देश में 6000 से ज्यादा जजों की कमी, प्रति 10 लाख लोगों पर सिर्फ 19 जज

केंद्रीय कानून मंत्रालय ने बताया है कि देश में कुल 6,000 से ज्यादा जजों की कमी है, जिनमें 5,000 से अधिक पद निचली अदालतों के हैं।

By Nancy BajpaiEdited By: Publish:Tue, 25 Sep 2018 08:43 AM (IST) Updated:Tue, 25 Sep 2018 08:43 AM (IST)
देश में 6000 से ज्यादा जजों की कमी, प्रति 10 लाख लोगों पर सिर्फ 19 जज
देश में 6000 से ज्यादा जजों की कमी, प्रति 10 लाख लोगों पर सिर्फ 19 जज

नई दिल्ली (प्रेट्र)। देश में औसतन प्रति 10 लाख लोगों पर महज 19 जज हैं। केंद्रीय कानून मंत्रालय ने बताया है कि देश में कुल 6,000 से ज्यादा जजों की कमी है, जिनमें 5,000 से अधिक पद निचली अदालतों के हैं। संसद में चर्चा के लिए इस साल मार्च में तैयार किए गए दस्तावेजों के अनुसार, प्रति 10 लाख लोगों पर 19.49 जज हैं। अधीनस्थ अदालतों में 5,748 न्यायिक अधिकारियों की कमी है, जबकि 24 उच्च न्यायालयों में भी 406 जजों के पद खाली हैं।

जजों के कुल स्वीकृत 22,474 पदों में से निचली न्यायपालिका में 16,726 जज कार्यरत हैं। इसी प्रकार उच्च न्यायालयों में स्वीकृत 1,079 पदों की तुलना में 673 जज ही हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी जजों के स्वीकृत 31 पदों में से छह खाली हैं। इस प्रकार देश की न्यायपालिका में जजों के कुल 6,160 पद खाली हैं।

कब जजों की कमी का मामला सामने आया 

जजों की कमी का मामला अप्रैल, 2016 में उस समय सुर्खियों में आया था जब तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने जजों की नियुक्ति में सरकार की 'निष्क्रियता' की बात कही थी। उन्होंने मुकदमों के अंबार के निपटने के लिए जजों की संख्या 21,000 से बढ़ाकर 40,000 करने की बात कही थी। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि 1987 से कुछ नहीं बदला है, जब विधि आयोग ने जजों की संख्या प्रति 10 लाख आबादी पर 10 जजों से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी। लेकिन बाद में सरकार ने स्पष्ट किया था कि विधि आयोग ने यह भी टिप्पणी की थी कि मुकदमे दाखिल करने की संख्या आर्थिक और सामाजिक स्थितियों से जुड़ी है, जो विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग है।

हाल ही में केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने देश के सभी 24 हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र लिखकर निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया तेज करने का आग्रह किया था। 14 अगस्त के पत्र में प्रसाद ने जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में 2,76,74,499 मुकदमों के लंबित होने का जिक्र करते हुए कहा था कि इसका एक कारण जजों की कमी भी है।

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