श्रम सुधार बिल में कई अहम प्रावधान, महिला उत्थान की दिशा में बड़ा कदम

वर्ष 2016 में महिलाओं और पुरुषों के वेतन में 24.8 फीसद का अंतर था जबकि 2018 में यह अंतर 20 फीसद का था। दो साल में इस अंतर में 4.8 फीसद की कमी आई है। ऐसे में सरकार ने महिलाओं के उत्थान में यह बड़ा कदम सराहनीय है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 24 Sep 2020 02:19 PM (IST) Updated:Thu, 24 Sep 2020 02:19 PM (IST)
श्रम सुधार बिल में कई अहम प्रावधान, महिला उत्थान की दिशा में बड़ा कदम
महिला उत्थान की दिशा में बड़ा कदम। फाइल फोटो

सुनीता मिश्र। समान योग्यता के बावजूद लंबे समय से कार्यस्थलों पर भेदभाव का दंश झेल रहीं महिला कर्मचारियों का संघर्ष आखिरकार रंग लाया। लोकसभा में पास श्रम सुधार बिल में कई प्रावधान किए गए हैं। इसके तहत अब पूरे देश में एक समान न्यूनतम मजदूरी लागू की जाएगी, जिससे कंपनियों को महिला कामगारों को पुरुष कामगारों के समान वेतन देना होगा। इसके अलावा महिला कर्मचारियों को नाइट शिफ्ट में काम करने की भी इजाजत दी गई है, लेकिन इसके लिए कंपनियों को महिलाओं को पूरी तरह से सुरक्षा व्यवस्था मुहैया करानी होगी।

महिलाओं को जगह-जगह भेदभाव सहना पड़ता है। महिलाएं पुरुषों जैसा काम करती हैं, जबकि उनके जैसा वेतन नहीं पाती हैं। पुरुषों को महिलाओं की तुलना में 20 फीसद वेतन ज्यादा मिलता है। यह कहानी सिर्फ भारत की नहीं है। अमेरिकी संस्था कॉर्न फेरी जेंडर पे इंडेक्स के मुताबिक महिलाओं और पुरुषों के वेतन में समानता दुनिया के किसी भी देश में नहीं है। जहां चीन में यह अंतर सात फीसद का है, वहीं अमेरिका में 3.76 फीसद का। जापान, दक्षिण कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात, स्वीडन और पुर्तगाल जैसे देशों में यह अंतर अमेरिका से कम है, जबकि रूस, जमैका, ब्राजील जैसे तमाम देशों में भारत से ज्यादा। इस अंतर के लिए दुनिया के तमाम देशों में उनकी परिस्थितियों के हिसाब से अलग-अलग कारण जिम्मेदार होंगे, लेकिन हमारे देश में महिलाओं और पुरुषों के वेतन में जो फर्क है, उसकी जड़ें सामाजिक मान्यताओं में ही निहित हैं।

अपने देश में निजी नौकरियों में विभिन्न पदों के लिए वेतनमान तय नहीं हैं, जैसा कि सरकारी नौकरियों में होता है। इसके विपरीत निजी नौकरियों में वेतन मोलभाव के जरिये तय होता है। इसीलिए एक ही कंपनी में एक ही जैसा काम करने वाले पुरुष और महिला का वेतन अलग-अलग होता है। इस परिपाटी का सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है। दरअसल आज भी हमारे देश में बेरोजगारी के कारण स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली है। यानी जगह एक आवेदक अनेक। हालांकि इससे सभी का नुकसान होता है, लेकिन महिलाओं को सबसे ज्यादा घाटा सहना पड़ता है, क्योंकि वे प्राय: मोलभाव नहीं कर पाती हैं।

इन तमाम कारणों से महिलाओं और पुरुषों के वेतन में अंतर होता है। वर्ष 2016 में महिलाओं और पुरुषों के वेतन में 24.8 फीसद का अंतर था, जबकि 2018 में यह अंतर 20 फीसद का था। दो साल में इस अंतर में 4.8 फीसद की कमी आई है। ऐसे में इस भेदभाव को मिटाने के लिए सरकार ने महिलाओं के उत्थान में यह बड़ा कदम उठाकर बेहद सराहनीय कार्य किया है। इस बिल के कानून बनते ही महिलाएं कंपनियों में अपने अधिकार के लिए लड़ सकेंगी और अदालत का दरवाजा खटखटा सकेंगी।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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