निर्भया के दोषियों को फांसी देने में लग सकता है वक्त, जानिए, क्या है इसकी वजह

गुनहगारों को फांसी पर लटकाने के लिए तिहाड़ जेल में तैयारी कई दिनों से चल रही है। फांसी पर लटकाने के लिए बक्सर जेल से रस्सी मंगवा ली गई है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 13 Dec 2019 10:53 PM (IST) Updated:Sat, 14 Dec 2019 07:27 AM (IST)
निर्भया के दोषियों को फांसी देने में लग सकता है वक्त, जानिए, क्या है इसकी वजह
निर्भया के दोषियों को फांसी देने में लग सकता है वक्त, जानिए, क्या है इसकी वजह

राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली। निर्भया के गुनहगारों को फांसी पर लटकाने में अभी वक्त लग सकता है क्योंकि कई कानूनी प्रक्रिया बाकी है। इस मामले में सरकार, जेल प्रशासन व अदालतों के स्तर पर गुनहगारों को फांसी पर लटकाने के लिए देरी नहीं की जा रही है, बल्कि चारों गुनहगार ही जानबूझ कर कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल करने में देरी कर रहे हैं।

चारों गुनहगार कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल अलग-अलग कर रहे हैं

दरअसल, गुनहगार चार हैं और इन सभी के पास पुनर्विचार व दया याचिका दायर करने के अलावा उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) दायर करने जैसे अधिकार हैं। चारों विनय शर्मा, पवन, अक्षय व मुकेश एक साथ किसी भी कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल न कर अलग-अलग कर रहे हैं। इसलिए देरी हो रही है। चारों जब उक्त तीनों प्रक्रिया का इस्तेमाल कर लेंगे तो उसके बाद डेथ वारंट की प्रक्रिया बचेगी।

डेथ वारंट के बाद भी 14 दिन का वक्त

जेल प्रशासन द्वारा डेथ वारंट जारी करने पर भी 14 दिनों का वक्त मिलता है। इन 14 दिनों के अंदर चारों के परिजन जितनी जल्दी मुलाकात कर लेंगे, उसके अगले दिन ही चारों को फांसी पर लटका दिया जाएगा। हालांकि यह परिजनों पर निर्भर करता है कि वे गुनहगारों से मिलना पसंद करेंगे भी अथवा नहीं।

अभी सिर्फ एक ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की पुनर्विचार याचिका

चारों गुनहगारों में अभी केवल अक्षय कुमार ने सुप्रीम कोर्ट की उच्च पीठ में पुनर्विचार याचिका दायर की है। वहीं, उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) भी चारों में किसी ने भी अब तक सुपीम कोर्ट में नहीं डाली है। उपचारात्मक याचिका ऐसी याचिका है, जो कभी भी डाली जा सकती है।

परिजनों को सूचना देना अनिवार्य

2001 में भारतीय लोकतंत्र यानी संसद पर हमला करने वाले जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी अफजल गुरु के मामले में गोपनीय तरीके से डेथ वारंट जारी कर परिजनों को बिना बताए 2013 में फांसी दे दी गई थी। 26 नवंबर 2008 में मुंबई के ताज महल पैलेस पर हमला करने वाले जैश आतंकी अफजल कसाब के मामले में भी गोपनीय तरीके से डेथ वारंट जारी कर बिना परिजनों को सूचित किए 21 नवंबर 2012 को पुणे के यरवडा जेल में फांसी दे दी गई थी। उक्त दोनों मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। उसके बाद निर्देश दिए गए कि डेथ वारंट जारी करते ही परिजनों को हर हाल में सूचित किया जाना अनिवार्य है।

अफजल को जेल के स्टाफ ने ही दी थी फांसी

तिहाड़ जेल प्रशासन का कहना है कि गुनहगारों को फांसी पर लटकाने के लिए जेल में तैयारी कई दिनों से की जा रही है। जेल में पिछले कुछ दशक से जल्लाद की नियुक्ति नहीं हुई है। अफजल गुरु को जेल के स्टाफ ने ही फांसी पर लटका दिया था। पिछले दस साल में अफजल गुरु को ही यहां फांसी दी गई है। अभी जल्लादों की नियुक्ति भी संभव नहीं है।

बक्सर जेल से आई फांसी पर लटकाने के लिए रस्सी

जेल प्रशासन का कहना है कि कोई जरूरी नहीं कि जल्लाद ही चारों को फांसी पर लटकाए। स्टाफ भी फांसी दे सकता है। चारों को जेल मैन्युअल के हिसाब से एक साथ ही फांसी दी जाएगी। वैसे कई राज्यों की जेलों में मौजूद जल्लादों से भी बातचीत चल रही है। अगर आसानी से जल्लाद मिल जाएंगे तब उन्हीं के जरिये फांसी पर लटकाया जाएगा। फांसी पर लटकाने के लिए बक्सर जेल से रस्सी मंगवा ली गई है।

अक्षय की पुनर्विचार याचिका का विरोध करेगा पीडि़त परिवार

दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड की पीडि़ता निर्भया (बदला हुआ नाम) की मां दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका का सुप्रीम कोर्ट में विरोध करेंगी। अक्षय ने फांसी की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है जिस पर कोर्ट 17 दिसंबर को सुनवाई करेगा। शुक्रवार को पीडि़ता की मां की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अक्षय की पुनर्विचार याचिका में उनका पक्ष भी सुने जाने का अनुरोध किया गया। शुक्रवार को निर्भया की मां के वकील ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष पेश होकर कहा कि वह दोषी अक्षय की पुनर्विचार याचिका का विरोध कर रहे हैं।

17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में होगी अक्षय की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई

पीठ ने उनसे कहा कि 17 दिसंबर को अक्षय की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के समय कोर्ट उनका पक्ष भी सुनेगा। दोषी अक्षय कुमार सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर फांसी की सजा को चुनौती दी है। याचिका में अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट से उसे फांसी की सजा देने के 5 मई 2017 के आदेश पर पुनर्विचार कर उसे रद करने की मांग की है।

याचिका में मृत्युदंड समाप्त किये जाने की मांग

दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को चलती बस में पैरामेडिकल की छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। इस दौरान छात्रा को गंभीर चोटें पहुंचाई गईं थी जिसके बाद इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी। इस मामले में निचली अदालत, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक से चार दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। तीन अभियुक्तों मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता की पुनर्विचार याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट गत वर्ष 9 जुलाई को खारिज कर चुका है, लेकिन अक्षय ने अभी तक पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की थी। अक्षय सिंह ने पुनर्विचार याचिका में फांसी की सजा का विरोध करते हुए कहा है कि फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए बल्कि दोषी में क्रमवार सुधार किये जाने चाहिए क्योंकि फांसी देकर सिर्फ अपराधी को मारा जा सकता है अपराध को नहीं। याचिका में मृत्युदंड समाप्त किये जाने की भी बात कही गई है।

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