किशोर न्याय संशोधन विधेयक संसद से पारित, बच्चों की देखभाल के मामलों में बढ़ेंगे जिलाधिकारियों के अधिकार

महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में इस विधेयक को पेश किया और पेगासस जासूसी मामले कृषि कानूनों के विरोध व मूल्य वृद्धि के मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे के बीच यह पारित हो गया।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 03:04 AM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 03:04 AM (IST)
किशोर न्याय संशोधन विधेयक संसद से पारित, बच्चों की देखभाल के मामलों में बढ़ेंगे जिलाधिकारियों के अधिकार
किशोर न्याय संशोधन विधेयक राज्यसभा से पारित, लोकसभा पहले ही दे चुकी है मंजूरी

नई दिल्ली, प्रेट्र। संसद ने बुधवार को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को पारित कर दिया। इसमें बच्चों की देखभाल और गोद लेने से जुड़े मामलों में जिलाधिकारियों और अपर जिलाधिकारियों की भूमिका बढ़ाने का प्रविधान है।

राज्यसभा में पेश विधेयक विपक्ष के हंगामे के बीच हो गया पारित

महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में इस विधेयक को पेश किया और पेगासस जासूसी मामले, कृषि कानूनों के विरोध व मूल्य वृद्धि के मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे के बीच यह पारित हो गया।

लोकसभा पहले ही दे चुकी है मंजूरी

लोकसभा से यह विधेयक मार्च, 2021 में पारित हो चुका है। इसके जरिये किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन किया गया है।

बढ़ेंगे जिलाधिकारियों के अधिकार

एएनआइ के मुताबिक, संशोधन में अधिनियम की धारा 61 के तहत जिलाधिकारियों द्वारा गोद लेने के आदेश जारी करना शामिल है ताकि मामलों का त्वरित निस्तारण और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। अधिनियम के तहत जिलाधिकारियों को इसका सुचारू कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के साथ-साथ संकट की स्थिति में बच्चों के पक्ष में समन्वित प्रयासों को सुनिश्चित करने के लिए और अधिक अधिकार दिए गए हैं। संशोधित प्रविधानों के मुताबिक, किसी भी बाल देखभाल संस्थान को जिलाधिकारी की सिफारिशों पर विचार के बाद ही पंजीकृत किया जाएगा। जिलाधिकारी स्वतंत्र रूप से जिला बाल संरक्षण इकाइयों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्डो, विशेषज्ञ किशोर पुलिस इकाइयों और बाल देखभाल संस्थानों के कार्यो का मूल्यांकन करेंगे।

न्यूनतम सजा वाले अपराधों को इस अधिनियम के तहत गंभीर अपराध माना जाएगा

वर्तमान में अधिनियम के तहत अपराध की तीन श्रेणियां हैं- मामूली, गंभीर और जघन्य, लेकिन देखा गया था कि कुछ अपराध इन तीनों ही श्रेणियों में नहीं आते। लिहाजा फैसला किया गया कि अधिकतम सात साल से अधिक सजा वाले, लेकिन कोई न्यूनतम सजा नहीं होने वाले या सात साल से कम की न्यूनतम सजा वाले अपराधों को इस अधिनियम के तहत गंभीर अपराध माना जाएगा।

स्मृति ईरानी ने कहा- बच्चों से दु‌र्व्यवहार, बाल श्रम कराने वाले लोग समिति में सदस्य नहीं बन सकेंगे

ईरानी ने बताया कि अगर किसी व्यक्ति का मानवाधिकारों के हनन का रिकार्ड होगा तो उसे कभी भी बाल कल्याण समिति का सदस्य नियुक्त नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा नैतिक पतन के अपराध में शामिल, बच्चों से दु‌र्व्यवहार, बाल श्रम कराने वाले और अनैतिक कार्यो में लिप्त लोग भी समिति में सदस्य नहीं बन सकेंगे। हितों का टकराव टालने के लिए बाल कल्याण संस्थान चलाने वाले या सरकार से लाभ प्राप्त करने वाले गैरसरकारी संगठन जो बाल देखभाल संस्थानों के प्रबंधन का हिस्सा हों, बाल कल्याण समितियों का हिस्सा नहीं बन सकेंगे।

7 साल तक स्वास्थ्य, शिक्षा की गतिविधियों में सक्रिय रहने वाले ही बाल कल्याण समिति के होंगे सदस्य

विधेयक के मुताबिक, किसी भी ऐसे व्यक्ति को बाल कल्याण समिति का सदस्य नहीं बनाया जा सकेगा जब तक कि वह कम से कम सात साल तक स्वास्थ्य, शिक्षा या बच्चों के कल्याण से जुड़ी गतिविधियों में सक्रियता से शामिल न रहा हो।

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