Farmers Protest : गतिरोध तोड़ने के लिए लंबे वक्त के लिए ठंडे बस्ते में जा सकते हैं नए कृषि कानून
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन और सरकार की घेरेबंदी के बीच राजनीति और इतिहास ने खुद को दोहराया है। पहले कार्यकाल में भी नरेंद्र मोदी सरकार को लगभग डेढ़ साल के अंदर भूमि अधिग्रहण विधेयक पर पैर खींचने पड़े थे।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। किसान संगठनों के साथ जारी गतिरोध तोड़ने के लिए सरकार ने अभूतपूर्व फैसला लेते हुए अपने तीनों नए कृषि कानूनों पर डेढ़ साल तक रोक लगाने का प्रस्ताव किया है। इसे सरकार का मास्टर स्ट्रोक भी कहा जा रहा है और पैर खींचना भी। पूरा चित्र तो खैर बाद में दिखेगा। किसानों की ओर से प्रस्ताव खारिज किए जाने के बाद बहुत कुछ फिर से सुप्रीम कोर्ट के पाले में आ गया है। फिलहाल माना जा रहा है कि सरकार अपने प्रस्ताव पर डटी रहेगी। ऐसे में संभव है कि तीनों कानून लंबे समय के लिए ठंडे बस्ते में चले जाएं।
डेढ़ साल के अंदर भूमि अधिग्रहण विधेयक पर खींचने पड़े थे पैर
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन और सरकार की घेरेबंदी के बीच राजनीति और इतिहास ने खुद को दोहराया है। पहले कार्यकाल में भी नरेंद्र मोदी सरकार को लगभग डेढ़ साल के अंदर भूमि अधिग्रहण विधेयक पर पैर खींचने पड़े थे। सरकार ने विकास को ध्यान में रखकर बनाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को तीन बार जारी किया था, लेकिन किसानों और राजनीतिक दलों के दबाव में आखिरकार सरकार को उसे वापस लेना पड़ा था। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल को भी लगभग डेढ़ साल हो गए हैं और कृषि कानून पर सरकार नरम पड़ गई है।
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भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के वक्त भी प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में घोषणा की थी, 'हमारी सरकार के लिए जय जवान, जय किसान केवल नारा नहीं है.. किसानों की भलाई के लिए हम किसी भी सुझाव पर चर्चा के लिए तैयार हैं।' लगभग वही संदेश फिर से देने की कोशिश हुई है। बताया जा रहा है कि यह फैसला लेने में सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी काम आया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यूं भी क्रियान्वयन पर रोक लगी है जिसे मानने से किसानों ने इन्कार कर दिया था। ऐसे में सरकार ने एक कदम और आगे बढ़कर डेढ़ साल तक स्थगन का प्रस्ताव दे दिया।
यह कदम सरकार के प्रति कोर्ट के रुख को भी बदलेगा और यह साफ संदेश है कि सरकार किसी भी कीमत पर किसानों को साथ लेकर ही चलना चाहती है। वैसे भी पंजाब और हरियाणा को छोड़कर बाकी प्रदेशों में इसका असर नहीं है। डेढ़ साल तक क्रियान्वयन पर रोक का अर्थ है कि वर्ष 2022 की जुलाई तक इस पर कदम नहीं बढ़ेंगे। यह वह काल होगा जब 2024 के लोकसभा चुनाव में दो साल से भी कम वक्त बचेगा। जाहिर है सरकार की ओर से किसानों को मनाने और समझाने की कवायद जारी रहेगी, लेकिन कदम रुके रहेंगे।