Maharashtra Politics: बैठकों में रह गई NCP-कांग्रेस-शिवसेना, न मतभेद मिटे न बनी सरकार

Maharashtra Politics करीब दो सप्ताह से तीनों दल अपना एजेंडा सेट करने में लगे रहे। तालमेल बैठाने में इतना लंबा समय लगा कि भाजपा को एनसीपी में सेंध लगाने का मौका मिल गया।

By Amit SinghEdited By: Publish:Sat, 23 Nov 2019 07:10 PM (IST) Updated:Sat, 23 Nov 2019 08:24 PM (IST)
Maharashtra Politics: बैठकों में रह गई NCP-कांग्रेस-शिवसेना, न मतभेद मिटे न बनी सरकार
Maharashtra Politics: बैठकों में रह गई NCP-कांग्रेस-शिवसेना, न मतभेद मिटे न बनी सरकार

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। महाराष्ट्र में एक महीने से चले आ रहे राजनीतिक संकट के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार शिवसेना को माना जा रहा है। दरअसल, शिवसेना और भाजपा गठबंधन को राज्य में पूर्ण बहुमत मिला था। बावजूद शिवसेना ने सीएम पद की जिद में आकर करीब 35 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। इसके बाद उसने एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाने का प्रयास शुरू किया। ये गठबंधन इतना बेमेल था कि कई दिनों तक चली तमाम बैठकों के बावजूद तीनों दल सरकार बनाने पर एक राय नहीं बना सके। सरकार बनाना तो दूर, तीनों दल आपसी मतभेद भी दूर नहीं कर सके। शनिवार को अजीत पवार के समर्थन से भाजपा द्वारा सरकार बनाने के बाद भी तीनों दलों के मतभेद कई बार खुलकर सामने आए।

शनिवार को भी दिखे मतभेद

ये मतभेद बताते हैं कि अगर एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना राज्य में गठबंधन की सरकार बना लेती, तो भी उनका कार्यकाल पूरा कर पाना बहुत मुश्किल होता। दरअसल, इस गठबंधन की शुरुआत ही आपसी मनमुटाव और मतभेदों के साथ हुई थी, जो शनिवार को भी देखने को मिली। गठबंधन बनाने से पहले ही एनसीपी और कांग्रेस ने शिवसेना के सामने हिंदुत्व के एजेंडे को किनारे रखने की शर्त रख दी थी। इसके बाद शिवसेना चाहती थी कि गठबंधन का नाम महाशिव अघाड़ी रखा जाए। इस नाम पर एनसीपी और कांग्रेस को आपत्ति थी क्योंकि ये नाम कहीं न कहीं हिन्दुत्ववादी छवि बना रहा था। लिहाजा दोनों पार्टियों के दबाव में शिवसेना को महाविकास अघाड़ी नाम पर तैयार होना पड़ा।

शुरू से दबाव में थी शिवसेना

शिवसेना की जिद थी कि मुख्यमंत्री उन्हीं का होगा। यहां भी एनसीपी ने पेंच फंसा दिया। उद्धव चाहते थे कि मुख्यमंत्री पद उनके बेटे आदित्य ठाकरे या गठबंधन के किसी अन्य वरिष्ठ नेता को मिले। इसके विपरीत एनसीपी इस शर्त पर अड़ गई कि शिवसेना के मुख्यमंत्री के तौर पर उसे केवल उद्धव ठाकरे ही मंजूर हैं। वहीं उद्धव ठाकरे चाहते थे कि वह बाला साहेब ठाकरे की तरह सक्रिय राजनीति से बाहर रहते हुए सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखें। वह किंग नहीं, किंगमेकर दिखना चाहते थे। एनसीपी के दबाव में उद्धव को यहां भी समझौता करना पड़ा। यही वजह है कि शुक्रवार शाम सीएम पद के लिए उद्धव के नाम की घोषणा होने के बावजूद वह खुद इस संबंध में मीडिया से बात करने से बचते रहे।

वैचारिक मतभेद में हुई देरी

राजनीतिक विश्लेषक केएन जोशी के अनुसार दरअसल, शिवसेना का एनसीपी और कांग्रेस से वैचारिक मतभेद इतना ज्यादा है कि उन्हें सरकार बनाने से पहले सभी मुद्दों पर एक राय बनाना जरूरी थी। इसमें तीनों दलों ने इतना ज्यादा वक्त गंवा दिया कि भाजपा को एनसीपी के खेमे में सेंध लगाने का मौका मिल गया। हो सकता है भाजपा अभी कुछ और वक्त लेती, लेकिन जैसे ही उसे शुक्रवार शाम की बैठक में उद्धव के नाम पर सहमति बनने का पता लगा, उसने एक परिपक्व राजनीतिक पार्टी की तरह बिना वक्त गंवाए अपना दांव चल दिया।

BJP ने 15 मिनट में पेश किया दावा

भाजपा को पता था कि उसके पास समय कम है, लिहाजा उसने वैचारिक मतभेद दूर करने और सरकार गठन की रूपरेखा निर्धारित करने में वक्त गंवाने की जगह तुरंत दावा पेश कर दिया। शाम करीब पौने आठ बजे शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की संयुक्त बैठक समाप्त हुई थी, जिसमें उद्धव को सीएम बनाने पर सहमति बनी थी। इसके 15 मिनट बाद ही भाजपा ने बेहत गुपचुप तरीके से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। दावा पेश करने के बाद रातों-रात शपथ ग्रहण की तैयारी की गई और सुबह साढ़े छह बजे राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाकर, सुबह आठ बजे मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद का शपथ ग्रहण भी हो गया। मुख्यमंत्री के तौर पर भाजपा के देवेंद्र फडणवीस ने और उपमुख्यमंत्री के तौर पर एनसीपी के अजीत पवार ने शपथ ली। साफ है कि एक तरफ एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना सरकार बनाने के लिए मीटिंग ही करती रह गई और भाजपा ने बाजी मार ली।

कांग्रेस ने अपनाया अलग रास्ता

इसके बाद भी तीनों दलों के बीच आपसी मतभेद खत्म नहीं हुए बल्कि शनिवार को तीनों दलों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए। सबसे पहले कांग्रेस ने दोपहर 12:30 बजे की संयुक्त प्रेस कॉफ्रेंस से किनारा कर लिया। इसके बाद कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने अलग से प्रेस कॉफ्रेंस की। इस प्रेस कॉफ्रेंस से ठीक पहले कांग्रेस नेता संजय निरुपम, शरद पवार पर हमला बोल चुके थे। उन्होंने कहा कि पावर ही नहीं, पवार भी पॉइजन (जहर) है। इतना ही नहीं, संजय निरुपम ने महाराष्ट्र में पार्टी के नेताओं को भी जमकर कोसा। उधर, शपथ लेने के बाद अजीत पवार के एक बयान ने शरद पवार की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर दिए थे। अजीत पवार ने शपथ लेने के बाद मीडिया के सामने दावा किया कि उन्होंने इस बारे में पहले ही पार्टी चीफ शरद पवार को बता दिया था। उनके इस बयान ने शरद पवार की भूमिका को भी संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया। उधर, मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सरकार बनाने में हुई देरी के लिए शरद पवार को ही जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है।

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