तृणमूल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने पर काम कर रहीं ममता, जानिए किन-किन राज्यों में बढ़ाई सक्रियता, पीके की कंपनी कर रही सर्वे

खास बात यह है कि अपने पिछले दिल्ली दौरे के दौरान विपक्षी एकजुटता की वकालत करने वाली ममता बनर्जी टीएमसी को राष्ट्रीय दल बनाने की कोशिश में सबसे ज्यादा सियासी नुकसान कांग्रेस को पहुंचाती नजर आ रही हैं।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 09:09 PM (IST) Updated:Sat, 23 Oct 2021 09:34 PM (IST)
तृणमूल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने पर काम कर रहीं ममता, जानिए किन-किन राज्यों में बढ़ाई सक्रियता, पीके की कंपनी कर रही सर्वे
न्यूनतम वोट हासिल कर 2024 तक लक्ष्य हासिल करने पर गंभीर हैं ममता बनर्जी

संजय मिश्र, नई दिल्ली। बंगाल की सत्ता में लगातार तीसरी बार वापसी के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने के एजेंडे पर गंभीरता से काम कर रही हैं। इसके तहत टीएमसी बंगाल के बाहर केवल छोटे राज्यों में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराने में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कंपनी आइपैक तृणमूल की इस राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जमीन पर उतारने की कसरत में जुटी है।

गोवा, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर जैसे छोटे राज्यों को तृणमूल ने अपने इस लक्ष्य की सियासी प्रयोगशाला के तौर पर चुना है जहां आइपैक की टीमें इन सूबों के सियासी मिजाज को भांप रही हैं।

तृणमूल के सियासी पंख फैलाने की इस कसरत में आइपैक के जमीनी सर्वे के दौरान इन राज्यों में दूसरे दलों के नेताओं-विधायकों की नब्ज टटोलने की कोशिश हो रही है। पिछले दो-तीन महीनों में तृणमूल कांग्रेस ने दूसरे दलों खासकर कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं को तोड़कर अपने इस इरादे का संकेत दे दिया था।

सूत्रों के अनुसार इसकी अगली कड़ी में सर्वे के दौरान ऐसे राज्य स्तरीय नेताओं और विधायकों की संभावित सूची तैयार की जा रही है जिन्हें चुनाव से पहले टीएमसी से जोड़ा जा सके । मेघालय में कांग्रेस ने पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के साथ करीब दर्जन भर विधायकों के बगावत कर टीएमसी में शामिल होने के प्रयासों को थाम लिया था। मगर बताया जाता है कि टीएमसी ने अब भी संगमा को साधने का अपना प्रयास छोड़ा नहीं है।

खास बात यह है कि अपने पिछले दिल्ली दौरे के दौरान विपक्षी एकजुटता की वकालत करने वाली ममता बनर्जी टीएमसी को राष्ट्रीय दल बनाने की कोशिश में सबसे ज्यादा सियासी नुकसान कांग्रेस को पहुंचाती नजर आ रही हैं। असम में टीएमसी ने कांग्रेस को झटका देते हुए तेज-तर्रार नेता सुष्मिता देव को न केवल तोड़ा बल्कि उन्हें बंगाल से तत्काल राज्यसभा भेज कर पूर्वोत्तर में अपना प्रभाव बढ़ाने का बड़ा दांव चल दिया।

2023 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में उलटफेर की कोशिश में जुटी टीएमसी

सुष्मिता को पार्टी ने त्रिपुरा का प्रभारी भी बना दिया। टीएमसी अब 2023 के चुनाव में यहां उलटफेर की कोशिश में जुटी है। इसी तरह गोवा में कांग्रेस के पूर्व सीएम लुइजिनो फेलेरियो को तोड़कर टीएमसी ने एक दिन पहले ही उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। गोवा में फरवरी-मार्च में चुनाव होने हैं। टीएमसी यहां भी राज्यस्तरीय दल के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पर फोकस कर रही है। ममता बनर्जी की अगले हफ्ते प्रस्तावित दो दिवसीय गोवा यात्रा टीएमसी की इस गंभीर कोशिश का साफ संकेत है।

टीएमसी छोटे राज्यों में सम्मानजनक उपस्थिति दर्ज कराने की कर रही कोशिश

दरअसल कांग्रेस की संगठनात्मक चुनौतियों और नेतृत्व को लेकर अस्पष्टता के चलते 2024 के चुनाव में विपक्षी नेतृत्व के चेहरे की दावेदारी अभी खुली हुई है। बंगाल में तीसरी जीत के बाद विपक्षी खेमे के गैर कांग्रेस दलों ने दीदी के जुझारू नेतृत्व की शान में जिस तरह कसीदे पढ़े हैं उससे उत्साहित टीएमसी को लगता है कि मौका आया तो ममता भी विपक्षी नेतृत्व की होड़ में शामिल हो सकती हैं। इस बीच टीएमसी को राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल हो जाता है तो फिर यह दीदी के कद में और इजाफा करेगा। इसीलिए तृणमूल कांग्रेस इन छोटे राज्यों में अपनी सम्मानजनक उपस्थिति दर्ज कराने की गंभीर कोशिश कर रही है। टीएमसी के लिए यह लक्ष्य हासिल करना असंभव भी नहीं है। बंगाल से उसके लोकसभा में 22 सांसद हैं। ऐसे में तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में छह फीसद वोट भी मिल जाते हैं तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाएगा। यही वजह है कि टीएमसी अपने इस अभियान में कांग्रेस में सियासी सेंधमारी करने से हिचक नहीं रही है। किसी दल को चार राज्यों में छह फीसद से अधिक वोट मिलता है तो वह राष्ट्रीय दल की हैसियत पाने का हकदार हो जाता है।

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