कांग्रेस की 'दुविधा' ने बिगाड़ा शिवसेना की सत्ता का खेल, समर्थन से हिचक रही कांग्रेस
राष्ट्रपति शासन लगने के बाद कांग्रेस ने एनसीपी को भरोसे में लेकर शिवसेना पर सियासी दबाव बनाने का दांव चलना भी शुरू कर दिया है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। कांग्रेस की सियासी दुविधा ने महाराष्ट्र में शिवसेना का सत्ता का खेल फिलहाल खराब कर दिया है। राष्ट्रपति शासन लागू करने के विरोध करने के बाद भी शिवसेना को समर्थन देने का एलान करने से कांग्रेस हिचक रही है। वैसे सूबे में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद कांग्रेस ने एनसीपी को भरोसे में लेकर शिवसेना पर सियासी दबाव बनाने का दांव चलना भी शुरू कर दिया है।
एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ कांग्रेस हाईकमान के हाईप्रोफाइल रणनीतिकारों की टीम की चर्चा के बाद भी शिवसेना से दोस्ती पर बनी चुप्पी साफ तौर पर कांग्रेस की दुविधा और रणनीति दोनों का संकेत है। पार्टी को इस पर दुविधा नहीं कि महाराष्ट्र के मौजूदा हालत में शिवसेना के साथ राजनीतिक रिश्ते जोड़ना उसकी भी जरूरत बन गई है। इस हकीकत के बावजूद कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य में अपने बचाव के लिए एनसीपी की कवच लेना चाहती है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं जिसमें प्रमुख तौर पर केरल के पार्टी नेता शामिल हैं शिवसेना से दोस्ती के पक्ष में नहीं है। इन नेताओं का तर्क है कि शिवसेना की कट्टर छवि से दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। बताया जाता है कि इसी वजह से महाराष्ट्र के नेताओं की गठबंधन को लेकर देरी नहीं करने की सलाह पर हाईकमान ने जल्दी नहीं दिखाई। कांग्रेस की इस देरी की वजह से ही शिवसेना को समर्थन की चिठ्ठी जारी नहीं हो पायी। जबकि एनसीपी समर्थन पत्र देने के लिए तैयार थी। एनसीपी विधायक दल के नेता अजीत पवार ने सोमवार और मंगलवार दोनों ही दिन इस ओर स्पष्ट इशारा किया कि कांग्रेस के रुख का ही इंतजार है।
महाराष्ट्र में कांग्रेस की इस दुविधा के चलते लगे राष्ट्रपति शासन के बाद अब पार्टी मौजूदा हालत का शिवसेना से अपनी शर्तों पर डील करने की कोशिश करती दिख रही है। समझा जाता है कि इसी रणनीति के तहत कांग्रेस ने एनसीपी प्रमुख को शिवसेना से ढाई साल के मुख्यमंत्री फार्मूले पर डील करने को सहमत कर लिया है। कांग्रेस चाहती है कि एनसीपी पहले ढाई साल के लिए सरकार का नेतृत्व करे और शिवसेना बाकी के ढाई साल। एनसीपी का मुख्यमंत्री पहले बनता है तो फिर कांग्रेस को सरकार में शामिल होने में किसी तरह की असहजता नहीं होगी। वहीं इस डील में इस प्रस्ताव को भी आगे बढ़ाया जाएगा कि कांग्रेस को उपमुख्यमंत्री के साथ विधानसभा अध्यक्ष का पद भी मिले।