टी दिनभर वहां बैठी रही। यह ऐसा इलाका है जहां रास्तों में बम गड़े हैं।

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