गुजरात दंगा मामलाः जाकिया की याचिका पर सु्प्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, अब 26 को होगी सुनवाई

2002 के गुजरात दंगों में पीएम समेत अन्य लोगों को क्लीनचिट दिए जाने के खिलाफ सु्प्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है। अब 26 नवंबर को सुनवाई होगी।

By Vikas JangraEdited By: Publish:Mon, 19 Nov 2018 10:44 AM (IST) Updated:Mon, 19 Nov 2018 10:44 AM (IST)
गुजरात दंगा मामलाः जाकिया की याचिका पर सु्प्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, अब 26 को होगी सुनवाई
गुजरात दंगा मामलाः जाकिया की याचिका पर सु्प्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, अब 26 को होगी सुनवाई

नई दिल्ली, जेएनएन। 2002 के गुजरात दंगों के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीनचिट दिए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टल गई है। जकिया जाफरी की याचिका पर अब  सर्वोच्च न्यायालय 26 नवंबर को अगली सुनवाई करेगा। 

गौरतलब है कि पिछले साल गुजरात हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त एसआइटी की जांच रिपोर्ट में पीएम मोदी और 59 अन्य को क्लीनचिट दिए जाने के फैसले को बरकरार रखते हुए 2002 के गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले में जाकिया जाफरी की याचिका को खारिज कर दिया था। साथ ही उन्हें आगे की जांच के लिए सर्वोच्च अदालत में जाने को निर्देशित किया था। जकिया ने पांच अक्टूबर, 2017 के गुजरात हाईकोर्ट के इस फैसले को भी खारिज करने की अपील की है।

जस्टिस एएम खानविल्कर और दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने गुजरात दंगे में मारे गए पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका को स्वीकार कर ली है। सोमवार को खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि अभी मामले की सुनवाई शुरू करने के लिए थोड़ा और वक्त लगेगा और 26 नवंबर को अगली सुनवाई होगी।

खंडपीठ ने कहा कि संभवत: ऑफिस रिपोर्ट में रजिस्ट्री की ओर से गलत जानकारी दी गई है। इससे पूर्व, संक्षिप्त सुनवाई के दौरान जाफरी के वकील सीयू सिंह ने 27 फरवरी, 2002 और मई 2002 के बीच व्यापक साजिश के संबंध में नोटिस जारी करने की अपील की। वहीं, गुजरात सरकार के वकील सीएस वैद्यनाथन ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि यह अलग मामला है और इसे अन्य आपराधिक अपीलों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। उन्होंने नोटिस जारी किए जाने की दलील का भी विरोध किया।

उल्लेखनीय है कि मार्च, 2008 में सुप्रीम कोर्ट की ही गठित एसआइटी ने विगत आठ फरवरी, 2012 को मामले की क्लोजर रिपोर्ट दायर कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 59 अन्य लोगों को यह कहते हुए क्लीनचिट दी थी कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने योग्य कोई सुबूत नहीं हैं। इससे पूर्व, 2010 में एसआइटी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी से नौ घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की थी।

इसके बाद, नौ फरवरी, 2012 को जकिया जाफरी और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ 'सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस' ने एसआइटी की रिपोर्ट को निचली मेट्रोपोलिटन अदालत में चुनौती दी थी। उन्होंने मोदी और अन्य पर दंगे के पीछे आपराधिक षड्यंत्र का आरोप लगाने की मांग की। लेकिन दिसंबर, 2013 में निचली अदालत ने एसआइटी की रिपोर्ट को सही ठहराया।

उसके बाद जकिया जाफरी और तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील की। यहां भी विगत तीन जुलाई, 2017 को जाफरी के वकीलों ने दलील दी कि निचली अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया। और घटना में साजिश बताने वाले गवाहों के हस्ताक्षरित बयानों पर विचार नहीं किया। लेकिन पिछले ही साल हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

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