बढ़ती रस्साकशी के कारण फिर तनाव में भारत-अमेरिका संबंध, ट्रेड वार की आशंका
हाल में भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू डायलॉग अचानक स्थगित हो गया। वहीं चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार की तल्खी भी बढ़ रही है।
दरअसल हिंद-प्रशांत आर्थिक गलियारे की अवधारणा भारत-अमेरिका सामरिक वार्ता के दौरान प्रस्तुत की गई थी। यह अवधारणा एशिया के नए विकास क्षेत्रों में अमेरिका की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए एक नई संभावना को तलाशने की कोशिश थी। हिंद-प्रशांत शब्द पूर्वी अफ्रीका और पश्चिम एशिया से पूर्वी एशिया तक फैली पूर्वी हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर की समुद्री जगह को संदर्भित करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस क्षेत्र के देशों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी एक देश की न बता कर सभी देशों की बताई है। जानकारों के मुताबिक प्रधानमंत्री का यह बयान अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका को संदेश है कि बिना किसी वजह के वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कोई तनाव पैदा न करे।
भारत की भूमिका
दरअसल दोनों देशों के बीच बढ़ने वाला यह तनाव एकतरफा नहीं है। भारत द्वारा भी उठाए गए कई ऐसे कदम हैं जिन पर अमेरिका ने एतराज जताया है। भारत ने इस वर्ष जून में अमेरिका और जापान के साथ समुद्री अभ्यास में शामिल होने के लिए ऑस्ट्रेलियाई अनुरोध को खारिज कर दिया था। इसके विपरीत रूस तथा चीन की अगुआई वाले शंघाई सहयोग संगठन के देशों के साथ किंगदाओ में होने वाले सैन्य अभ्यास के आयोजन में शामिल होने की भारत की स्वीकृति से भी ट्रंप प्रशासन चिंतित है। साथ ही डेयरी और पोर्क उत्पादों के निर्यात के प्रतिरोध पर भारत के टैरिफ और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय सर्वर पर डाटा स्थानीयकरण के नियम लागू करना, ऐसे प्रयास हैं जो तनाव के कारण बन रहे हैं। इसके अलावा यदि अनौपचारिक और औपचारिक शिखर सम्मेलन के साथ-साथ शंघाई सहयोग संगठन, ब्रिक्स और जी-20 बैठकों की बात की जाए तो भारतीय प्रधानमंत्री मोदी चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से वर्ष के अंत तक चार-पांच बार मिल चुके होंगे। इसके विपरीत भारत-अमेरिका के बीच टू प्लस टू वार्ता को निर्धारित करने में लगभग छह माह का वक्त लग गया था। हाल के महीनों में व्यापार संरक्षणवाद के नाम पर दोनों देश कई दफा एक-दूसरे को विश्व व्यापार संगठन में ले गए हैं और यह भी भारत और अमेरिका के बीच विरोध का बड़ा मुद्दा है। जाहिर है ये ऐसे पहलू हैं जिन पर भारत को भी मंथन करने की जरूरत है।
टू प्लस टू डायलॉग
जब दो देशों के बीच एक साथ ही दो-दो मंत्रिस्तरीय या सचिवस्तरीय वार्ताएं आयोजित की जाती हैं तो इसे टू प्लस टू वार्ता मॉडल का नाम दिया जाता है। गौरतलब है कि यह पहला मौका था जब मंत्री स्तर पर भारत किसी देश के साथ टू प्लस टू डायलॉग जैसी पहल को अंजाम देने की राह पर था। हालांकि सचिव स्तर पर भारत ऐसी वार्ताएं दूसरे देशों के साथ कर चुका है। भारत और अमेरिका के बीच संवाद को नया रूप देने के लिए नियमित वार्ता का एक ऐसा ढांचा विकसित करने की कोशिश की जा रही थी, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा और व्यापार के क्षेत्र में साङोदारी और मजबूत हो सके। इसका दूसरा उद्देश्य यह भी था कि क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने में भारत-अमेरिका मिलकर अपनी भूमिका निभाएं। प्रस्तावित संरचना के तहत भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू संवाद व्यवस्था में नियमित रूप से दोनों देशों के रक्षा एवं विदेश सचिवों के बीच लगातार संपर्क बनाए रखने की योजना थी। आगे की राहगौरतलब है कि पूंजीवादी और मिश्रित अर्थव्यवस्था के रूप में भारत-अमेरिकी संबंध हमेशा से ही सहयोगी बने रहे हैं, लेकिन मौजूदा वक्त में यह संबंध लेन-देन की नीति पर निर्भर कर रहा है। इसी कारण भारत-अमेरिका के बीच अलग-अलग मुद्दों पर असहमति देखी जा रही है। इन असहमतियों के कारण ही दोनों देशों के रिश्ते में अस्थिरता आ रही है। लेकिन सवाल यह भी है कि इससे इतर दूसरे मुद्दों पर अगर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं बनती है तो दोनों देशों के व्यापारिक और कूटनीतिक हित किस हद तक प्रभावित होंगे? दरअसल नए अमेरिकी कानून तथा रूस, ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंध भारत-अमेरिकी संबंधों के लिए बड़ी चुनौतियां पेश कर रहे हैं। अमेरिका ईरान के मामले में भारतीय संस्थाओं को तो रोक ही रहा है, साथ ही रूस के साथ व्यापार करने पर भी इन्हें रोकने की कोशिश कर रहा है। जाहिर है अमेरिका भारत के हितों की अनदेखी कर रहा है। एक ओर रूस के साथ जहां भारत का 70 सालों का गहरा रिश्ता है, वहीं मौजूदा वक्त में भारत ईरान से बड़े पैमाने पर कच्चा तेल आयात करता है। जाहिर है ये प्रतिबंध भारत का ईरान और रूस के साथ संबंधों को एक चुनौतीपूर्ण चौराहे पर ले जाएंगे। हालांकि भारत ने कई बार संकेत दिए हैं कि वह अमेरिकी नाराजगी के बावजूद ईरान से तेल खरीदना जारी रखेगा। इसी तरह मौजूदा ट्रेड-वार पर भी भारत ने अमेरिका के सामने नहीं झुकने के संकेत दिए हैं। बहरहाल अमेरिका और भारत दोनों देशों को टू प्लस टू संवाद जैसी व्यवस्था को बहाल करने की कोशिश करनी चाहिए ताकि निरंतर संवाद के जरिये हिंद-प्रशांत जैसे मुद्दे सहित अन्य मसलों को सुलझाने के प्रयास किए जा सकें। भारत को भी वह आगे बढ़ कर अमेरिका के साथ अपने संबंध बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए, अन्यथा प्रधानमंत्री की विदेश नीति को सुधारने की कोशिशें सार्थक नहीं हो पाएंगी। जाहिर है तब मोदी सरकार की विदेश नीति सवालों के घेरे में आ जाएगी।
(लेखक जामिया मिलिया इस्लामिया अध्येता हैं)