जानिए क्‍या था नेहरू-लियाकत समझौता, जिसकी विफलता का परिणाम है नागरिकता कानून

लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को सही ठहराते हुए सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह ने नेहरू-लियाकत समझौते का उल्लेख किया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Tue, 10 Dec 2019 07:48 PM (IST) Updated:Thu, 12 Dec 2019 01:18 AM (IST)
जानिए क्‍या था नेहरू-लियाकत समझौता, जिसकी विफलता का परिणाम है नागरिकता कानून
जानिए क्‍या था नेहरू-लियाकत समझौता, जिसकी विफलता का परिणाम है नागरिकता कानून

नई दिल्‍ली, जागरण स्‍पेशल। लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को सही ठहराते हुए सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह ने नेहरू-लियाकत समझौते का उल्लेख किया। उन्होंने नेहरू-लियाकत समझौते को 'कैब' की वजह बताते हुए कहा, यदि पाकिस्तान द्वारा संधि का पालन किया गया होता, तो इस विधेयक को लाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। 1950 में दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे नेहरू-लियाकत समझौता नाम दिया गया। आइए जानते हैं क्या है यह समझौता और यह क्यों किया गया था:

इसलिए किया गया था समझौता

दोनों देशों के बीच अल्पसंख्यक समुदायों के बड़े पैमाने पर प्रवासन की पृष्ठभूमि में समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। बड़ी चिंता पूर्वी पाकिस्तान (जो बाद में बांग्लादेश बना) से हिंदुओं और पश्चिम बंगाल से मुसलमानों का पलायन था। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की घुसपैठ के साथ दोनों देशों के बीच के रिश्ते पहले ही तनावपूर्ण हो चुके थे। पाकिस्तान से अल्पसंख्यक हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों के पलायन और भारत में मुसलमानों को गंभीर शरणार्थी संकट का सामना करना पड़ा। इसे रोकने के लिए दोनों देशों के बीच अप्रैल 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ।

क्या है समझौता

- इस समझौते के तहत शरणार्थी अपनी संपत्ति का निपटान करने के लिए भारत-पाकिस्तान आ जा सकते थे।

-अगवा की गई महिलाओं और लूटी गई संपत्ति को वापस किया जाना था।

- जबरन धर्मातरण को मान्यता नहीं दी गई थी।

-दोनों देशों ने अपने-अपने देश में अल्पसंख्यक आयोग गठित किए।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था विरोध

दिल्ली पैक्ट के नाम से भी मशहूर इस समझौते का विरोध करते हुए नेहरू सरकार में उद्योगमंत्री रहे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस्तीफा दे दिया था। मुखर्जी तब हिंदू महासभा के नेता थे। उन्होंने समझौते को मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाला बताया था।

सफल या विफल

नेहरू-लियाकत समझौते ने अपने घोषित उद्देश्यों को हासिल किया या नहीं, यह बहस का विषय बना हुआ है। हालांकि, नेहरू-लियाकत समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद महीनों तक पूर्वी पाकिस्तान के हिंदुओं का पलायन भारत के पश्चिम बंगाल में जारी रहा।

समझौते को लेकर दिए गए ये जवाब 

अगस्त 1966 में, जनसंघ के नेता निरंजन वर्मा ने तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह से तीन प्रश्न पूछे।पहला सवाल: नेहरू-लियाकत समझौते की वर्तमान स्थिति क्या है?

दूसरा सवाल: क्या दोनों देश अभी भी समझौते की शतरें के अनुसार कार्य कर रहे हैं?

तीसरा सवाल: वह साल कौन सा है, जब से पाकिस्तान समझौते का उल्लघंन कर रहा है?

स्वर्ण सिंह ने अपने जवाब में कहा, 1950 का नेहरू-लियाकत समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच एक स्थायी समझौता है। दोनों देशों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि अल्पसंख्यकों को भी नागरिकता के समान अधिकार प्राप्त हों।

दूसरे सवाल पर, स्वर्ण सिंह ने जवाब दिया, हालांकि भारत में, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा को लगातार और प्रभावी रूप से संरक्षित किया गया है, पाकिस्तान ने अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों की लगातार उपेक्षा और उत्पीड़न करके समझौते का लगातार उल्लंघन किया है।

तीसरे प्रश्न का उत्तर नेहरू-लियाकत समझौते की विफलता के बारे में अमित शाह द्वारा किए गए दावे को परिलक्षित करता है। स्वर्ण सिंह ने कहा, इस तरह के उल्लंघनों के उदाहरण समझौते होने के तुरंत बाद ही सामने आने लगे थे।

क्या बोले अमित शाह

नागरिकता संशोधन विधेयक का बचाव करते हुए, अमित शाह ने दोहराया कि पाकिस्तान और बांग्लादेश विभाजन के बाद धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहे। उन्होंने कहा, नरेंद्र मोदी की सरकार इस ऐतिहासिक गलती को सही कर रही है।

राज्यसभा से होना है पारित

नागरिकता संशोधन विधेयक को सत्ताधारी भाजपा ने लोकसभा से आसानी से पारित करवा लिया है। अब राज्यसभा में इस विधेयक को रखा जाना है, जहां से पारित होने बाद यह कानून की शक्ल लेगा।

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