Exclusive Interview : पार्टी के मौजूदा हालात पर सिब्‍बल बोले- जो दल और नेता सुनने को नहीं होगा तैयार, उसका नुकसान तय

कांग्रेस से जुदा हो रहे युवा नेताओं का सिलसिला कहां रुकेगा इसे लेकर नेतृत्व भी आश्वस्त नहीं है। इसे सीधे तौर पर कांग्रेस नेतृत्व की हनक कम होने से जोड़कर देखा जा रहा है। प्रस्‍तुत है इस मसले पर पार्टी के वरिष्ठ एवं अनुभवी नेता कपिल सिब्बल से खास बातचीत...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 09:13 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 10:13 PM (IST)
Exclusive Interview : पार्टी के मौजूदा हालात पर सिब्‍बल बोले- जो दल और नेता सुनने को नहीं होगा तैयार, उसका नुकसान तय
कांग्रेस से जुदा हो रहे युवा नेताओं का सिलसिला कहां रुकेगा इसे लेकर नेतृत्व भी आश्वस्त नहीं है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। एक-एक कर कांग्रेस से जुदा हो रहे युवा नेताओं का सिलसिला कहां रुकेगा इसे लेकर खुद नेतृत्व भी आश्वस्त नहीं है। इसे सीधे तौर पर कांग्रेस नेतृत्व की हनक कम होने से जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ एवं अनुभवी नेता कपिल सिब्बल बेलाग कहते हैं, नेता में संवाद और सुनने की क्षमता होनी ही चाहिए। जो राजनीतिक दल और नेता सुनने को तैयार नहीं, उसका नुकसान होना तय है। साथ ही जितिन प्रसाद सरीखे नेताओं पर तंज करते हुए कहते हैं- आजकल 'प्रसाद' की राजनीति चल रही है, विचारधारा की जगह लोभधारा ने ले ली है और कमोबेश हर पार्टी इससे त्रस्त है। दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से खास बातचीत के अंश-

सवाल - कांग्रेस का संकट गंभीर होता जा रहा है। बड़े नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला आखिर पार्टी थाम क्यों नहीं पा रही?

जवाब - यह संकट केवल कांग्रेस का नहीं, पूरी राजनीति का है क्योंकि देश में जो राजनीति कर रहे हैं वे 'प्रसाद' हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। जितिन प्रसाद का पार्टी छोड़ना तो केवल एक घटना है। बंगाल में कई विधायक तृणमूल छोड़कर चले गए क्योंकि उन्हें प्रसाद मिला, जब हार गए तो वही मुकुल राय भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होते हुए अब ममता बनर्जी के पास लौट गए हैं। ऐसे सभी हारे हुए लोग तृणमूल कांग्रेस में आना चाहते हैं, जबकि एक चुनाव जीतने वाले सुवेंदु अधिकारी नेता विपक्ष बन गए। यह अकेले कांग्रेस से जुड़ा संकट नहीं, बल्कि देश की राजनीति का बहुत भारी संकट है जो हमारे लोकतंत्र में तेजी से होती गिरावट का नमूना है।

सवाल - चाहे जितिन हों या ज्योतिरादित्य, पार्टी के बड़े नेता जिस तरह कांग्रेस से भाग रहे हैं क्या आपको लगता नहीं कि संगठन या नेतृत्व के ढांचे में कोई समस्या है?

जवाब - मुझे नहीं मालूम कि किस वजह से भाग रहे हैं पर इतना जरूर है कि वे इसलिए नहीं भाग रहे कि भाजपा की नीतियां अच्छी हैं। सचिन पायलट के बयान पर कुछ नहीं कह सकता, मगर जो भी हो ये मामले बैठकर सुलझा लिए जाने चाहिए। एक बड़ी पार्टी में बातचीत और आपसी संवाद जरूर होना चाहिए। बिना बातचीत के कोई एजेंडा आगे नहीं बढ़ सकता और सुनने की क्षमता भी होनी चाहिए। लोकतंत्र में अगर सुनने की क्षमता नहीं होगी तो चाहे वह दल हो या लोकतांत्रिक व्यवस्था वे कमजोर हो जाएंगे। जो भी राजनीतिक दल और नेता सुनने के लिए तैयार नहीं हैं, उन्हें आगे जाकर नुकसान जरूर होगा।

सवाल - राजनीति में आपके हिसाब से इस गिरावट की वजह क्या है?

जवाब - जहां आप खरीद-फरोख्त कर सकते हैं और इसके लिए अथाह पैसा है, वहां यह गिरावट तो आनी ही है। जनता समझ चुकी है कि जो आज राजनीति में हैं वे नीतिहीन लोग हैं, जिनका कोई सिद्धांत या मूल्य नहीं। यह गिरावट वास्तव में हमारी राजनीति की गिरावट है और 10वीं अनुसूची बिल्कुल फेल हो गई है। आया राम गया राम के बाद अब प्रसाद पाने की राजनीति चल रही है। भाजपा सबसे धनी पार्टी है जो पद से लेकर हर तरीके का प्रलोभन देने में ज्यादा सक्षम है और मौजूदा हालात में जिसकी लाठी उसकी भैंस कहावत बिल्कुल चरितार्थ हो रही है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो ऐसा अक्सर होता है, लोगों को लगता है कि मेरा कोई भविष्य नहीं है क्योंकि कांग्रेस अभी चुनाव नहीं जीत रही है। उन्हें कहीं न कहीं जाकर सांसद-विधायक या मंत्री बनना है और इसी आधार पर वे अपनी राजनीति करते हैं। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी में बड़ा संकट है, मगर किसी ने सुना कि उनके नेता या सांसद ने डेमोक्रेटिक पार्टी ज्वाइन की या ब्रिटेन में तमाम मुश्किल हालात के बाद भी लेबर पार्टी के किसी नेता ने कंजरवेटिव पार्टी ज्वाइन कर ली हो।

सवाल - हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में पार्टियों की पहचान अपनी विचाराधारा से है? फिर समस्या कहां है?

