टीआरपी घोटाले में मनी लांड्रिंग की जांच शुरू कर सकता है ईडी
ईडी को जांच के लिए राज्य सरकार की इजाजत की जरूरत नहीं। सीबीआइ की जांच रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने वापस ले ली थी सामान्य सहमति। टीआरपी घोटाले की जांच शुरू करने में ईडी पूरी तरह स्वतंत्र है।
नई दिल्ली, नीलू रंजन। महाराष्ट्र सरकार ने टीआरपी की जांच से सीबीआइ को रोकने के लिए सामान्य सहमति (जनरल कंसेंट) को वापस ले लिया हो, लेकिन वह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को इसकी जांच से रोक नहीं पाएगी। ईडी इस मामले की मनी लांड्रिंग के तहत जांच शुरू कर सकती है। ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि टीआरपी घोटाले में पैसे की लेन-देन को देखा जा रहा है और उसके आधार पर ही केस दर्ज करने का फैसला लिया जाएगा।
दरअसल मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के तहत ईडी को जांच के लिए किसी राज्य की सहमति की जरूरत नहीं है। ईडी देश में किसी भी पुलिस की एफआइआर के आधार पर खुद ही मनी लांड्रिंग की जांच शुरू कर सकती है। ईडी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून में 40 से अधिक अपराधों की सूची है, जिसमें वे जांच शुरू कर सकते हैं। इसके लिए किसी से किसी तरह की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है।
जाहिर है टीआरपी घोटाले की जांच शुरू करने में ईडी पूरी तरह स्वतंत्र है। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यदि पैसे की लेन-देन के सबूत मिलते हैं, तो वे निश्चित रूप से मनी लांड्रिंग के तहत जांच शुरू करेगें। दरअसल टीआरपी घोटाले में मुंबई पुलिस जांच कर रही है और इस सिलसिले में कुछ लोगों को गिरफ्तार भी कर चुकी है। लेकिन मुंबई पुलिस पर जांच में पक्षपात के आरोप भी लग रहे हैं। इस बीच लखनऊ में इसी मुद्दे पर दर्ज एफआइआर और उत्तरप्रदेश सरकार के अनुरोध पर सीबीआइ ने भी इस मामले में एफआइआर दर्ज की थी। जाहिर है सीबीआइ को जांच से दूर रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने सामान्य सहमति को वापस ले लिया था। अब सीबीआइ की इसी एफआइआर को आधार बनाकर ईडी मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर सकती है। इसके अलावा ईडी मुंबई पुलिस से भी एफआइआर तलब कर सकती है।
मुंबई पुलिस और ईडी की जांच में विसंगति पाए जाने के बारे में पूछे जाने पर वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ईडी की जांच स्वतंत्र होगी और इस पर मुंबई पुलिस की जांच से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ कई हाईकोर्ट भी अपने फैसले में ईडी की जांच की स्वायत्तता को साफ कर चुके हैं। यही नहीं, मनी लांड्रिंग के तहत जांच शुरू करने के लिए लेन-देन की सीमा भी अब समाप्त हो गई है। पहले 20 लाख रुपये के अधिक के लेन-देन के आरोप पर ही मनी लांड्रिंग की जांच होती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है।
दरअसल सीबीआइ और ईडी के अधिकार क्षेत्र और कार्यप्रणाली में अंतर है। सीबीआइ का अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार के अधीन या केंद्र शासित प्रदेशों के कर्मचारियों तक सीमित है। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए उसे किसी अनुमति की जरूरत नहीं है। लेकिन राज्य सरकारें और उनके कर्मचारी सीबीआइ के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं। यानी वह राज्य किसी भी केस की जांच तभी शुरू कर सकती है, जब संबंधित राज्य सरकार खुद जांच के लिए कहे या फिर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट आदेश दे। इससे अहम बात यह है कि सभी राज्यों ने सीबीआइ की बेरोकटोक जांच के लिए सामान्य सहमति दी हुई है, इससे सीबीआइ को जांच के सिलसिले में राज्य मशीनरी का सहयोग लेने का अधिकार मिल जाता है। यदि यह सहमति वापस ली जाती है, तो सीबीआइ को जांच शुरू के लिए सीबीआइ को राज्य सरकार से अनुमति की जरूरत पड़ेगी। मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के तहत ईडी को इन सभी बंधनों से मुक्त रखा गया है।