सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से एनपीए का मुद्दा अब और उलझ गया
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकारी बैंकों पर उल्टा असर पड़ने जा रहा है कि वित्तीय स्थिति सुधरने के लिए इन्हें और लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सरकारी बैंकों में फंसे कर्जे यानी एनपीए का मुद्दा अब और उलझता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार के फैसले के बाद एनपीए की वसूली की प्रक्रिया भी अगले दो महीने तक प्रभावित होगी। अदालत ने एक निश्चित अवधि तक कर्ज नहीं चुकाने वाली सभी कंपनियों के खिलाफ दिवालिया कानून के तहत दिवालिया प्रक्रिया शुरु करने के आरबीआइ के नियम पर फिलहाल रोक लगा दी है।
एनसीएलटी यानी राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल में जिन कंपनियों के फंसे कर्जे का मामला निपटान के करीब पहुंच रहा था अब उनसे वसूली भी मुश्किल हो जाएगी। वैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिस तरह से बिजली, चीनी, शिपिंग व टैक्सटाइल क्षेत्र की कंपनियों को राहत मिली है उसे देखते हुए दूसरे क्षेत्र की कंपनियां भी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक देने की सोच रही है।
लाभ के लिए बैंकों को करना पड़ सकता है लंबा इंतजार
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकारी बैंकों पर सबसे उल्टा असर यह पड़ने जा रहा है कि वित्तीय स्थिति सुधरने के लिए इन्हें और लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। एनपीए बढ़ने की वजह से इन्हें काफी ज्यादा राशि अपने मुनाफे से समायोजित करनी पड़ रही है। इससे पिछले एक वर्ष से अधिकांश सरकारी बैंक काफी भारी नुकसान उठा रहे हैं।
एसबीआइ, पीएनबी समेत कुछ बैंकों को उम्मीद थी कि आरबीआइ के निर्देश के मुताबिक जब कुछ बड़ी कंपनियों की परिसंपत्तियों को बेच कर कर्ज की उगाही की जाएगी तो उन्हें उसका फायदा होगा। सितंबर, 2018 में समाप्त होने वाली तिमाही में इन बैंकों में उम्मीद थी कि एनसीएलटी में जिन कंपनियों का मामला गया है उससे उन्हें वसूली हो जाएगी। अप्रैल से जून, 2018 की तिमाही में सरकारी बैंकों को संयुक्त घाटा 16,614 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। इसके पिछले वित्त वर्ष के दौरान इन्हें हुआ था 85,370 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।
दिल्ली स्थित एक सरकारी बैंक के अधिकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर को इस मुद्दे को सुनने की बात कही है। इसका मतलब यह हुआ कि पूरी स्थिति के स्पष्ट होने में अभी और वक्त लग सकता है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने देश के दूसरी अदालतों में आरबीआइ के दिशानिर्देश को लेकर दायर सभी मामलों को अपने यहां ट्रांसफर करने की बात कही है। इससे उन बिजली कंपनियों को राहत मिल गई है जिनके मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राहत देने से मना कर दिया था।
आरबीआइ के निर्देश के खिलाफ तकरीबन दो दर्जन बिजली कंपनियों ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी। इनमें से कुछ कंपनियों की वसूली की प्रक्रिया बैंक सितंबर, 2018 में ही पूरा होने की उम्मीद लगाये थे। जाहिर है कि अब लंबा इंतजार करना होगा।
कोर्ट के फैसले से कुछ कंपनियां खुश हैं कि उन्हें बैंकों के कर्ज चुकाने के लिए अब ज्यादा वक्त मिल जाएगा। सरकारी डाटा के मुताबिक मार्च, 2018 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 10.41 लाख करोड़ रुपये का था।