जवाब - इस हकीकत को स्वीकार करना होगा कि आज हमारी राजनीतिक विचाराधारा शून्य हो गई है और लोभधारा की राजनीति हो रही है। जो व्यक्ति 20 साल हमारे साथ रहा और भाजपा को गालियां दीं, वह किस आधार पर आज भाजपा को गले लगा रहा है और यह बात जनता को पूछनी चाहिए। मतदाताओं को चाहिए कि ऐसी प्रसाद की राजनीति करने वालों को कभी चुनाव न जीतने दे।

सवाल - कांग्रेस की अंदरूनी स्थिति भी तो आज कुछ ऐसी ही है। पार्टी में सुधार की आप जैसे नेताओं की मांग पर ठोस प्रगति अभी तक क्यों नहीं हो पाई?

जवाब - जहां तक सुधार की बात है तो पार्टी में सुधार लाना पड़ेगा। जब चुनाव की चुनौतियां सामने आएंगी तो सुधार आएगा। मेरा प्रतिउत्तर सवाल है कि आज कौन सी पार्टी में सुधार हो रहा है। भाजपा को देखिए, उत्तर प्रदेश में आज एक आदमी अपनी मनमर्जी से जो चाहे कर सकता है। चुनाव निकट है तो योगी आदित्यनाथ को दिल्ली बुलाया जाता है। केवल कांग्रेस के साथ समस्या नहीं है, बाकी दल भी इससे अछूते नहीं हैं। राजनीतिक दल का केवल एक लक्ष्य रहता है कि किस तरह अगला चुनाव जीता जाए। उसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं। हमारा संवैधानिक ढांचे इतने कमजोर हो चुके हैं कि कोई सत्ता के खिलाफ खड़ा नहीं होना चाहता। यह देश के लिए बेहद खतरनाक स्थिति है।

सवाल - आप इसे राजनीति के संकट का दौर मान रहे हैं तो कांग्रेस इसका मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार क्यों नहीं कर पा रही?

जवाब - बिल्कुल, कांग्रेस को इसके लिए खुद को तैयार करने की अपरिहार्य जरूरत है। हमने अपने सुझाव कांग्रेस अध्यक्ष को भेजे पत्र में दिए हैं और हमारी बैठक भी हुई है जिसमें हमने दोबारा सुझाव दिए। उन्होंने कहा है कि हम चुनाव कराएंगे और चुनाव कोरोना की वजह से टला है। अगर सुधार नहीं होगा तो उसके परिणाम भी आपको दिखेंगे। पार्टी में सुधार लाजिमी है और इस बात पर हम सभी अटल हैं क्योंकि हम कांग्रेस को दोबारा उस स्थिति में देखना चाहते हैं जहां उसने देश के इतिहास का गौरव बढ़ाया है। इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि हिंदुस्तान का इतिहास कांग्रेस ने बनाया है। इसलिए पार्टी में बातचीत कर सुधार करते हुए हमारी मांगों पर अमल होना चाहिए।

सवाल - देश में मजबूत विकल्प के लिए जनता भी कांग्रेस की ओर देख रही है। ऐसे में पार्टी की दशा-दिशा क्या होनी चाहिए?

जवाब - बिल्कुल, कांग्रेस को विकल्प देने की पहल करनी चाहिए। भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक मजबूत फ्रंट बनना चाहिए। यह एक प्रगतिशील गठबंधन होना चाहिए और इसी आधार पर चुनाव लड़ना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस तो है, मगर मौजूदा हालात में कांग्रेस को राज्यों में प्रभावी क्षेत्रीय पार्टियों से बातचीत करके समझौते के साथ चुनाव लड़ना होगा। इसके लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम चाहे समय आने पर बने, मगर अभी एक साझा राजनीतिक प्लेटफार्म तो होना ही चाहिए।

सवाल - साझा न्यूनतम कार्यक्रम और कामन प्लेटफार्म की बात तो ठीक है, मगर क्या यह सच्चाई नहीं है कि इस विकल्प की लीडरशिप का मुद्दा विपक्ष के लिए बड़ी सिरदर्दी है?

जवाब - चुनाव 2024 में है तो लीडरशिप का मुद्दा अभी है ही नहीं। फिलहाल तो हम एक ढांचा बनाएं जो मजबूत हो और इसके बाद तय करेंगे कि कौन लीडर होगा। यह तो सभी को साथ बैठकर तय करना चाहिए। अगर कोई कहता है कि मैं लीडर बनना चाहता हूं तो उसको इसका एलान भी करना चाहिए।

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