न्याय के मुख्य स्तंभ पर लगा अमर्यादित आचरण का आरोप, साख खतरे में

जस्टिस गोगोई ने कहा कि वह पद पर रहेंगे और आगे भी बिना किसी भय या पक्षपात के अपने कर्तव्य का निर्वहन करते रहेंगे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 21 Apr 2019 06:08 AM (IST) Updated:Sun, 21 Apr 2019 07:07 AM (IST)
न्याय के मुख्य स्तंभ पर लगा अमर्यादित आचरण का आरोप, साख खतरे में
न्याय के मुख्य स्तंभ पर लगा अमर्यादित आचरण का आरोप, साख खतरे में

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। न्यायपालिका मे एक बार फिर अभूतपूर्व तूफान उठा है। उसकी साख फिर संकट में है। न्याय के मुख्य स्तंभ पर लगे अमर्यादित आचरण के कथित आरोपों से न्यायपालिका की चूलें हिल गई हैं। ये मामला है सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी द्वारा मुख्य न्यायाधीश पर कथित अमर्यादित व्यवहार के लगाए गए आरोपों का है। कुछ आन लाइन मीडिया में आयी ऐसी खबरों पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को छुट्टी वाले दिन आनन फानन में सुनवाई की और घटना से दुखी व क्षुब्ध मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 'ये अविश्वसनीय है और ऐसे आरोपों को नकारने के लिए भी जितना गिरना पड़ेगा वह नहीं गिर सकते हैं।'

जस्टिस गोगोई ने यह भी कहा कि मुख्य न्यायाधीश को 20 साल के बाद ये ईनाम मिला है। उनके खाते में मात्र 680000 की रकम है। जब वे मुझे पैसे मे नहीं पकड़ पाए तो ये ले आए। कोई समझदार व्यक्ति जज क्यों बनना चाहता है। हमारे पास प्रतिष्ठा होती है और आज उसी पर हमला हो रहा है।' कहा 'ये बड़ी साजिश है। बड़ी ताकत मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर को निष्कृय करना चाहती है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता गंभीर खतरे में है'।

शनिवार को सुबह करीब सवा दस बजे सुप्रीम कोर्ट का नोटिस निकला जिसमें कहा गया कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस अरुण मिश्रा व जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ साढ़े दस बजे जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले मुद्दे पर सुनवाई करेगी। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई सालिसिटर जनरल तुषार मेहता का तत्काल सुनवाई का आग्रह स्वीकार करते हुए की। हालांकि करीब आधे घंटे चली सुनवाई के बाद जस्टिस गोगोई ने आदेश पारित करने से स्वयं को अलग कर लिया इसलिए पीठ में तीन न्यायाधीश शामिल होने के बावजूद आदेश सिर्फ दो न्यायाधीशों के हस्ताक्षर से जारी हुआ। कोर्ट ने फिलहाल कोई न्यायिक आदेश जारी नहीं किया मुख्य मामले पर उचित पीठ बाद में सुनवाई करेगी। न ही कोर्ट ने मीडिया की रिपोर्टिग पर कोई रोक लगाई है लेकिन आदेश में कहा है कि वे उम्मीद करते हैं कि मीडिया नियंत्रण बरतेगा और जिम्मेदारी से काम करेगा। मीडिया स्वयं तय करे कि न्यायपालिका की साख को खराब करने और उसकी स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले वाले अनर्गल और बेबुनियाद आरोपों को छापे या न छापे।

मामले पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी के क्रिमनल रिकार्ड और उसके खिलाफ दर्ज मामलों का भी जिक्र किया। कहा कि महिला के खिलाफ पहले से दो एफआइआर थीं। कोई क्रिमनल रिकार्ड का व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट कर्मचारी कैसे बन सकता है। उसके पति के खिलाफ भी क्रिमनल केस दर्ज हैं। सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि न्यायपालिका बलि का बकरा नहीं हो सकती। कोर्ट ने मीडिया से कहा कि शिकायत के तथ्य जांचे परखे बगैर उसे प्रकाशित नहीं करने चाहिए। मालूम हो कि आरोप लगाने वाली महिला पर धोखाधड़ी का भी मामला लंबित है जिसमे वह फिलहाल जमानत पर है और शिकायतकर्ता ने जमानत रद करने की निचली अदालत में अर्जी दे रखी है। इसके अलावा नौकरी में लापरवाही और अन्य आरोपों पर महिला कर्मचारी को विभागीय जांच के बाद नौकरी से निकाल दिया गया था।

जस्टिस गोगोई ने कहा कि वह पद पर रहेंगे और आगे भी बिना किसी भय या पक्षपात के अपने कर्तव्य का निर्वहन करते रहेंगे। जस्टिस गोगोई 3 अक्टूबर 2018 को मुख्य न्यायाधीश बने थे और वे इसी वर्ष 17 नवंबर को सेवानिवृत होंगे।

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने इस बात का भी संकेत दिया कि शायद यह मामला इसलिए उठा है क्योंकि वह अगले सप्ताह कई संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने वाले हैं। हालांकि उन्होंने केसों का जिक्र नहीं किया। लेकिन जैसा कि पहले तय है सुप्रीम कोर्ट अगले सप्ताह जिन महत्वपूर्ण मामलों में सुनवाई करने वाला है उनमें राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना की शिकायत, नरेन्द्र मोदी की जीवनी पर बनी फिल्म की रिलीज आदि भी शामिल हैं।

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