MP Politcs: उपचुनाव को लेकर भाजपा के सामने असंतुष्टों की नई चुनौती

भाजपा के वरिष्ठों को ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को अधिक महत्व मिलने से पीड़ा है। इससे भाजपा में तेजी से दो ध्रुव उभरने लगे हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Sun, 05 Jul 2020 09:40 PM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 09:40 PM (IST)
MP Politcs: उपचुनाव को लेकर भाजपा के सामने असंतुष्टों की नई चुनौती
MP Politcs: उपचुनाव को लेकर भाजपा के सामने असंतुष्टों की नई चुनौती

आनन्द राय, भोपाल। मध्य प्रदेश में विधानसभा की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर भाजपा के सामने नई चुनौती खड़ी हो गई है। यह चुनौती मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सामने आई है। दरअसल, भाजपा के वरिष्ठ विधायकों को मंत्री पद न मिल पाने से असंतोष गहरा गया है। चूंकि 22 सीटों पर भाजपा ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर आने वालों को ही उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है, इसलिए 2018 में पार्टी से चुनाव लड़ चुके नेताओं की नाराजगी तो पहले से ही थी। अब मंत्री न बन पाने से असंतुष्टों का अलग समीकरण बनने लगा है। 

मंत्रिमंडल विस्तार के बाद राज्य में बनने लगे अलग समीकरण 

रायसेन जिले में पहले भाजपा में पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार और इसी जिले की सिलवानी के विधायक रामपाल सिंह के बीच प्रतिस्पर्धा रहती थी। कांग्रेस की कमल नाथ सरकार से इस्तीफा देकर प्रभुराम चौधरी भाजपा में शामिल हुए तो 2018 में उनसे चुनाव हार चुके गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित शेजवार की भृकुटी तन गई। शेजवार और रामपाल के रिश्तों को देखते हुए भाजपा ने सांची सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए रामपाल को चुनाव प्रभारी बनाया है पर वरिष्ठ होने के बावजूद पूर्व मंत्री रामपाल सिंह को जब इस बार शपथ नहीं दिलाई गई तो उनके पक्ष में शेजवार भी हमदर्दी जताने कूद पड़े। मतलब प्रभुराम चौधरी के सामने अब दो नाराज धुरंधरों की आपसी मोर्चाबंदी मजबूत हो गई।

नए प्रतिद्वंद्वी को लेकर दो विपरीत ध्रुव भी करने लगे मोर्चाबंदी 

यह तो एक बानगी है। मंत्री न बन पाने से सिर्फ रायसेन जिले में ही भाजपा को चुनौती नहीं मिल रही, बल्कि महाकोशल, बालाघाट, मंदसौर और इंदौर से भी असंतोष की चिंगारी उठने लगी है। राज्य के कई क्षेत्रों में उपचुनाव न होने के बावजूद असंतोष गहरा रहा है और उसका असर दूसरे क्षेत्रों पर भी पड़ना तय माना जा रहा है। बालाघाट के विधायक और प्रमुख ओबीसी नेता गौरीशंकर बिसेन को भी मंत्री पद न मिलने की नाराजगी उनके समाज में है।

बिसेन भले पार्टी के लिए अनुशासित हैं, लेकिन उनकी बिरादरी के वोटों को सहेजने की चुनौती आ गई है। जबलपुर के पाटन क्षेत्र के वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई ने तो मंत्री न बन पाने पर मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा जाहिर कर दी है। कुछ बड़ा कर गुजरने की उनकी चेतावनी भी चुनाव प्रबंधन से जुड़े लोगों को डरा रही है। मंदसौर में यशपाल सिंह सिसौदिया हों या इंदौर के रमेश मेंदोला, दोनों के समर्थकों ने मंत्री पद न मिलने पर आक्रोश जाहिर किया है। ऐसी लंबी फेहरिस्त है। 

सिंधिया समर्थकों को ज्यादा महत्व मिलने से उभरे दो ध्रुव

भाजपा के वरिष्ठों को ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों को अधिक महत्व मिलने से पीड़ा है। इससे भाजपा में तेजी से दो धु्रव उभरने लगे हैं। पार्टी अपने नेताओं को यह समझाने में जुटी है कि अगर सिंधिया के 22 विधायक इस्तीफा देकर नहीं आते तो सरकार बन नहीं पाती। पर यह बात भाजपा नेताओं को समझ नहीं आ रही है। पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल तो दो टूक तर्क देते हैं कि विंध्य न होता तो सिंधिया भी सरकार न बना पाते।

मतलब विंध्य क्षेत्र में भाजपा को सर्वाधिक सीटें मिली थीं, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार में इस इलाके की अनदेखी कर दी गई। बदनावर में भाजपा से 2018 में चुनाव हार चुके भंवर सिंह शेखावत हों या हाटपीपल्या में पूर्व मंत्री दीपक जोशी, इनकी भी नाराजगी दूर नहीं हो सकी है। खास बात यह भी है कि सिंधिया समर्थक संभावित उम्मीदवार पुराने भाजपाइयों के रख को देखते हुए अपने स्तर से टीम खड़ी कर रहे हैं। यह भी उन्हें रास नहीं आ रहा है। 

न कोई चुनौती, न कहीं दिक्कत 

मध्‍य प्रदेश भाजपा के मुख्‍य प्रवक्‍ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि भाजपा सभी 24 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। इसमें पार्टी में आने वाले नए कार्यकर्ता हों या पुराने कार्यकर्ता, लेकिन यह सर्वविदित है कि भाजपा में उम्मीदवार गौण रहता है। भाजपा कार्यकर्ता सिर्फ और सिर्फ पार्टी और कमल निशान को प्राथमिकता देते हैं। इसलिए न कहीं कोई दिक्कत है और न ही कोई चुनौती। 

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