अब नगा समस्या के स्थायी समाधान की बढ़ी उम्मीदें, टी मुइवा के खिलाफ बढ़ रहा असंतोष
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खात्मे और अलगगाववादियों के अलग-थलग पड़ने के बाद अब पिछले सात दशक से चल रहे नगा समस्या के समाधान की उम्मीदें बढ़ गई हैं। इसकी वजह जानने के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट ...
नीलू रंजन, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खात्मे और अलगगाववादियों के अलग-थलग पड़ने के बाद अब पिछले सात दशक से चल रहे नगा समस्या के समाधान की उम्मीदें बढ़ गई हैं। इसकी बड़ी वजह पिछले चार दशक से नगा अलगाववाद का चेहरा बने और शांति समझौते की राह की सबसे बड़ी बाधा एनएससीएन (आइएम) के महासचिव टी. मुइवा के खिलाफ बढ़ता असंतोष।
कैडर में पड़ी फूट
हालात यह है कि एनएससीएन (आइएम) के कैडर बड़ी संख्या में निकी सुमी के संगठन में शामिल हो रहे हैं। निकी सुमी नगा शांति समझौते के लिए तैयार हैं, वहीं मुइवा अलग संविधान और झंडे की मांग पर अड़ा हुआ है। नगालैंड की घटनाओं पर नजर रखने वाले उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार मुइवा के अडि़यल रवैये और भ्रष्टाचार के कारण आम लोगों का नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नगालैंड (एनएससीएन-आइएम) से मोहभंग होने लगा है।
मुइवा पर भारी पड़ी यह कोशिश
पिछले हफ्ते ही दीमापुर के नुईलैंड के 11 पदाधिकारी एनएससीएन (आइएम) का साथ छोड़कर निकी सुमी के संगठन में शामिल हो गए। इससे पहले भी सैकड़ों कैडर दूसरे संगठनों में जा चुके हैं। इसी तरह थांगकुल बैपटिस्ट चर्चों और थांगकुल नगा बैपटिस्ट कनवेंशन के बीच मध्यस्थता करने की कोशिश मुइवा पर भारी पड़ गई है। वहीं 16 अप्रैल को हनफन में एनएससीएन (आइएम) के मुखपत्र माने जाने वाले थांगकुल नगा लांग के दफ्तर को जला दिया गया।
लोगों का फूटा गुस्सा
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कोरोना संकट के दौरान गरीबों को केंद्र की ओर से दी जाने वाली मुफ्त अनाज में हिस्सेदारी मांगने से एनएससीएन (आइएम) के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। एनएससीएन (आइएम) के उग्रवादी लोगों को मिलने वाले गेहूं में पांच फीसद और चावल में 10 फीसद हिस्सेदारी मांग रहे हैं। कई स्थानों पर आम लोगों ने मुइवा के लोगों को मारकर भगा भी दिया।
गरीबों से वसूली से भड़के लोग
एनएससीएन (आइएम ) वरिष्ठ अधिकारियों के पास लक्जरी गाडि़यां और बड़े-बड़े बंगले होने के बावजूद गरीबों के अनाज से लेवी वसूलने की बात लोगों को पच नहीं रही है। ध्यान देने की बात है कि एनएससीएन (आइएम) ने केंद्र सरकार के साथ 2015 में समझौते के मसौदे पर हस्ताक्षर किया था लेकिन चार साल तक बातचीत के बाद फाइनल समझौते के समय वह अलग झंडे और संविधान को लेकर अड़ गया।
शांति के पक्ष में अन्य संगठन
इसके पीछे मुइवा की मंशा को नगालैंड में लोगों ने पहचानना शुरू कर दिया है। पिछले 24 साल से केंद्र के साथ सीजफायर समझौते के कारण उसका कैडर हथियारों के साथ न सिर्फ सुरक्षित है, बल्कि खुलेआम लेवी वसूली में लगा हुआ है। वहीं नगालैंड के अन्य संगठन किसी भी स्थिति में शांति के पक्ष में हैं।