MP Politics: मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर आरक्षण को लेकर मचा घमासान

MP Politics कांग्रेस भी यह जताने में कसर नहीं छोड़ रही कि पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देने का जो निर्णय शिवराज सरकार ने अब लिया है उसका आधार कमल नाथ सरकार का निर्णय ही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 10:32 AM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 04:46 PM (IST)
MP Politics: मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर आरक्षण को लेकर मचा घमासान
पिछड़ा वर्ग की आबादी का सही आंकड़ा नहीं होने पर जबलपुर उच्च न्यायालय ने जताई आपत्ति। फाइल

संजय मिश्र। MP Politics मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर आरक्षण को लेकर घमासान मचा हुआ है। कोई भी दल इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता। जबलपुर उच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने आरक्षण को बचाने के लिए नई तरकीब क्या निकाली, कांग्रेस भी परेशान हो उठी। उसने इसका श्रेय भी खुद को देना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस के नेता दमखम के साथ मैदान में उतर गए हैं। इससे साफ है कि राज्य की राजनीति में एक बार फिर पिछड़ों का आरक्षण बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।

प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की आबादी 50 फीसद से अधिक है। जाहिर है कि यह वर्ग जिस ओर झुकेगा सत्ता के समीकरण भी उस ओर ही रहेंगे। यही वजह है कि 15 साल बाद 2018 में सत्ता में आई कांग्रेस ने सिलसिलेवार तरीके से पिछड़े व आदिवासी वर्गो को साधने की कवायद शुरू की थी। पहले आदिवासी वर्ग को साधने के लिए अगस्त 2019 तक अधिसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्तियों द्वारा साहूकारों से लिए गए ऋण को शून्य करने के लिए साहूकारी अधिनियम में प्रविधान किया। लोकसभा चुनाव के पहले उसने पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सीमा को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का दांव चल दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ ने अध्यादेश के माध्यम से प्रविधान को लागू कर दिया।

कुछ दिनों बाद विधानसभा में विधेयक भी पारित करा लिया। इस बीच पिछड़ा वर्ग को 27 फीसद आरक्षण देने के खिलाफ जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी गई। उच्च न्यायालय ने 14 फीसद से अधिक आरक्षण को नियम विरुद्ध मानते हुए इसके क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। तब से ही यह मामला उलझा हुआ है। इसको लेकर भाजपा और कांग्रेस में जुबानी जंग चल रही है। हाल ही में हुए विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस ने इसे फिर हवा दी और शिवराज सरकार को घेरने की कोशिश की। सियासी नफा-नुकसान को भांपने में माहिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न सिर्फ सदन में तगड़ा पलटवार किया, बल्कि कमल नाथ और कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं, महाधिवक्ता के अभिमत के आधार पर उन्होंने उच्च न्यायालय में लंबित प्रकरणों को छोड़कर शेष विभागों में पिछड़ा वर्ग को 27 फीसद आरक्षण देने का नया आदेश जारी करके बढ़त भी बना ली।

मध्य प्रदेश की राजनीति में पिछड़ा वर्ग का समीकरण बेहद महत्वपूर्ण है। भाजपा ने उमा भारती, बाबूलाल गौर और उनके बाद शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाकर इस वर्ग को संदेश दिया कि वही उनकी सबसे बड़ी हितैषी है। पिछड़ों को साधने में भाजपा की इस मजबूती को देखते हुए ही कांग्रेस ने इस वर्ग को लक्ष्य कर 27 फीसद आरक्षण का दांव खेला था। कांग्रेस जानती है कि यदि पिछड़ा वर्ग को साध लिया तो सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने का रास्ता आसान हो जाएगा। हालांकि आरक्षण का विधेयक तैयार करते समय उससे बड़ी चूक हुई है, जो अब उसे भारी पड़ रही है। इसी को आधार बनाकर भाजपा हमलावार है। कांग्रेस सरकार में सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से विधानसभा में आरक्षण का जो विधेयक प्रस्तुत किया गया था उसमें बताया गया था कि राज्य में पिछड़ा वर्ग की आबादी 27 प्रतिशत है, जबकि वास्तव में यह 50 प्रतिशत से अधिक है। इसी को आधार बनाकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी गई। न्यायालय को भी इसमें खामियां मिलीं जिसके आधार पर उसने क्रियान्वयन पर रोक लगा दी।

नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने तो इसी मुद्दे पर कांग्रेस को घेरा और आरोप लगाया कि उसने जानबूझकर विधेयक के उद्देश्य एवं कथन में पिछड़ा वर्ग की आबादी कम बताई थी, जिसके कारण उच्च न्यायालय ने 27 प्रतिशत आरक्षण के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। प्रकरण की सुनवाई के दौरान तत्कालीन सरकार के महाधिवक्ता भी हाईकोर्ट में प्रस्तुत नहीं हुए। अब शिवराज सरकार पूरी दमदारी के साथ न सिर्फ पक्ष रख रही है, बल्कि देश के नामचीन अधिवक्ताओं को भी पैरवी के लिए खड़ा कर रही है। कांग्रेस भी यह जताने में कसर नहीं छोड़ रही कि पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण देने का जो निर्णय शिवराज सरकार ने अब लिया है उसका आधार कमल नाथ सरकार का निर्णय ही है।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]

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