EXCLUCIVE Interview: पर्यावरण को जिन्होंने पहुंचाया ज्यादा नुकसान, उनकी जवाबदेही भी ज्यादा : भूपेंद्र यादव
31 अक्टूबर से ब्रिटेन के ग्लासगो में हो रहे कोप (कांफ्रेस आफ पार्टीज)-26 में जाहिर तौर पर विकसित और विकासशील देशों के बीच गर्मी भी दिख सकती है। इसकी लीडर समिट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हिस्सा लेंगे और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव भी शिरकत करेंगे।
विकास और विलासिता की दौड़ के कारण धरती तेजी से गर्म होती जा रही है और वैश्विक स्तर पर हड़कंप है। विडंबना यह है कि जिन विकसित देशों ने पर्यावरण की फिक्र पीछे छोड़ दी थी, अब वही सबसे मुखर हैं पर दूसरों की कीमत पर। जाहिर है कि भारत जैसे विकासशील देश पर्यावरण और विकास के संतुलन को नहीं छोड़ेंगे। 31 अक्टूबर से ब्रिटेन के ग्लासगो में हो रहे कोप (कांफ्रेस आफ पार्टीज)-26 में जाहिर तौर पर विकसित और विकासशील देशों के बीच गर्मी भी दिख सकती है। इसकी लीडर समिट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हिस्सा लेंगे और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव भी शिरकत करेंगे। भूपेंद्र यादव ने दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा और विशेष संवाददाता अरविंद पांडेय के साथ लंबी चर्चा की। बातचीत के प्रमुख अंश
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के मुद्दे पर ब्रिटेन में इसी हफ्ते एक अहम बैठक (कोप-26) होने जा रही है। इसे लेकर आपका क्या एजेंडा है। चूंकि इसमें प्रधानमंत्री भी हिस्सा ले रहे हैं, ऐसे में क्या वहां कुछ बड़ी घोषणा भी करने वाले हैं?
- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जलवायु परिवर्तन जैसे विषय पर एक बड़ी भागीदारी है। वह जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तभी उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर न सिर्फ एक पुस्तक लिखी थी, बल्कि गुजरात में जलवायु से जुड़ी एक डिवीजन भी गठित की थी। सभी देशों को इससे निपटने के उपायों पर काम करना चाहिए। फिलहाल भारत इससे निपटने के उपायों पर तेजी से काम कर रहा है। एनडीसी (नेशनली डिटरमिनेड कंट्रीब्यूशन) में तय किए गए तीनों लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में काफी काम किया गया है। कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का हमने वर्ष 2005 की तुलना में जो लक्ष्य रखा था, उसे पूरा किया है। नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी हमने करीब 40 फीसद तक की निर्भरता का जो लक्ष्य लिया था, उसे पूरा किया है। कार्बन सिंक बढ़ाने की दिशा में भी पांच से सात साल में अच्छी सफलता मिली है। हमने 13 हजार किलोमीटर का फारेस्ट कवर बढ़ाया है। हम दुनिया को इस दिशा में किए गए अपने इन्हीं कामों को बताएंगे।
विकसित देशों की ओर से नेट जीरो को लेकर काफी बातें हो रही हैं। ऐसे में भारत पर भी दबाव होगा। इससे कैसे निपटेंगे?
- यह कोप इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कोरोना महामारी के बाद यह फिजिकली हो रही है। साथ ही इसकी अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि कोरोना के बाद आइपीसीसी (इंटरगवर्नमेंट पैनल आन क्लाइमेट चेंज) की जो छठवें चरण की रिपोर्ट आई है, उसमें कहा गया है कि यदि कार्बन उत्सर्जन में कमी के उपायों पर समय रहते काम नहीं किया गया तो धरती का तापमान बढ़ेगा। इसके चलते अनावश्यक तूफान, सूखे और बाढ़ आदि का दुनिया को सामना करना होगा। रही बात पेरिस समझौते में किए गए वादों के अमल पर दबाव बनाने की, तो मेरा मानना है कि इस पर किसी तरह का दबाव बनाने की जगह सहमति से काम करने की जरूरत है। जिसमें सभी देश एक-दूसरे को क्लाइमेट फाइनेंस सहित तकनीकी रूप से मदद देने का काम करें।
क्या आपको लगता है कि पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों को जो करना चाहिए, वह उन्होंने नहीं किया। खासकर वित्तीय मदद को लेकर जो वादे उनकी ओर से किए गए थे, वे पूरे नहीं हुए हैं। इस पर क्या रुख रहेगा?
- निश्चित ही कुछ विषयों को विकसित देशों ने पूरा नहीं किया है। मेरा मानना है कि पर्यावरण को जिन्होंने ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, उनकी इसमें ज्यादा जवाबदेही भी बनती है। वहीं क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर और भी स्पष्टता होनी चाहिए। कोप-26 में इस मुद्दे को उठाएंगे और चाहेंगे कि इस पर चर्चा हो। साथ ही वर्ष 2009 में पेरिस समझौते के तहत विकासशील देशों को जो 100 बिलियन डालर की सहायता राशि देने की बात तय हुई थी, उसमें भी बदलाव होना चाहिए। वर्ष 2022 की स्थिति में यह राशि कम पड़ रही है। इसमें बढ़ोतरी होनी चाहिए।
कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दुनिया के कई देशों ने नेट जीरो के लक्ष्य का एलान किया है। क्या भारत भी इस दिशा में कोई कदम बढ़ाने की सोच रहा है?
- भारत का मानना है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए दुनिया में ग्रीन कंट्रीब्यूशन बढ़ाया जाना चाहिए। अगर ग्रीन कंट्रीब्यूशन बढ़ाते हैं तो यह प्रतिबद्धता ज्यादा अहम है। हमारा मानना है कि केवल घोषणाओं से दुनिया नहीं चलने वाली, बल्कि उन्हें पूरा करने से यह संभव होगा। फिर भी हम यह मानते हैं कि दुनिया में जिस भी तरह से सकारात्मक विषय आएंगे, समय आने पर हम सभी विषयों को सकारात्मक तरीके से अपनाएंगे।
विकसित और विकासशील देशों के लिए लक्ष्यों में कोई वर्गीकरण भी होना चाहिए क्योंकि सभी के पास एक जैसे संसाधन नहीं हैं?
- मैं कहूंगा कि पूरा करना है और पूरा कर लिया है, इसके अंतर को हर कोई समझे। मुझे लगता है कि अब चर्चा इस बात की करनी चाहिए कि क्या पूरा कर लिया है। दुनिया के सभी देशों को खुले मन से धरती पर मंडरा रहे इस संकट से निपटने के लिए काम करना चाहिए।
दुनियाभर में कार्बन उत्सर्जन कम करने पर छिड़ी बहस के बीच थर्मल पावर भी एक बड़ी चुनौती है। मौजूदा समय में बिजली को लेकर हमारी बड़ी निर्भरता सिर्फ थर्मल पावर ही है। इसे कैसे देखते हैं?
- देखिए, सभी देशों को अपनी राष्ट्रीय जरूरतों के आधार पर काम करने की जरूरत है। जब हम नवीकरणीय ऊर्जा (रिन्यूबल एनर्जी) की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तो यह हमारे सकारात्मक पहलू को दर्शाता है। रही बात कोयले से चलते वाले थर्मल पावर प्लांट की तो अभी तक आस्ट्रेलिया और अमेरिका ने भी बंद नहीं किए हैं। जब ऐसी बहस छिड़ी है तो हमें अपने देश की राष्ट्रीय आवश्यकताओं के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए। एनडीसी के पीछे भी कुछ यही नजरिया है।